गंगा की सफाई में खर्च हो रहे पैसे, लेकिन स्थिति जस की तस! हाई कोर्ट ने जताई नाराजगी...
Allahabad High Court News: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सवाल किया है कि यूपी के जिन शहरों से गुजर रही है, वहां के नालों को एसटीपी से जोड़ा गया है या नहीं? इसके अलावा, कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि अधिकारी जवाब देने के बजाय अपनी जिम्मेदारी शटलकॉक की तरह एक दूसरे के पाले में डाल रहे हैं...
मोहम्मद गुफरान/प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गंगा प्रदूषण के मामले में सुनवाई करते हुए जल निगम, उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित अन्य विभागों की कार्यप्रणाली पर तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि विभाग अपनी जवाबदेही को शटलकॉक की तरह शिफ्ट कर रहे हैं. जल निगम के पास पर्यावरण विशेषज्ञ नहीं, फिर वह पर्यावरण की निगरानी कैसे कर रहा है? सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चलाने की जिम्मेदारी प्राइवेट कंपनी को सौंप दी गई है और खुद अक्षम अधिकारी के मार्फत निगरानी कर रहा है.
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नमामि गंगे प्रोजेक्ट में कब कितना पैसा खर्च हुआ, रिपोर्ट तलब
कोर्ट ने इस मामले में तीखी नाराजगी जताई है. कोर्ट ने महानिदेशक नेशनल मिशन क्लीन गंगा से उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी और पूछा है कि नमामि गंगे परियोजना के तहत अब तक कितना पैसा खर्च किया है? वहीं, कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी जांच रिपोर्ट मांगी है. बोर्ड ने एसटीपी की जांच के लिए 28 टीमें गठित की हैं. यूपीपीसीबी से टेस्टिंग, शिकायत निस्तारण और अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है.
जानकारी पेश करने के लिए मांगा गया समय
इसके साथ ही, न्यायालय ने यह भी पूछा कि गंगा जिन शहरों से होकर गुजरी हैं, वहां पर बने नालों को एसटीपी से जोड़ा गया या नहीं? नालों की स्थिति, डिस्चार्ज, ट्रीटमेंट और जल की गुणवत्ता को लेकर जानकारी मांगी है. एएसजीआई ने कोर्ट से विस्तृत जानकारी पेश करने के लिए समय मांगा. याचिका की सुनवाई 26 सितंबर को होगी.
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कोर्ट की नाराजगी, अपनी जिम्मेदारियों का सही जवाब नहीं दे रहे अधिकारी
बता दें, चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और अजीत कुमार की पूर्णपीठ ने गंगा प्रदूषण के मामले में दाखिल जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से अधिवक्ता बाल मुकुंद सिंह, भारत सरकार जलशक्ति मंत्रालय की तरफ से एक एसजीआई शशि प्रकाश सिंह व राजेश त्रिपाठी, नगर निगम प्रयागराज के अधिवक्ता एसडी कौटिल्य ने पक्ष रखा. सुनवाई के दौरान गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने में आपसी तालमेल बनाकर काम न करने पर कोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा कि मामले में विभाग अपनी-अपनी जिम्मेदारियों का सही से जवाब देने के बजाय शटलकॉक की तरह एक-दूसरे के पाले में डाल रहे हैं.
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15 जिलों में 74 नाले गंगा में गिरते हैं, स्थित जस की तस
कोर्ट ने कहा कि हकीकत में विभागों के कार्य आंखों में धूल झोंकने वाले हैं. कोर्ट ने उन शहरों के साइट प्लान को भी देखा जहां से गंगा गुजरी है. कोर्ट को न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण कुमार गुप्ता ने बताया कि यूपी में गंगा 15 शहरों से गुजरती है. उसके लिए साइट प्लान की रिपोर्ट प्रमुख सचिव नमामि गंगे की ओर से दाखिल की गई है. इन शहरों में 74 नाले हैं, जो गंगा में गिर रहे हैं. इस पर कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता नीरज तिवारी से पूछा कि इन शहरों की एसटीपी से शहरों के नालों को जोड़ा गया है या नहीं? इस पर न्यायमित्र गुप्ता ने कहा कि प्रयागराज सहित अन्य जिलों में तकरीबन 58 से 60 फीसदी कनेक्ट किए जा चुके हैं. तीन जिलों में बलिया, प्रतापगढ़ सहित तीन जिलों में एसटीपी नहीं बनी हैं. कानपुर की ट्रेनरियों को कहीं शिफ्ट नहीं किया गया. इतने पैसे खर्च करने के बावजूद गंगा की स्थिति जस की तस है.
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