कोणार्क के सूर्य मंदिर से भी 200 साल पुराना उत्तराखंड का यह सूर्यमंदिर, जानिए और अनजाने रहस्य
इस मंदिर को आदित्य मंदिर भी कहा जाता है. मान्यता है कि यह मंदिर कोर्णाक के सूर्य मंदिर के बाद भगवान सूर्य को समर्पित दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण और प्राचीन मंदिर है. यह कुमाऊं मंडल का सबसे बड़ा और अनूठा मंदिर है.
Katarmal Sun Temple: उत्तराखंड प्राकृतिक रूप से जितना धनी है उतना ही धनी यह अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत से भी है. यहाँ सैकड़ों मंदिर हैं. हर मंदिर अपनी शैली और आस्था के कारण विशेष महत्त्व रखता है. यहां एक ऐसा ही विशेष मंदिर है भगवान सूर्य का मंदिर. मंदिर का नाम है कटारमल सूर्य मंदिर. यह उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सुनार कटारमल गाँव में है. इस मंदिर की शैली अद्भुत है. इसका पौराणिक महत्त्व और मान्यताएं भी बहुत खास है. इस मंदिर को आदित्य मंदिर भी कहा जाता है. मान्यता है कि यह मंदिर कोर्णाक के सूर्य मंदिर के बाद भगवान सूर्य को समर्पित दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण और प्राचीन मंदिर है. यह कुमाऊं मंडल का सबसे बड़ा और अनूठा मंदिर है.
पूरी कहानी
इस मंदिर को कत्यूरी राजवंश के राजा कटारमल ने नौवीं से ग्यारवीं सदी के बीच बनवाया था. यह मंदिर 45 छोटे- छोटे मंदिरों का समूह है. जो इसे और भी विशिष्ठ बना देता है. मंदिर में स्थापित भगवान सूर्य की मूर्ति बड़ यानि बरगद की लकड़ी से बनायी गयी है. इसलिए इसका एक नाम बड़आदित्य भी है . मंदिर का गर्भ गृह भी लकड़ी का ही था जो अब संग्रहालय में रखा गया है . कटारमल मंदिर पूर्वमुखी है. इस मंदिर की सुंदरता अत्यधिक मनमोहक है. यह मंदिर एक चट्टान की ढाल पर बना है. जिसके सामने बहुत ही खूबसूरत कोसी की घाटी दिखाई देती है.
इस मंदिर की पौराणिक कथा यह है कि एक बार हिमालय कि इन पर्वतमालाओं में असुरों का आतंक बढ़ गया और वह ऋषियों को परेशान करने लगे. उनसे मुक्ति पाने के लिए ऋषि मुनियों ने कौशिकी यानि कोसी नदी के तट पर सूर्यदेव की तपस्या की. सूर्यदेव ने खुश होकर अपने दिव्य तेज़ को इस पर्वत की वटशिला में स्थापित कर दिया. बाद में राजा कटारमल ने इसको मंदिर बनाकर विकसित कर दिया.
इस मंदिर से जुडी मान्यता है कि इसका निर्माण रातों- रात किया गया. मुख्य मंदिर के शिखर का निर्माण होने से पहले सूर्य उग गया . इसलिए या शिखर आज भी अधूरा दिखाई पड़ता है. वर्तमान में इस मंदिर का रखखाव भारतीय पुरातत्व विभाग कर रहा है.