उत्तर प्रदेश सरकार ने नजूल विधेयक पर कदम वापस खींचे हैं ताकि इसे पूरी तैयारी के साथ पारित कराया जाए. गुरुवार को विधानसभा सत्र के आखिरी दिन विधान परिषद में यह बिल प्रवर समिति को भेजने का फैसला लिया गया. लगातार विपक्ष के विधायकों के साथ साथ भाजपा के विधायक भी इसका विरोध कर रहे थे. बुधवार को ही विधानसभा में यह विधेयक पास हुआ था.  अब विधान परिषद से इसे प्रवर समिति को भेजा गया है ताकि विधायकों के सुझावों के साथ इसमें फिर से इसमें संशोधन करके दोबारा उच्च सदन में लाया जाए. 


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विधानपरिषद में सदस्य और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने इस बिल को प्रवर समिति को सौंपा जाने का प्रस्ताव रखा और इसे स्वीकार कर लिया गया. बताया जाता है कि उस दौरान दोनों उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य भी सदन में मौजूद थे. बताया जाता है कि सीएम योगी आदित्यनाथ की सहमति के बाद ये नजूल भूमि संबंधी विधेयक वापस लेने पर निर्णय हुआ.


बुधवार को विधानसभा में इस बिल पर चर्चा के दौरान बीजेपी विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी, मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह आदि ने भी विधेयक का विरोध किया था. राजा भैया ने भी इस पर आपत्तियां उठाई थीं. ज्यादातर विधायकों को आशंका था कि बिल के जरिये दशकों से ऐसी जमीनों पर रह रहे लोगों को बेघर किया जा सकता है. दशकों से जो उस जमीन को फ्रीहोल्ड कराने के लिए किस्तें जमा करा रहे हैं, उनकी किस्त वापस करने से उन्हें बेदखल नहीं किया जा सकता. इसको लेकर विपक्षी विधायकों से भी तीखी बहस हुई थी.


केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी अपनी प्रतिक्रिया नजूल बिल पर दी थी. अनुप्रिया पटेल ने कहा, नजूल भूमि संबंधी विधेयक को चर्चा के बिना विधान परिषद की प्रवर समिति को भेजा गया है. गहन चर्चा के बिना लाए गए नजूल भूमि संबंधी विधेयक के बारे में उनकी राय है कि यह विधेयक न सिर्फ़ गैरजरूरी है, बल्कि आम जनता की भावनाओं के विपरीत भी है. उत्तर प्रदेश सरकार को इस विधेयक को तत्काल वापस लेना चाहिए और इस मामले में जिन अधिकारियों ने गुमराह किया है उनके खिलाफ़ सख़्त कार्रवाई होनी चाहिए.