उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव की नौ सीटों पर रुझान को देखें तो यह साफ संकेत मिल रहा है कि सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी अपनी साख बचाने में कामयाब होती दिख रही है. वहीं लोकसभा चुनाव में पीडीए कार्ड चलने से गदगद अखिलेश यादव पर उनका ओवरकान्फिडेंस भारी पड़ रहा है. यूपी की नौ सीटों में से छह सीटों पर भाजपा जीत की ओर बढ़ रही है, जबकि सपा तीन सीटों पर सिमटती दिख रही है. मुस्लिम बहुल कुंदरकी में बीजेपी आगे चल रही है. सपा सिर्फ अखिलेश की सीट करहल,सीसामऊ और कटेहरी में बढ़त बनाए हुए है. 


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उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव में अखिलेश के पिछड़े दलित अल्पसंख्यक कार्ड ने बड़ा उलटफेर किया था. सपा और कांग्रेस के गठबंधन ने यूपी में 43 सीटें जीतकर बीजेपी को केंद्र में बहुमत के आंकड़े से काफी पीछे धकेल दिया था. बीजेपी सिर्फ 37 सीटों पर सिमट कर रह गई थी. 


अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव के बाद करहल विधानसभा सीट छोड़ दी थी और कन्नौज लोकसभा सांसद रहते हुए दिल्ली शिफ्ट हो गए. लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सपा ने केंद्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभाने के संकेत दिए थे. 240 सीटों पर सिमटी बीजेपी, जो नीतीश और चंद्रबाबू नायडू की बैसाखी पर टिकी थी, उसे देखते हुए यह अनुमान सपा-कांग्रेस को था कि उन्हें जल्द ही मौका मिल सकता है. अखिलेश केंद्र की खिचड़ी सरकार में मुलायम की तरह बड़ी भूमिका निभाने की सोच रहे थे, लेकिन यह जल्दबाजी में लिया निर्णय साबित हुआ. 


लोकसभा चुनाव में यूपी में हार के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने आठ सांसदों के विधानसभा सीट छोड़ते ही उपचुनाव की तैयारी अकेले बलबूते पर शुरू कर दी. दोनों डिप्टी सीएम से अनबन के संकेतों के बीच सभी 10 सीटों पर 3-3 मंत्रियों की जिम्मेदारी तय कर दी. खुद उन्होंने मिल्कीपुर, फूलपुर, करहल, मझवां, कटेहरी, कुंदरकी,गाजियाबाद और सीसामऊ विधानसभा सीटों का कई बार दौरा किया. इन विधानसभा सीटों पर हजारों करोड़ रुपये की परियोजनाओं की घोषणा की. मझवां सीट पर भी संजय निषाद को मनाने में पार्टी कामयाब रही. 


मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव
अखिलेश का फूलपुर, सीसामऊ, कुंदरकी और मीरापुर में चार मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारने का भी खामियाजा भुगतना पड़ा. इससे हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण में बीजेपी को मदद मिली और बंटेंगे तो कटेंगे का नारा चल गया. फूलपुर सीट पर भी मुस्लिम प्रत्याशी उतारने का निर्णय किसी को भी हजम नहीं हुआ. कांग्रेस ये सीट सपा से मांग रही थी.


परिवारवाद भी दिखा
इन चार सीटों के अलावा अखिलेश यादव ने तीन सीटों पर परिवार के लोगों को टिकट दिया. इसमें करहल विधानसभा सीट से तेज प्रताप यादव, सीसामऊ से नसीम सोलंकी और अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट से सांसद लालजी वर्मा की पत्नी शोभवती वर्मा को टिकट दिया. भले ही इन सीटों पर सपा जीत की ओर बढ़ रही हो, लेकिन परिवारवाद का मैसेज कार्यकर्ताओं और जनता के बीच सही नहीं गया. 


कांग्रेस को पीछे धकेलना
अखिलेश ने लोकसभा चुनाव की तरह उपचुनाव में भी कांग्रेस को ठेंगा दिखाते हुए उसे एक भी मनपंसद सीट देने से इनकार कर दिया. साथ ही सात सीटों पर एकतरफा तौर पर प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया. इस कारण उपचुनाव में कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं ने उत्साह नहीं दिखाया. अगर कांग्रेस सपा पूरी ताकत लड़ती तो एक-दो सीट पर परिणाम बदल सकता था.