UP NEWS: यूपी का इकलौता मंदिर, जहां दिन में तीन बार रूप बदलती हैं मां शारदा
नवरात्रि के त्योहार पर नौ दिन मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा सहित भव्य आयोजन किये जाते हैं. भवन को शक्ति पीठ शारदा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है. इनके दर्शन के लिये पूरे भारत से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. पूरे12 महीने भक्तों का तांता यहां लगा रहता है.
जीतेन्द्र सोनी/जालौन: उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के बैरागढ़ गांव में स्थित ये मंदिर. मां के भवन को शक्ति पीठ शारदा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है. हिन्दू राजा पृथ्वीराज और बुन्देलखंड के वीर योद्धा आल्हा-ऊदल के युद्ध का आज के समय में भी बोल-बाला है. मान्यता इतनी है कि दूर-दराज के क्षत्रों से भी लोग यहां दर्शन करने के लिए आते हैं.
तीन रूपों में दिखाई देती है मूर्ति
शक्ति पीठ बैरागढ़ मंदिर की स्थापना चन्देलकालीन राजा टोडलमल ने ग्यारहवीं सदी में की थी. मंदिर के पीछे बने एक कुंड से मां शारदा की मूर्ति निकली थी. भक्तों का कहना हैं कि मां की मूर्ति तीन रूपों में दिखाई देती है. सुबह के समय मूर्ति कन्या के रूप में नजर आती है, दोपहर के समय युवती के रूप में और शाम के समय मां के रूप में मूर्ति नजर आती हैं.
कुंड से मां शारदा हुई प्रकट
प्राचीन किंवदंतियों के अनुसार, कुंड से मां शारदा प्रकट हुई थीं. इसलिए इस स्थान को शारदा देवी सिद्धि पीठ कहा जाता है. शारदा देवी का मंदिर जालौन के मुख्यालय उरई से लगभग 30 किलो मीटर की दूरी पर स्थित ग्राम बैरागढ़ में है. यहां पर ज्ञान की देवी सरस्वती मां शारदा के रूप में विराजमान हैं. और इनकी मूर्ति लाल पत्थर से बनी है.
आल्हा को था मां शारदा का वरदान
आल्हा और ऊदल मां शारदा के भक्त थे. आल्हा को मां शारदा का वरदान था कि उन्हें युद्ध में कोई नहीं हरा पायेगा. मां शारदा का यह शक्तिपीठ पृथ्वीराज और आल्हा-ऊदल के युद्ध का साक्षी है. पृथ्वीराज ने बुन्देलखंड को जीतने के उद्देश्य से ग्यारहवीं सदी के तत्कालीन चन्देल राजा परमर्दिदेव पर चढ़ाई की थी. उस समय चन्देलों की राजधानी महोबा थी. आल्हा-ऊदल राजा परमाल के मंत्री के साथ वीर योद्धा भी थे. बैरागढ़ के युद्ध में आल्हा-ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में बुरी तरह परास्त कर दिया था.
आल्हा ने मां शारदा के चरणों के बगल में गाढ़ी सांग
ऊदल की मौत के बाद आल्हा ने प्रतिशोध लेते हुये अकेले पृथ्वीराज से युद्ध किया और विजय प्राप्त की थी. आल्हा ने विजय स्वरूप मां शारदा के चरणों के बगल में सांग गाढ़ दी. पृथ्वीराज चौहान सांग को न ही उखाड़ सके और न ही सांग की नोंक को सीधा कर पाए. यह सांग 30 फिट से भी ऊंची है और जमीन में भी इतना ही गढ़ा है. वह सांग आज भी मन्दिर के मठ के ऊपर गड़ी है. तभी से यहां पर मां शारदा देवी की पूजा होती चली आ रही है.
इस वजह से पड़ा बैरागढ़ नाम
मां शारदा के दर्शन करने प्राचीन समय में आल्हा-ऊदल आते थे. आल्हा-ऊदल औऱ पृथ्वीराज चौहान के बीच हुऐ युद्ध में ऊदल की मौत के बाद आल्हा ने प्रतिशोध लेते हुए अकेले पृथ्वीराज से युद्ध किया और विजय प्राप्त की थी. इसके बाद आल्हा ने विजय स्वरूप मां शारदा के चरणों में सांग गाढ़ दी और युद्ध से बैराग ले लिया. तभी से यहां का नाम बैरागढ़ पड़ गया.
देश में दो ही स्थान पर है यह मन्दिर
देश में यह मन्दिर केवल दो ही स्थान पर है, जिसमें एक जालौन के बैरागढ़ में और दूसरा मध्य प्रदेश के सतना जनपद के मैहर में है. मन्दिर की प्रचीनता और सिद्ध पीठ होने के कारण मां शारदा के दर्शन करने के लिए दूर- दूर से श्रद्धालु आते हैं. यहां विशाल मेला लगता है, और यह मेला पूरे एक महीने चलता है.
हर मनोकामना होती है पूरी
भक्तों की सारी मनोकामनाएं यहां पूर्ण होती हैं. यहां के कुंड में नहाने से सभी प्रकार के चर्म रोग खत्म हो जाते हैं. यहां जालौन से ही नहीं, बल्कि दूर-दूर से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं. पूरे 12 महीनों यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. नवरात्रि पर यहां कई भव्य आयोजन किये जाते हैं.
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