समान नागरिक संहिता पर PM मोदी के बयान से खलबली, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने UCC पर मैराथन बैठक कर बड़ा ऐलान किया
UP Politics : पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की वकालत करते हुए सवाल किया था कि दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा?. उन्होंने कहा था कि संविधान में भी सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार का उल्लेख है.
Uniform Civil Code : समान नागरिक संहिता कानून को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बाद मुस्लिमों में खलबली मच गई है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मंगलवार देर रात आपातकालीन बैठक. करीब 3 घंटे तक चली बैठक में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता कानून का विरोध करने का फैसला किया.
शुरू से ही UCC का विरोध कर रहे
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना मुहम्मद फजल-उर-रहीम मुजद्दिदी साहब ने कहा कि देश में मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा और इसे प्रभावित करने वाले किसी भी कानून को रोकना बोर्ड के मुख्य उद्देश्यों में से है. इसलिए बोर्ड शुरू से ही समान नागरिक संहिता का विरोध करता रहा है. दुर्भाग्यवश सरकार और सरकारी संगठन इस मुद्दे को बार-बार उठाते रहे हैं.
2018 में भी बोर्ड से राय मांगी थी
उन्होंने कहा कि भारत के विधि आयोग ने 2018 में भी इस विषय पर राय मांगी थी, बोर्ड ने एक विस्तृत और तर्कसंगत जवाब दाखिल किया था. इसका सारांश यह था कि समान नागरिक संहिता संविधान की भावना के विरुद्ध है और देशहित में भी नहीं है. इससे नुकसान होने का डर है. बोर्ड के एक प्रतिनिधिमंडल ने विधि आयोग के समक्ष अपनी दलीलें भी रखीं.
14 जुलाई तक जवाब दाखिल करने का समय
इतना ही नहीं काफी हद तक आयोग ने इसे स्वीकार भी कर लिया और घोषणा कर दी कि फिलहाल समान नागरिक संहिता की कोई आवश्यकता नहीं है. लेकिन, दुर्भाग्य से विधि आयोग ने 14 जून 2023 को दोबारा जनता को एक नोटिस जारी कर समान नागरिक संहिता के संबंध में राय मांगी है और जवाब दाखिल करने के लिए 14 जुलाई 2023 तक का समय निर्धारित किया है.
बोर्ड को करीब 6 महीने का समय मिले
मौलाना मुहम्मद फजल-उर-रहीम मुजद्दिदी साहब ने कहा कि बोर्ड इस संबंध में सक्रिय है. बोर्ड ने आयोग को पत्र लिखकर इस बात पर नाराजगी जताई है कि इतने महत्वपूर्ण मुद्दे के लिए केवल एक माह की अवधि निर्धारित की गई है. इसलिए इस अवधि को कम से कम 6 महीने तक बढ़ाया जाना चाहिए. साथ ही बोर्ड ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए देश के प्रसिद्ध और विशेषज्ञ न्यायविदों से परामर्श करके एक विस्तृत जवाब भी तैयार किया है. जो लगभग एक सौ पेज का है.
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