दिलीप मिश्रा/लखीमपुर: लखीमपुर खीरी जिले का विलोबी मेमोरियल हॉल ऐतिहासिक धरोहर के रूप में यह आज भी स्थापित है. इसको 103 साल पहले कलेक्टर की हत्या के बाद उसकी याद में बनाया गया था. क्रांतिकारियों ने इसी जगह पर आजादी का जश्न मनाया था और बाद में सजा होने पर इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए हंसी-खुशी फांसी के फंदे पर झूल गए थे. 


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अंग्रेजी हुकूमत को सबक सिखाना चाहते थे क्रांतिकारी
अंग्रेज कलेक्टर आरडब्ल्यूडी बिलोबी 1918 से 1920 तक कलेक्टर के रूप में लखीमपुर खीरी में तैनात थे. बात उस समय की है, जब जिले में एक तरफ अहिंसात्मक आंदोलन चल रहा था तो दूसरी ओर से क्रांतिकारी सशक्त क्रांति के पक्षधर नजर आ रहे थे जो अपने ढंग से अंग्रेजी हुकूमत को सबक सिखाने के प्रयास में लगे हुए थे. इसी क्रांति के परिणामस्वरूप क्रांति के तहत अंग्रेज कलेक्टर विलोबी की हत्या कर दी गई. 


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 26 अगस्त 1920 की है घटना
खिलाफत आंदोलन से प्रेरित होकर 26 अगस्त 1920 को शहर के मोहल्ला थारवरनगंज के रहने वाले नसरुद्दीन मौजी और उनके दो साथी बशीरुद्दीन और मासूम अली कलेक्टर के आवास पर पहुंचे थे. जब विलौबी अपने कैंप कार्यालय पर बैठा था. इसी दौरान क्रांतिकारियों ने ललकारने के बाद तलवार से दो बार वार करके कलेक्टर का काम तमाम कर दिया.


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फांसी पर झूल गए तीनों क्रांतिकारी
हत्या करने के बाद नसीरुद्दीन मौजी अपने साथियों के साथ शहर के कसाई टोला मोहल्ले में छुप गए. खुफिया जानकारी के बाद इन तीनों क्रांतकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर मुकदमा चलाया गया, जिसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई. इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए तीनों क्रांतिकारी सीतापुर की जेल में फांसी पर झूल गए.


कलेक्टर की याद में हुआ विलोबी मेमोरियल हॉल का निर्माण
नसीरुद्दीन शाह की शहादत के बाद क्रांतिकारियों के नाम से कोई स्मारक बनाने के बजाय कलेक्टर के नाम से विलोबी मेमोरियल हॉल का निर्माण कराया. स्वर्ण जयंती के मौके पर जिला प्रशासन ने मेमोरियल हॉल का नाम बदलकर नसीरुद्दीन मौजी स्मारक भवन कर दिया. मौजूदा समय में यही भवन नसरुद्दीन मौजी का स्मारक है. हालांकि अभी तक इस भवन को संवैधानिक रूप से नसरुद्दीन मौजी मेमोरियल हॉल का दर्जा नहीं मिला है. आज इस भवन में ब्रिटिश समकालीन चीजें मौजूद हैं. ऐतिहासिक लाइब्रेरी भी स्थापित है. 


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