कौन थे दुर्गादास राठौड़, जिन्होंने औरंगजेब को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, सीएम योगी ने सुनाया किस्सा

यूपी के सीएम योगी आदित्‍यनाथ मथुरा दौरे पर हैं. जन्‍माष्‍टमी के पावन अवसर पर सीएम योगी आदित्‍यनाथ मथुरा के बाद आगरा भी गए. यहां सीएम योगी ने वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़ की प्रतिमा का अनावरण किया. तो आइये जानते हैं कौन थे दुर्गादास राठौड़?.

अमितेश पांडेय Mon, 26 Aug 2024-4:17 pm,
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कौन थे दुर्गादास राठौड़

दुर्गादास राठौड़ का जन्म 13 अगस्त 1638 को मारवाड़ रियासत के सालवा गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम आसकरण राठौड़ था. 

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जन्‍म के बाद माता-पिता अलग हो गए

दुर्गादास के पिता आसकरण राठौड़ जोधपुर दरबार में महाराजा जसवंत सिंह के यहां मंत्री थे. कहा जाता है कि दुर्गादास के जन्‍म के बाद उनके माता-पिता में विवाद हो गया था. इसके बाद दोनों अलग हो गए थे. 

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मां के साथ खेती करने चले गए

इसके बाद दुर्गादास अपनी मां के साथ लूणवा गांव चले गए. यहां अपनी मां के साथ खेती-बाड़ी करने लगे थे. एक बार किसी ने अपने ऊंट दुर्गादास राठौड़ के खेतों में छोड़ दिए. 

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खेत की फसल बर्बाद कर दी

ऊंटों ने दुर्गादास की खेतों की फसल बर्बाद कर दी. इसके बाद दुर्गादास शिकायत लेकर गए. इस पर उसने दुर्गादास को खूब बुरा भला बोला. 

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जोधपुर दरबार को गलत कहने पर भड़के

बताया जाता है कि दुर्गादास को बुरा भला कहने पर वह भड़क गए थे और उन्‍होंने तलवार निकाल कर उस सिर धड़ से अलग कर दिया था. 

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महाराजा के दरबार में पेशी

इसके बाद दुर्गादास को महाराजा जसवंत सिंह के दरबार में पेश किया गया. इस पर दुर्गादास ने महाराजा को बताया कि उसने जोधपुर दरबार को लेकर गलत कहा था, इसलिए उसे मार डाला. 

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महाराजा ने पीठ थपथपाया

इस पर महाराजा जसवंत सिंह ने उन्‍हें अपने पास बुलाकर पीठ थपथपाते हुए कहा था कि तुम बहुत साहसी और वीर बालक हो. मारवाड़ का उद्धारक बनेगा

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औरंगजेब को हराया

महाराज जसवंत सिंह की मौत दिसंबर 1678 में अफगानिस्तान में हो गई थी. उनका कोई वारिस नहीं था. इस दौरान औरंगजेब ने मेवाड़ को सरदार इंद्र सिंह को बेच दिया. 

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औरंगजेब को भागना पड़ा

इस पर दुर्गादास राठौड़ ने औरंगजेब के खिलाफ जंग छेड़ दी थी और अंत में मुगल शासक औरंगजेब को दिल्‍ली की गद्दी छोड़कर भागना पड़ गया था. 

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मारवाड़ के लिए जंग लड़ी

मारवाड़ की जंग में लड़ने के लिए औरंगजेब ने अपने बेटे सुल्तान मुहम्मद अकबर को भेजा, जिसे दुर्गादास ने अपनी ओर मिल लिया. दोनों गुटों के बीच करीब 30 साल तक जंग चली.

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