UP News: दोबारा हो सकता है रेलवे ट्रैक पर लॉकडाउन जैसा हादसा, खतरे में UP के 20 गांव के लोग
Indian Railway: कानपुर देहात में लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के साथ हुआ हादसा दोबारा हो सकता है, मौत के पुल से जिंदगियां हर दिन गुजर रही हैं....
आलोक त्रिपाठी/कानपुर देहात: गुजरात के मोरबी पुल के अचानक टूटने पर 100 से अधिक लोगों की जान चली गई. वहीं, लाकडॉउन के समय रेल की पटरियों पर घर का सफर तय करते समय प्रवासी मजदूरों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. दोनों हादसे के बाद देश में सभी राजनैतिक दलों के नेताओं सहित तमाम लोगों ने गहरा शोक जताया था. मोरबी हादसे के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के सभी अधिकारियों को निर्देश दिया. ताकि प्रदेश के सभी पुलों का निरीक्षण किया जाए. साथ ही उनकी हालत सुधारी जाए. वहीं, कानपुर देहात के रूरा रेलवे स्टेशन के ट्रेक पर पटरी के किनारे रेलवे का बनाया गया अस्थाई पुल मौत को दावत दे रहा है. आइए बताते हैं पूरा मामला.
दरअसल, आप तस्वीरों को गौर से देखिए, जिस रेल लाइन पर कई मील प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेनों के रूप में मौत दौड़ रही है. आपको बता दें कि कानपुर देहात के रूरा रेलवे स्टेशन स्टेशन से चांद कदमों से दूर, रेलवे लाइन का कुछ हिस्सा राम गंगा नहर के ऊपर से गुजरता है. हालाकि, इसकी दूरी 35 से 40 फिट से ज्यादा नहीं है, लेकिन इस अस्थाई पुल से लगभग 25 हजार लोग रोजाना गुजरते हैं. वजह ऐसी की सुनकर आप भी दंग रह जाएंगे दरअसल जिस राम गंगा नहर के ऊपर टेली लाइन गुजरती है. आपको बता दें कि ये नहर उसे दो हिस्सों में बांटती है.
आपको बता दें कि दोनों तरफ से लगभग बीस गांव के हजारों लोग इस ट्रेक से गुजरते हैं. गांव के लोग पटरी के किनारे दो फीट चौड़े लोहे की पट्टी के सहारे वैकल्पिक रास्ते से अपने गंतव्य कर पहुंचते हैं. इस अस्थाई पुल के सहारे कई गांव के लोग गुजरते हैं. इसमें बाजूपुरवा, पुत्तीपुरवा, रूरा, अंबरपुर समेत ऐसे 20 गांव के लोग इस समस्या से प्रभावित हैं. हालांकि, ये सफर कितना जोखिम भरी है, इसे शायद वो लोग समझ सकते हैं, जो इसे रोज पार करते है. आपको बता दें कि रेलवे ट्रैक किनारे ये सफर बेहद खतरनाक हो सकता है लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के साथ हुई घटना दोबारा हो सकती है इससे इनकार नहीं किया जा सकता.
इस बाबत स्थानीय सुमित ने बताया कि पुल से ऐसे ही लगभग 30 सालों से सफर तय कर रहे हैं. उनके पास अपने घर पहुंचने के लिए कोई और विकल्प नहीं है. जिस रास्ते से गांवों को जोड़ा गया है, वो कई किलोमीटर दूर है. लोग अपने बच्चों को लेकर इस पुल से गुजरते हैं. मासूम बच्चे भी अपने स्कूल साइकिलों से इसी पुल पर चलकर सफर तय करते हैं. महिला ,पुरुष और बच्चों साहिन बुजुर्ग भी ऐसे ही लंबे समय से आवागमन करते हैं. लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. अब देखना है कि क्या इन लोगों के लिए कोई स्थाई पुल की व्यवस्था हो पाएगी.
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