रायबरेली के इतिहास का काला दिन: 101 साल पहले आज ही हुआ था मुंशीगंज गोलीकांड, निहत्थे किसानों पर बरसी थीं गोलियां
इतिहास में सन् 1919 का जलियावाला बाग गोलीकांड काले अध्याय के रूप में शामिल है. ऐसा ही एक काला किस्सा यूपी के रायबरेली के पन्नों में दर्ज है. 7 जनवरी 1921 को किसानों पर हुए गोलीकांड को आज 101 साल पूरे हो गए हैं. इसे मुंशीगंज गोलीकांड के नाम से भी जाना जाता है.
मुंशीगंज गोलीकांड: उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले (Raebareli) में एक मुंशीगंज (Munshiganj) किसान आंदोलन है. इस जगह को किसानों की याद में बनाया गया है, जो अंग्रेजों द्वारा किसानों पर हुए जुल्म और सितम की याद दिलाता है. इतिहास में सन् 1919 का जलियावाला बाग गोलीकांड काले अध्याय के रूप में शामिल है. ऐसा ही एक काला किस्सा यूपी के रायबरेली के पन्नों में दर्ज है. 7 जनवरी 1921 को किसानों पर हुए गोलीकांड को आज 101 साल पूरे हो गए हैं. इसे मुंशीगंज गोलीकांड के नाम से भी जाना जाता है.
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किसानों के बलिदान और त्याग की गाथा
रायबरेली का किसान आंदोलन अंग्रेजों के जुल्म और सितम के काले अध्याय के विरुद्ध किसानों के बलिदान और त्याग की गाथा है. निहत्थे और बेकसूर सैकड़ों किसानों पर आज ही के दिन अंग्रेजों शासन के हुक्म से पुलिस बलों द्वारा गोलियों की बौछार की गई थी. इसके बाद सई नदी की धारा किसानों के खून से रंग गई. देश के लिए तमाम किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी. बता दें, अंग्रेजों के शासनकाल में रायबरेली जमींदारों और कोटेदारों का खासा वर्चस्व रहता था. जो किसानों को जमीन मुहैया कराकर उनसे अंग्रजों के लिए टैक्स वसूलते थे.
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किसानों ने की थी जनसभा
5 जनवरी 1921 को किसान तत्कालीन तालुकेदार के अत्याचारों से परेशान होकर अमोल शर्मा और बाबा जानकीदास के नेतृत्व में एक जनसभा कर रहे थे. इस जनसभा में कई गांव के किसान शामिल हुए थे. इस जनसभा को असफल करने के मकसद से तालुकेदार ने तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर एजी शेरिफ से मिलकर दोनों नेताओं को गिरफ्तार करवा कर लखनऊ जेल भिजवा दिया था. इसके बाद अगले ही दिन यह खबर गांव में फैल गई कि दोनों नेताओं की लखनऊ जेल प्रशासन द्वारा हत्या करवा दी गई है.
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जवाहरलाल नेहरू को रोक दिया गया
7 जनवरी 1921 को रायबरेली में एक तरफ सई नदी के छोर पर किसानों का अपने नेताओं के समर्थन में एक विशाल जनसमूह जुटने लगा. किसानों के भारी भीड़ और विरोध को देखते हुए नदी किनारे बड़ी मात्रा में पुलिस बल तैनात तक दिया गया था. इस बढ़ती हालात को देखते हुए जवाहरलाल नेहरू ने भी मुंशीगंज का रुख किया, लेकिन पहुंचने से पहले ही उन्हें कलेक्ट्रेट परिसर के नजदीक ही रोक दिया गया. उन्हें नदी किनारे पहुंचने नहीं दिया गया.
700 से अधिक किसान मारे गए थे
बता दें, अंग्रेजों ने पहले ही गोलीकांड की योजना बना ली थी. जवाहरलाल नेहरू को सिर्फ इसलिए नजरबंद कर लिया गया था ताकि कहीं नेहरू को गोली गई तो पूरा मामला गर्म हो जाएगा. प्रशासन के कहने पर सभा में मौजूद सभी सैकड़ों निहत्थे किसानों पर अंग्रेजों ने गोलियां बरसा दीं. इसके बाद से वहां खून की नदी बह गई. इस गोलीकांड में करीब 700 से अधिक किसान मारे गए थे और 1500 से अधिक घायल हुए थे. यह घटना जलियावाला बोग के बाद हुआ और यह गुलाम भारत का सबसे बड़ा हत्याकांड था.
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