Madhya Pradesh Election results 2023: मध्य प्रदेश एक बार फिर भाजपा का जादू चला है. यहाँ बीजेपी को प्रचण्ड बहुमत मिला है. तमाम एग्जिट पोल को फेल करते हुए भाजपा ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया है. भाजपा की जीत में लाडली लक्ष्मी समेत इन पांच मुद्दे अहम रहे.


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 *लाडली बहना योजना ने बदली भाजपा की तकदीर * 
भाजपा के लिए लाडली बहना योजना गेम चेंजर साबित हुई है. लाडली बहना योजना के अंतर्गत महिलाओं को 1250 रूपये प्रति महीने दिए जा रहे हैं. चुनाव से छह महीने पहले शुरू हुई इस योजना ने विपक्षी कांग्रेस को चारों खाने चित्त कर दिया. यहाँ तक की शिवराज ने लाडली बहना योजना की राशि 3000 रु करने की बात कही है.


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 दिग्गज नेताओं का विधानसभा चुनाव में उतरना 
विधानसभा चुनाव में भाजपा ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद सिंह पटेल, फगगन सिंह कुलस्ते को जहां चुनावी मैदान में उतारा वहीं राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, सांसद गणेश सिंह, रीती पाठक, राकेश सिंह समेत कई सांसदों को विधानसभा चुनाव मैदान में उतारा. इसका सीधा असर इन नेताओं की आसपास वाली सीटों पर पड़ा.


 मोदी-योगी समेत दिग्गज नेताओं का चुनावी प्रचार 
भाजपा ने शुरू से ही आक्रमक तरीके से चुनाव प्रचार किया. यहाँ ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार की कमान संभाली. उन्होंने डबल इंजन की सरकार को प्रदेश के विकास के लिए ज़रूरत बताया. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath), भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा (Jagat Prakash Nadda), स्मृति ईरानी, भूपेंद्र यादव समेत कई नेताओं की ताबड़तोड़ रैलियां हुईं.


 शिवराज और सिंधिया का सियासी दोस्ती 
मध्यप्रदेश में सीएम शिवराज (Shivraj Singh Chunav) का जहां अनुभव काम आया वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya scindhia) की की लोकप्रियता का भी फायदा भाजपा को मिला.


 धान और गेंहूँ का रेट बढ़ाया
चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने धान पर समर्थन मूल्य 3100 रु करने की घोषणा कर मास्टर स्ट्रोक खेला. इसी तरह गेंहूँ का समर्थन मूल्य 270 रु करने की घोषणा किसानों को ख़ूब पसंद आईं.


शिवराज सिंह चौहान की अगुआई में जहां भाजपा एकजुट नज़र आई वहीं कांग्रेस में दिग्विजय सिंह (Digvijya singh) और कमलनाथ (Kamalnath) के बीच खुलकर सियासी अदावत नज़र आई.


गुटों में बटी कांग्रेस 
मध्यप्रदेश में कांग्रेस एक बार फिर बिखरी हुई और अलग-अलग गुटों में नज़र आई. कमलनाथ जहां महाकौशल में अपने गुट के नेताओं तक सीमित रहे वहीं दिग्विजय सिंह, अजय सिंह राहुल विंध्य, अरुण यादव निमाड़, सुरेश पचौरी तथा कांतिलाल भूरिया झाबुआ से बाहर नहीं निकल पाए.


 जनाधार विहीन स्थानीय नेतृत्व 
मध्यप्रदेश कांग्रेस के पास शिवराज जैसा जनाधार वाला नेता नहीं रहा. कमलनाथ चुनाव से ठीक पहले सक्रिय हुए. कांग्रेस युवा नेतृत्व भी पेश नहीं कर सकी.


 स्थानीय मुद्दों का अभाव 
प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस एमपी के मुद्दों के बजाय केंद्र से जुड़े मुद्दों पर बात करती रही. इससे एक बार फिर वह युवाओं और किसान को आकर्षित करने में नाकाम रही.


 इंडिया का बिखरना 
विधानसभा चुनाव में इण्डिया गठबंधन की नाकामी एक बड़ी वजह रही. चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने इंडिया गठबंधन छोड़ने की बात कहकर कांग्रेस को न सिर्फ झटका दिया बल्कि प्रदेश की कई सीटों पर सपा और बीएसपी जैसे दलों ने कांग्रेस के वोटबैंक में ख़ूब सेंधमारी की.


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