राजीव शर्मा/बहराइच: दोस्ती का फर्ज इस तरह निभाया जाये,अगर रहीम रहे भूखा तो राम से भी ना खाया जाय....कुछ इसी तरह की एक दोस्ती की मिसाल उत्तरप्रदेश के बहराइच जिले में देखने को मिली है, जिसको देखकर 1964 में बनी ''दोस्ती'' फिल्म की यादें ताजा हो गई. इस कहानी और फिल्मी पर्दे की कहानी में सिर्फ इतना फर्क है कि दोस्ती फिल्म में नेत्रहीन दोस्त का किरदार था और बहराइच से सामने आई इस कहानी में एक बधिर छात्र मुख्य किरदार में है.


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एक ही कक्षा में पढ़ते हैं दोनों दोस्त 
थाना विशेश्वरगंज के महारानी पुरवा के रहने वाले इंद्रदेव अत्यंत गरीब और अनसूचित जाति का है, जो सरकार की श्रेष्ठा योजना के तहत बुद्धा पब्लिक स्कूल में पढ़ाई कर रहा है. इंद्रदेव के दोनों कान खराब हैं जिससे उसको सुनने की शक्ति नहीं है और पूरी तरह से बधिर हैं. वैभव शुक्ला और इंद्रदेव एक ही कक्षा में पढ़ाई करते हैं. वैभव शुक्ला मैथ विषय का और  इंद्रदेव जीव विज्ञान का छात्र है. दोनों में काफी गहरी दोस्ती है.अपने दोस्त के कान में आवाज पहुंचाने के लिए उसका दोस्त गौरव शुक्ला पिछले कई सालों से दौड़ लगा रहा था. तमाम प्रयास के बावजूद जब उसकी कहीं सुनवाई नहीं हुई तो हताश होकर जिलाधिकारी डॉ दिनेश चंद्र के पास पहुंचा.


जब जिलाधिकारी को इस मामले की जानकारी हुई तो वह इसको गंभीरता से लेते हुए तत्काल पीड़ित छात्र को कान की मशीन उपलब्ध करवाई, कान की मशीन लगते ही पूरी तरह से अपनी श्रवण शक्ति को खो चुके इंद्रदेव के कान में आवाज गूंजने लगी और जिलाधिकारी के हाथों कान की मशीन पाकर बधिर छात्र इंद्रदेव काफी खुश नजर आया. 


जिलाधिकारी ने अफसरों को दिया यह निर्देश 
इस दौरान जिलाधिकारी ने सभी अफसरों को निर्देशित करते हुए कहा कि ऐसे किसी संवेदनशील मामले में किसी भी जिम्मेदार की लापरवाही बर्दाश्त नही की जाएगी. साथ ही कहा कि इस प्रकरण की गहनता से जांच कराई जाएगी कि आखिर इतने वर्षों से पीड़ित छात्र को कान की मशीन उपलब्ध कराने में क्यों इतनी बड़ी लापरवाही बरती गई.


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