Pilibhit News: पीलीभीत के बीसलपुर के पास  बीचो-बीच जंगल में इलाबांस देवल स्थान है. यह स्थान आज भी रहस्यमय बना हुआ है. इस देवस्थल में वनदेवी की प्रतिमा है. इस प्रतिमा को पूजने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. दरअसल मंदिर में 10वीं शताब्दी का एक शिलालेख भी लगा है. मगर इस शिलालेख का स्वरूप बदलने से पढ़ना मुश्किल है. वहीं आपको बता दें कि  मंदिर के खुदाई के दौरान यहां कई दसवीं सदी की मूर्तियां निकल चुकी हैं. इलाबांस देवल स्थान पर हर साल चेत्र माह में मेला लगता है. जानकारी के मुताबिक मंदिन में आज भी दसवीं सदी की मूर्ती विराजमान है.


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मूर्ती का जिक्र वाराह देव के रूप में किया
दरअसल अंग्रेज जेम्स प्रिन्सेप की किताब में इस मूर्ती का जिक्र वाराह देव के रूप में किया है. यहां के लोग वर्षो से मंदिर में पूजा करते आ रहे हैं. वहीं मंदिर के सामने दीवार पर शिलालेख लगा हुआ है. मगर इसकी स्थिति बेहद खराब हो चुकी है. लेखक जेम्स प्रिन्सेप ने अपनी किताब में शिलालेख की फोटो भी प्रकाशित की थी.  तब इसकी स्थिति अच्छी थी. वहीं पुरात्तव विभाग की टीम भी मंदिर में  सर्वे कर चुकी है मगर अभी यहां कुछ गंभीरता से काम नहीं हुआ है.


पहले मंदिर में करीब 52 टीले
इस मंदिर में आज भी खेतों में खुदाई के दौरान मूर्तियां व शिलालेख  प्राप्त होते रहते हैं.वन देवी की मूर्ति के कारण राजपूत समाज के लिए आस्था का केन्द्र है. मंदिर के गर्भ गृह में टीले भी कई रहस्य छुपाए हुए है. बड़े- बुर्जग के मुताबिक पहले एस मंदिर में करीब 52टीले थे. फिलहाल समय के साथ आज के समय में केवल एक ही टीला बचा हुआ है. जहां आज भी खेतों में खुदाई के दौरान देवी -देवताओं की मूर्तियां मिलती रहती है.  अंग्रेज लेखकों और इतिहासकारों की इलाबांस देवल पुराने समय से ही पंसद रहा है. जिसका मुख्य कारण क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य और मंदिर की प्राचीनतता है. 


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