Mayawati: बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, संविधान को लेकर दिल्ली से लेकर लखनऊ विधानसभा तक गुरुवार को देखने को मिला. संसद में बीजेपी और कांग्रेस सांसदों के विरोध प्रदर्शन और धक्कामुक्की के साथ लखनऊ विधानसभा में सपा कार्यकर्ताओं का विरोध इतना बढ़ गया कि सदन स्थगित करना पड़ा. 


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राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दलितों वोटों पर बसपा की कमजोर होती पकड़ के बाद सपा, कांग्रेस और भाजपा इस बड़े हिस्से को अपने पाले में लाने के लिए सारे दांव आजमा रहे हैं. यूपी में ही अकेले 21 फीसदी दलित वोट हैं और राज्य की 180 के करीब विधानसभा सीटों पर दलित मतदाता निर्णायक हैं. ऐसे में संविधान के बाद बाबा साहेब पर इतना सियासी घमासान देखने को मिल रहा है. हरियाणा और फिर झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दलित और आदिवासी वोटों के झुकाव का परिणाम भी चौंकाने वाले नतीजों में देखने को मिला है. 2029 के पहले 2027 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव सेमीफाइनल की तरह होगा.


खासकर विपक्षी दल कांग्रेस और सपा के लिए यह करो या मरो जैसे चुनाव से कम नहीं है. लगातार दो बार विधानसभा चुनाव में हार के बाद अखिलेश के लिए सत्ता में वापसी बहुत जरूरी है. अखिलेश बखूबी जानते हैं कि सिर्फ एमवाई से नैय्या पार नहीं लगने वाली है. लिहाजा PDA यानी पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक वोट बड़े पैमाने पर उनके पाले में रहेगा, तभी हिन्दुत्व के मुद्दे को तेज धार दे रहे सीएम योगी की अगुवाई वाली बीजेपी के खिलाफ जीत संभव है. बंटेंगे तो कटेंगे के सीएम योगी के संदेश का असर हिन्दुत्व वोटों के ध्रुवीकरण के तौर पर देखने को हालिया विधानसभा चुनाव में देखने को मिला है. 


यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी प्रेस कान्फ्रेंस कर खुलकर भाजपा और कांग्रेस पर भड़ास निकाली. मायावती ने आरोप लगाया कि दलितों और उपेक्षितों के वोटों की खातिर ये पूरी सियासत हो रही है. इसके खिलाफ बहुजन समाज पार्टी पूरे देश में आंदोलन कर सकती है. कांग्रेस ने कभी अंबेडकर को चुनाव में हरवाया और उन्हें संसद नहीं पहुंचने दिया. दलितों का वोट हासिल करने के लिए और बसपा का वजूद खत्म करने के लिए ये सियासी स्वांग रचा गया. ये घिनौनी राजनीति बंद करनी चाहिए.


सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा पर निशाना साधा. उन्होंने कहा, भाजपा का मन विद्वेष से भरा है वो देश क्या चलाएंगे. संसद में जो हुआ वो सिर्फ़ बाबासाहेब का ही नहीं, उनके दिए संविधान का भी अपमान है. ये बीजेपी की नकारात्मक मानसिकता का एक और नमूना है. देश ने जान लिया है कि भाजपा के लोगों के मन में डॉ. अंबेडकर को लेकर कितनी कटुता भरी है. वो अंबेडकर के संविधान को अपना सबसे बड़ा विरोधी मानते हैं, क्योंकि उनको लगता है कि वे जिस प्रकार गरीब, वंचित, दलितों का शोषण करके अपना प्रभुत्व कायम करते आए हैं वो आगे भी रहा. लेकिन  उनकी इस मंशा के आगे संविधान ढाल बनकर खड़ा है