UP GHOSI BY ELECTION 2023 


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घोसी उपचुनाव का परिणाम आज 8 तारीख को आ गया. सपा के सुधाकर सिंह ने पार्टी से पाला बदलकर बीजेपी खेमे में शामिल हुए दारा सिंह चौहान जैसे पिछड़े वर्ग के बड़े नेता को हरा दिया. यूपी में 2014 के बाद से लगातार चुनाव में मात खा रही सपा के लिए यह बड़ी संजीवनी मानी जा रही है. अखिलेश यादव के लिए तो 2024 के पहले यह बड़ा सियासी बूस्टर डोज है.


 


आइए अब सिलसिलेवार तरीके से जानते है, क्या रहे जीत के फैक्टर 


शिवपाल ने संभाला चुनावी मोर्चा


.सुधाकर सिंह की जीत का सबसे बड़ा क्रेडिट शिवपाल यादव को जाता है, शिवपाल डे वन से ही जब से घोसी उपचुनाव की घोषणा हुई थी, तभी से ही शिवपाल यादव घोसी की रण को साधने के लिए वहां डटे रहे, शिवपाल ना सिर्फ घोसी को साधने के लिए रणनिति तैयार कर रहे थे. बल्कि वह सुधाकर के लिए डोर टू डोर जनसंपर्क करते हुए भी नजर आ रहे थे. अखिलेश ने घोसी को जीताने की जिम्मेदारी चाचा शिवपाल को दिया था.और चाचा ने इसे बखूबी अंजाम भी दिया, शिवपाल सपा के लिए यह कार्य नेताजी मुलायम सिंह के समय से ही करते आ रहे हैं.  


अखिलेश की जनसभा का असर


अखिलेश की जनसभा की हुंकार ने सपा के पक्ष में माहौल बना दिया. यह पहली दफा है जब अखिलेश किसी उपचुनाव में सपा के प्रत्याशी के पक्ष में जनसभा किये हो, अखिलेश यहां तक की आजमगढ़ में अपने भाई धर्मेद्र यादव के लिए भी प्रचार करने नहीं गये थे.अखिलेश के घोसी जाने से ही कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा हो गया और वह दोगुना जोश के साथ सपा को जिताने के लिए मेहनत करने लगे और मेहनत का फल आज उन्हें जीत के रूप मिला.


 


सपा के कैडर को भी क्रेडिट


 घोसी के जीत मे पूरी सपा के कैडर का संघर्ष है. सपा ने घोसी को जितने के लिए न सिर्फ प्रदेश बल्कि राष्ट्रिय टीम के भी कई धुरंधरों की टीम को घोसी को मथने के लिए लगा रखा था. इस उपचुनाव मे रामगोपाल यादव से लेकर स्वामी प्रसाद मौर्या तक घोसी को जीतने के लिए जनसभा और जनसंपर्क कर लोगों को सपा के पक्ष में लोंगो से वोट करने की अपील की. 


सुधाकर को व्यक्तिगत छवि का फायदा 


सुधाकर सिंह का व्यक्तिगत छवि क्षेत्र मे रॉबिनहुड वाली है. 1996 मे पहली बार नत्थूपुर से सपा के टिकट पर विधायक बने थे, उसके बाद साल 2012 मे घोसी से चुनाव जीत विधायक बने, 2017 मे भाजपा के फागू चौहान से चुनाव हार गये थे, तो वही 2022 मे इन्ही का टिकट काट भाजपा से सपा मे आए दारा सिंह को दिया गया था. अब वही दारा फिर भाजपा मे चले गये है, उनके जाने के बाद से ही यहा उपचुनाव हुआ.


दलबदलू होना मुख्य वजह


दारा सिंह चौहान का चुनाव हारने का एक और मुख्य कारण यह है की उनके अंदर धैर्यं की कमी है, राजनीति बिना घैर्य के नहीं होती है. पिछले 8 सालो में दारा सिंह ने चौथी बार पार्टी बदला है. 2015 मे बसपा से भाजपा मे गये, उसके बाद 2022 के ठिक चुनाव से पहले उन्होनें सपा का दामन थाम लिया, अब दारा फिर भाजपा के साथ है. इस प्रकार से जब आप पार्टी बदलेगें तो जनता कब तक आपके साथ रहेगी. जनता के विश्वास पात्र नहीं बन सके.


बसपा का वोट सपा को मिला 


बसपा के उपचुनाव मे प्रत्याशी नहीं उतारने से सपा को उसका फायदा हुआ, वैसे क्षेत्र मे सुधाकर सिंह की दलितों मे मजबूत पकड़ है. और बसपा का प्रत्याशी मैदान मे ना होने से सुधाकर सिंह के लिए यह इस चुनाव मे रामबाण हो गया, इंडिया गठबंधन मे होने वजह से कांग्रेस के समर्थन से और मजबूती मिली, सुधाकर को इस चुनाव में और कही न कही की दल न बदलने फायदा हुआ. वही सपा ने भी अपने पुराने कार्यकर्ता पर ही दांव लगाया. और क्षेत्र की जनता ने भी अपना भरोसा बनाये रखा जिसका नतीजा सुधाकर सिंह को जीत के रूप में नसीब हुई.


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