Balrampur: सात वर्षों से नहीं देखा मदरसे का मुंह, फिर भी शिक्षक छाप रहे नोट
Balrampur: योगी सरकार प्रदेश के मदरसों में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है, लेकिन भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी आसानी से उखड़ने वाली नहीं हैं. जिले के तुलसीपुर नगर में अनुदानित मदरसा दारुल उलूम अतीकिया में छात्र तो मिलते हैं, लेकिन अधिकांश शिक्षक स्कूल से गायब रहते हैं.
रवि कुमार गुप्ता/बलरामपुर: सरकार द्वारा अनुदानित मदरसों में प्रबंध समितियों की मनमानी से ना तो छात्रों को सही शिक्षा मिल पर रही है और ना ही सहूलियतें. मदरसों में छात्र तो आते हैं, लेकिन शिक्षक नदारत रहते हैं. हर महीने की सैलरी उनके खाते में बराबर पहुंचती रहती है. विभागीय मिलीभगत से यहां पर शिक्षा माफिया इस कदर हावी है कि लाख शिकायतों के बावजूद ऐसे शिक्षकों पर कोई कार्रवाई नहीं होती.
ताजा मामला यूपी के बलरामपुर का है. हैरानी की बात यह है कि यहां पर सात साल से चार कर्मचारियों ने मदरसे का मुंह तक नहीं देखा. बलरामपुर के मदरसों में जाने की हिमाकत कोई आम इंसान नहीं कर सकता है. अगर किसी ने गड़बड़ी पकड़ी तो उसे जान का खतरा हमेशा बना रहता है.
मदरसों में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए सरकार प्रयासरत
वहीं, योगी सरकार प्रदेश के मदरसों में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है, लेकिन भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी मजबूत है कि इतनी आसानी से उखड़ने वाली नहीं हैं. जिले के तुलसीपुर नगर में अनुदानित मदरसा दारुल उलूम अतीकिया में छात्र तो मिलते हैं, लेकिन अधिकांश शिक्षक स्कूल से गायब रहते हैं. इस मदरसे में हाईस्कूल तक पढ़ाई होती है. मदरसे में 300 से अधिक छात्र-छात्राओं का नामांकन बताया जा रहा है. महज हाईस्कूल में ही 38 छात्र बताए जाते हैं.
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विभागीय मिलीभगत से हो रही शिक्षकों की बल्ले-बल्ले
इन छात्र-छात्राओं को पढ़ाने लिखाने का जिम्मा प्रधानाचार्य, 12 शिक्षक, एक लिपिक और एक चपरासी पर है. हाईस्कूल तक संचालित इस मदरसे में शिक्षक अमितेंद्र श्रीवास्तव की नियुक्ति 2015 में आलिया वैकल्पिक विषय के लिए हुई थी. जब से नियुक्ति हुई छात्रों को उनके दर्शन तक नहीं हुए. कनिष्ठ सहायक(दफ्तरी) पद पर तैनात तहरीर हसन की नियुक्ति 2016 में हुई थी. वह भी नियुक्ति के बाद से अब तक मदरसे में नहीं पहुंचे. इसके अलावा एक अन्य शिक्षक व एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी महज हाजरी बनाकर गायब हो जाया करते हैं. इसके अलावा रसूख और पहुंच के चलते शिक्षक मोइनुद्दीन और शिराज अहमद भी मदरसे में नहीं आते हैं.
सैलरी समय पर पहुंचती है शिक्षकों के खाते में
बताया जाता है कि वैकल्पिक शिक्षक अमितेंद्र श्रीवास्तव अल्पसंख्यक कल्याण विभाग लखनऊ में तैनात रहे एक पूर्व वित्त एवं लेखा अधिकारी विनय कुमार श्रीवास्तव के सगे रिश्तेदार हैं. जबकि, यहां तैनात लिपिक, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के निदेशालय लखनऊ में तैनात एक लिपिक अनवार अहमद के रिश्तेदार हैं. खास बात यह है कि प्रबंधक व प्रधानाचार्य की मेहरबानी से उपस्थिति पंजिका पर फर्जी हस्ताक्षर बनाकर इनका मानदेय भुगतान बराबर हो रहा है.
अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से झाड़ रहे पल्ला
मदरसे में इस भ्रष्टाचार की शिकायत तुलसीपुर नगर के रहने वाले उस्मान अंसारी ने जिलाधिकारी से की, लेकिन 15 दिन बीत जाने के बाद भी उनकी इस गम्भीर शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. प्रभारी जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी आशीष द्विवेदी ने शिकायत के 15 दिन बाद भी वही रटा रटाया जवाब देते हुए बताया एक मदरसे में शिक्षक और कर्मियों के ना आने की शिकायत की गई है. उक्त शिकायत की जांच कराई जाएगी. आरोप सही मिलने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी. इस मामले में रटा रटाया बयान देकर अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं. जांच कब होगी, इसका कोई अता पता नहीं है.
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कमी उजागर ना हो इसका भी है इंतजाम
बताया जा रहा है कि दोषियों को कार्रवाई की जद से बचाने के लिए प्रबंधकीय समिति और प्रधानाचार्य द्वारा पिछले 7 वर्षों की उपस्थिति पंजिका बदल दी जाएगी और सभी शिक्षक पिछले 7 वर्षों का हस्ताक्षर दोबारा करेंगे, जिससे जांच में किसी तरह की कोई कमी उजागर ना होने पाए और इन दोनों रसूखदार शिक्षकों की करामात यूं ही बदस्तूर जारी रहे.
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