Uttar Pradesh Politics: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक की अपनी राजनीति को और जमीनी स्तर पर ले जाना शुरू कर दिया है. दलित-पिछड़ों के आरक्षण के मुद्दे को उभारते हुए गुरुवार को अखिलेश ने 120 साल पहले छत्रपति शाहूजी महाराज के द्वारा उनके संस्थान में आरक्षण दिए जाने का वाकया याद दिलाया. इसी बहाने दलित महापुरुषों शाहूजी महाराज और ज्योतिराव फुले को याद कर यूपी में नया किनारा तलाश रहे दलितों को पाले में खींचने का प्रयास किया. 


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इससे पहले लोकसभा में अखिलेश के पीडीए की झलक देखने को मिली थी, जब लोकसभा में उन्होंने पुष्पेंद्र सरोज(दलित), लालजी वर्मा (ओबीसी), मोहिबुल्लाह नदवी और जियाउर रहमान बर्क को आगे कर मोदी सरकार पर हमले का मौका दिया. यूपी विधानसभा के मॉनसून सत्र के पहले अखिलेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का ऐलान भी कर सकती है. कभी मायावती के खासमखास रहे इंद्रजीत सरोज को विधानसभा में ये जिम्मेदारी दी जा सकती है. 


अखिलेश ने एक पत्र जारी कर कहा, समाजवादी पार्टी संविधान मान स्तंभ की स्थापना करके आरक्षण का अधिकार दिवस मना रही है. पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक को हक तभी मिलेगा, जब उचित तरीके से आरक्षण का अधिकार उन्हें मिलेगा. समाजवादी पार्टी संविधान और आरक्षण की लड़ाई जारी रखेगी. आरक्षण की परिकल्पना महात्मा ज्योतिराव फुले जी ने की थी और उनका उद्देश्य था कि संख्या के अनुपात में आरक्षण प्रदान करना.


छत्रपति शाहूजी महाराज ने 26 जुलाई 1902 को अपने संस्थान में आरक्षण को लेकर कवायद शुरू की थी. जबकि भीमराव अंबेडकर के प्रयासों से 26 जनवरी 1950 को इसे संवैधानिक रूप दिया गया. ज्योतिराव फुले यानी ज्योतिबा फुले का अधूरा काम शाहूजी महाराज ने कोल्हापुर संस्थान में किया था. लेकिन बीजेपी निजीकरण करके हर जगह नौकरियों में आरक्षण को खत्म कर रही है. सरकार नौकरियां देने के लिए इसलिए प्रयास नहीं कर रही है कि इससे उनकों दलित पिछड़े और अन्य वंचित वर्गों को आरक्षण न देना पड़ जाए. संविधान और आरक्षण के अस्तित्व को खतरा अभी टला नहीं है. समाजवादी पार्टी इसके लिए वैचारिक संघर्ष जारी रखेगी. 


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