गांव के छोटे किसान ने 30 किलो धान के बीज नेशनल सीड कारपोरेशन से खरीदे थे. ये गोविंद ब्रांड के धान थे. किसान ने मार्च 2005 में धान के इन बीजों के लिए 31,323 रुपये का भुगतान किया. किसान ने इन धान के बीजों को अपने 6 एकड़ के खेत में बोया. उस किसान ने ये खेती बटाई पर ली हुई थी. 


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बीजों की क्वालिटी सही न होने के कारण फसल पूरी तरह खराब हो गई. इस पर पीड़ित किसान ने नेशनल सीड कारपोरेशन से इसकी शिकायत की. कारपोरेशन ने किसान को कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया. किसान ने एग्रीकल्चर डायरेक्टर को भी ये शिकायत भेजी. उप निदेशक ने जांच के लिए कृषि विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया. लेकिन जब फायदा न हुआ तो उसने जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराई. समिति ने 21 जुलाई 2005 को उसकी फसल का निरीक्षण किया.


जांच समिति ने यह पाया कि 40 फीसदी से ज्यादा बीज घटिया थे और इसी कारण फसल खराब हुई. किसान ने 3.38 लाख रुपये का नुकसान इस कारण खेती में होने का दावा किया. उसने 1 लाख रुपये मानसिक पीड़ा औऱ 5500 रुपये कानून वाद के खर्च के भी मांगे. सीड कंपनी ने कहा कि किसान को अपने बीजों का परीक्षण सरकारी लैब में कराना चाहिए था. लेकिन उपभोक्ता फोरम ने किसान के दावे को सही माना. उसने नेशनल सीड कारपोरेशन से किसान को 1 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया. 


जिला उपभोक्ता फोरम के फैसले के खिलाफ बीज कंपनी ने राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की, जो खारिज कर दी गई. इसके बाद कंपनी ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में शिकायत कराई. राष्ट्रीय आयोग ने भी पाया कि बीजों में मिलावट की बात जांच में सही पाई गई है, लिहाजा किसान मुआवजे का हकदार है.


आयोग ने कहा कि पीड़ित ने ये जमीन बटाई पर ली थी, लिहाजा उसे नुकसान हुआ. कम पढ़ा लिखा किसान बीजों का सैंपल कैसे अपने पास सुरक्षित रख पाता. राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने भी किसान को एक लाख रुपये मुआवजा देनेका आदेश बरकरार रखा. आयोग ने यह फैसला नेशनल सीड कारपोरेशन बनाम मालदा माल कृष्णन के मामले में सुनाया. 


(यह जानकारी उपभोक्ता मामलों की जानकार शीतल कपूर की ओर से दी गई है...) 


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