काकोरी ट्रेन एक्शन: जब आजादी के मतवालों ने लूटी थी ट्रेन, अंग्रेजी हुकूमत की हिल गई थी चूलें, जानें उस ऐतिहासिक दिन की कहानी
Azadi ka Amrit Mahotsav: कहानी उस ऐतिहासिक दिन की, जब लखनऊ के काकोरी में क्रांतिकारियों ने ट्रेन को लूट कर ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनौती दे डाली थी.....
"यूं ही नहीं मिली आजादी हमें
हैं दाम चुकाए वीरों ने
कुछ हंस कर चढ़े हैं फांसी पर
कुछ ने जख्म सहे अंग्रेजों के"
Azadi ka Amrit Mahotsav: इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो कई ऐसे किस्से, कई ऐसी घटनाएं हैं, जिन्होंने अंग्रेजों के जुल्म की बेड़ियों में जकड़े भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्हीं में से एक है काकोरी कांड या यह कहें काकोरी ट्रेन एक्शन. यह उस वक्त की बात है जब महात्मा गांधी ने चौरी-चौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था. लोगों को इससे एक बड़ा झटका लगा. लेकिन इसके साथ ही नींव पड़ी एक ऐसी घटना की...जिसने देशवासियों के भीतर विरोध की अलख को और मजबूत कर दिया.
9 अगस्त 1925 एक क्रांतिकारी दिन
9 अगस्त 1925, यह वह तारीख है जब हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़े क्रांतिकारियों ने काकोरी से चली ट्रेन को लूटने का प्लान बनाया. इस प्लान में शचींद्रनाथ सान्याल, रामप्रसाद बिस्मिल,राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह, मन्मथनाथ गुप्त, जोगेशचंद्र चटर्जी, गोविंद चरणकार, सुरेशचंद्र भट्टाचार्य, अशफाक उल्ला खां समेत 10 क्रांतिकारी शामिल थे. जब सहारनपुर से लखनऊ जा रही ट्रेन लखनऊ से करीब 8 मील दूर थी, उसे काकोरी स्टेशन पर रोका गया. ट्रेन में बैठे क्रांतिकारियों ने गाड़ी को रुकवाया और बंदूक की नोक पर गार्ड को बंधक बना 4601 रुपये के सरकारी खजाने को लूट लिया. इस लूट के पीछे मकसद उन पैसों से हथियार खरीदना था. ताकि अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध को मजबूती मिल सके. हालांकि यह प्लान भी आसान नहीं था. जब HRA की बैठक हुई तो दल से जुड़े अशफाक उल्ला खां ने इसका विरोध किया था. उनका मानना था कि इससे सरकार से सीधा मोर्चा तो ले लेंगे, लेकिन दल समाप्त हो जाएगा .लेकिन बाकी सदस्यों की रजामंदी से प्लान पास हो गया.
जब घटना ने अंग्रेजी हुकूमत को हिला कर रख दिया
इन क्रांतिकारियों ने घटना को अंजाम तो दे दिया, लेकिन उसके बाद देश भर में बड़े स्तर पर गिरफ्तारियां हुईं. काकोरी कांड में 10 लोग शामिल थे, लेकिन गिरफ्तार 40 से ज्यादा लोग हुए. जवाहरलाल नेहरू, गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे बड़े-बड़े लोगों ने जेल में क्रांतिकारियों से मुलाकात कर मुकदमा लड़ने में दिलचस्पी दिखाई. वह चाहते थे कि उनका मुकदमा सुप्रसिद्ध वकील गोविंद वल्लभ पंत लडे़ं, लेकिन उनकी फीस ज्यादा होने के कारण यह मुकदमा कलकत्ता के बीके चौधरी ने लड़ा. लगभग 10 महीने तक लखनऊ की अदालत रिंग थियेटर में मुकदमा चला. सरकार का इसमें 10 लाख रुपया खर्च हुआ और सभी को सजा सुनाई गई.
15 अगस्त और 26 जनवरी पर तिरंगा फहराने में होता है अंतर, क्या आप जानते हैं?
6 अप्रैल 1927 को इस मुकदमे का फैसला हुआ, जिसमें जज हेमिल्टन ने धारा 121A, 120B, और 396 के तहत क्रांतिकारियों को सजा सुनाईं. इस मुकदमे में रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा हुई. शचीन्द्रनाथ सान्याल को कालेपानी और मन्मथनाथ गुप्त को 14 साल की सजा हुई. योगेशचंद्र चटर्जी, मुकंदीलाल जी, गोविन्द चरणकर, राजकुमार सिंह, रामकृष्ण खत्री को 10-10 साल की सजा हुई. विष्णुशरण दुब्लिश और सुरेशचंद्र भट्टाचार्य को सात और भूपेन्द्रनाथ, रामदुलारे त्रिवेदी और प्रेमकिशन खन्ना को पांच-पांच साल की सजा हुई. जब क्रांतिकारियों को सजा का ऐलान हुआ, तो उसके बाद जनता ने विरोध किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
यह भी पढ़ें- Azadi Ka Amrit Mahotsav: जानें आजादी के बाद कितनी बार बदला तिरंगा, कुछ ऐसी रही है देश के राष्ट्रीय ध्वज की यात्रा
क्रांतिकारियों की चिट्ठियों ने जगाई अलख
फांसी से पहले वीरों की चिठ्ठियों ने लड़ाई की अलख को बुझने नहीं दिया. राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, पं. रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्लाह खां, यह वो क्रांतिकारी हैं जो इस लड़ाई के असल हीरो रहे. काकोरी ट्रेन एक्शन में चंद्रशेखर आजाद को भी अंग्रेजों ने खूब ढूंढा, लेकिन वह हुलिया बदल-बदल चकमा देने में कामयाब हुए. यहां तक कि जब अशफाक उल्लाह खां का पार्थिव शरीर मालगाड़ी से शाहजहांपुर ले जाया जा रहा था तब भी शेखर ने उनके अंतिम दर्शन किए. लेकिन अंग्रेज उन्हें पहचान न पाए. इस घटना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं लेकिन आजादी की लड़ाई में चूंकि यह महत्वपूर्ण रही इसलिए सीएम योगी ने भी काकोरी कांड का नाम बदलकर इसे काकोरी ट्रेन एक्शन का नाम दिया. ताकि इन वीरों को याद कर इन्हें सलामी दी जा सके. आज इन्हीं की बदौलत आप और हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं.
Azadi ka Amrit Mahotsav: मुसलमान सेनानी जिसने स्वतंत्रता का सबसे प्रसिद्ध नारा दिया - इंकलाब जिंदाबाद