Swami Narayan: गोंडा के घनश्याम पांडे कैसे बने स्वामीनारायण, 202 साल पहले बना पहला मंदिर, आज दुनिया में एक हजार
Swaminarayan news in Hindi: स्वामी नारायण संप्रदाय का इतिहास देश में 200 साल से भी ज्यादा पुराना है. कैसे उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से निकलकर वो देश भ्रमण पर निकले और दुनिया भर में छा गए.
Swaminarayan Mandirv Latest News in Hindi: देश और विदेश में एक हजार से ज्यादा स्वामी नारायण मंदिर हैं. इनमें एक अक्षरधाम मंदिर भी है. 202 साल पहले गुजरात के वतलसाड में पहले मंदिर की स्थापना के बाद से स्वामीनारायण संप्रदाय लगातार आगे बढ़ा है. लेकिन इनके प्रणेता और स्वामी नारायण संप्रदाय के संस्थापक कौन थे. उन्हें कहां से इसकी प्रेरणा मिली, इसकी कहानी हम आज आपको विस्तार से बताते हैं. स्वामी नारायण का वास्तविक नाम घनश्याम पांडे थे. गोंडा जिले के छपिया गांव में उनका जन्म रामनवमी के दिन सन 1781 में हुआ था. महज 11 साल की उम्र में धर्म आध्यात्म की राह पर निकल पड़े घनश्याम पांडे ने नीलकंठ वर्णी नाम धारण किया.
उन्होंने ग्यारह साल की उम्र से ही देश भर का भ्रमण शुरू किया और करीब 10 साल तक घूमते रहे. फिर गुजरात में जाकर प्रवास किया. यहीं पर उन्हें 1800 में उद्धव संप्रदाय के गुरु स्वामी रामानंद मिले और उन्हें सहजानंद स्वामी के रूप में नया नाम मिला. लेकिन 1802 में गुरु के देह त्याग पर 21 साल की उम्र में उद्धव संप्रदाय का जिम्मा उनके कंधों पर आ गया. उन्होंने एक सार्वजनिक सभा में स्वामीनारायण मंत्र के साथ नई आध्यात्मिक यात्रा शुरू की. यहीं से उनका नाम स्वामीनारायण पड़ा और उनके संप्रदाय को स्वामी नारायण संप्रदाय के तौर पर जाना गया.
बचपन से आध्यात्म की ओर झुकाव
कहा जाता है कि महज 5 साल की उम्र में बच्चे के तौर पर उन्होंने तमाम धार्मिक ग्रंथ कंठस्थ कर लिए. यज्ञोपवीत संस्कार के बाद उनकी मेधा निखरी.धर्म शास्त्रों में वो पारंगत हो गए. फिर वैराग्य भाव से घर छोड़कर ज्ञान और प्रभु की खोज में भारत भ्रमण पर निकल पड़े.
गुजरात में स्थायी प्रवास
गुजरात पहुंचने और गुरु रामानंद के सानिध्य में उन्हें ज्ञान और परमार्थ की परम अनुभूति हुई. स्वामी नारायण संप्रदाय का पहला मंदिर अहमदाबाद के कालूपुर में 1822 में स्थापित किया गया. फिर वतलसाड में दूसरा मंदिर. उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाया. धीरे-धीरे स्वामी नारायण संप्रदाय की गूंज गुजरात से दूसरे राज्यों और विदेश तक जा पहुंची. अनुयायी तो उन्हें भगवान का अवतार मानते थे.
ईस्ट इंडिया कंपनी का आधिपत्य
अहमदाबाद में 20 नवंबर 1817 को ईस्ट इंडिया कंपनी का आधिपत्य स्थापित हो चुका था. एंड्यू डनलप यहां के पहले कलेक्टर थे.खुद ब्रिटिश अफसर ने स्वामी नारायण संप्रदाय के साधु संन्यासी और अनुयायियों के लिए मंदिर बनाने की जगह दी. फरवरी 1822 में यहां पहला स्वामीनारायण मंदिर खुला.स्वामी नारायण मंदिर में अन्य देवी देवताओं के साथ उनकी मूर्ति रंगमहल नाम के स्थान पर रखी गई, जहां अहमदाबाद में उनका प्रवास था.
हेरिटेज मंदिर
अहमदाबाद का ये मंदिर को बर्मी टीक शैली में बनाया गया था. मेहराब और ब्रैकेट आज सभी स्वामीनारायण मंदिरों में दिखाई देती है. स्वामीनारायण ने अपने जीवन में अहमदाबाद, मूली, धोलका, भूज, जेतलपुर, वडताल, जूनागढ़, गढ़डा और धोलेरा में भव्य मंदिर बनवाए.
स्वामी नारायण मंदिरों की सूची
अमेरिका, ब्रिटेन से लेकर कनाडा तक स्वामी नारायण के 1000 से ज्यादा मंदिर हैं. उनके इन मंदिरों को नर नारायण देव गादी अहमदाबाद या लक्ष्मी नारायण देव गादी वडताल शाखा के बीच बांटा गया है.शिक्षापत्री के तौर पर उनके प्रवचन और धार्मिक उपदेशों को वैध दस्तावेजों का रूप दिया गया है. लेकिन महज 49 वर्ष की आयु में 1830 में उन्होंने देहत्याग दी.
दिल्ली में अक्षरधाम मंदिर
स्वामी नारायण संप्रदाय की ओर से दिल्ली में यमुना नदी की तलहटी में अक्षरधाम मंदिर का निर्माण कराया गया, जो 2005 में पूरा हुआ. ये मंदिर सौ एकड़ में बना है और इसमें हजारों टन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया. मंदिर में 2000 से ज्यादा मूर्तियां देवी देवताओं की हैं.मंदिर के केंद्र में पंचधातु से बनी 11 फीट की स्वामी नारायण की प्रतिमा है. इसे विश्व के सबसे बड़े मंदिर का दर्जा मिला है.
झीलों से घिरा मंदिर
नारायण सरोवरों के बीच अक्षरधाम मंदिर है. यहां 151 झीलों का पानी समाहित है. गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में इस दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर का खिताब दिया गया है.
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