नितिन श्रीवास्तव/बाराबंकी: अगर आप कृषि क्षेत्र से जुड़े हैं, तो आपके पास कई तरह की खेती के विकल्प हैं, जिनके जरिए आप अच्छी कमाई भी कर सकते हैं. अफीम की खेती भी इनमें से एक है. हालांकि, कुछ किसान ही अफीम की खेती करते हैं, लेकिन वे इससे तगड़ा मुनाफा भी कमाते हैं. हालांकि अफीम की खेती करना इतना आसान नहीं होता है, क्योंकि इसके लिए तमाम नियम और शर्तों का पालन करना होता है और सबसे जरूरी है कि इसकी खेती के लिए सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता है. किसी जमाने में लखनऊ से सटा बाराबंकी जिला दुबई, थाईलैंड, मुंबई और दुनिया के कई मुल्कों में मशहूर था. वह भी अपनी अफीम की खेती की वजह से. वक्त बदला, दुनिया बदली और खेती के तौर तरीके और समझ भी बदली. अब यहां अफीम की खेती काफी कम पैनामे पर होती है, जो किसान यहां अफीम की खेती कर रहे हैं इन दिनों वह उसमें चीरा लगाने की प्रक्रिया कर रहे हैं, क्योंकि चारी लगाने के बाद ही वह इससे अफीम निकाल सकेंगे. 


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कई देशों में बाराबंकी की अफीम की खेती मशहूर है 
बाराबंकी के अजपुरा गांव में भी कई किसान अफीम की खेती कर रहे हैं. वह इन दिनों अपनी फसल में चीरा लगाने का काम कर रहे हैं. जिससे वह उसमें से अफीम निकाल सकें. यहां के अफीम किसानों ने बताया कि यह खेती ठंड के दिनों में होती है, यानि अक्टूबर से नवंबर के बीच में फसल की बुवाई करते हैं. इसके लिए पहले खेत को 3 से 4 बार अच्छी तरह से जोता जाता है. इसके बाद गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट डाली जाती है.


मगर इसकी खेती में एक निश्चित सीमा तक पैदावार करना जरूरी होता है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता है आपका लाइसेंस कैंसिल हो सकता है. इसके साथ ही जमीन में पर्याप्त मात्रा में पोषण होना बेहद जरूरी है. सरकार की इन्हीं तमाम पाबंदियों के चलते बाराबंकी जिले में अफीम की फसल काफी कम हो गई है, जबकि पहले दुबई-थाईलैंड और दुनिया के कई मुल्कों में बाराबंकी जिला अफीम की खेती के लिये मशहूर था.


15 से 20 दिन बाद पौधों में डोडे लगते हैं
दरअसल, अफीम की खेती के लिए सबसे पहले आपको लाइसेंस लेना होगा. यह लाइसेंस आपको वित्त मंत्रालय के सेट्रल ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स से मिलता है. आप कितने खेत में अफीम की खेती कर सकते हैं, ये भी पहले से ही तय किया जाता है. अफीम की खेती कर रहे किसानों ने बताया कि अफीम की खेती में पौधे में लगभग 95 से 115 दिनों में फूल आने लगते हैं. फिर धीरे-धीरे फूल झड़ जाते हैं और उसके लगभग 15 से 20 दिन बाद पौधों में डोडे लग जाते हैं. किसानों ने बताया कि अफीम की कटाई एक दिन में नहीं की जाती है, बल्कि कई बार में की जाती है. सबसे पहले डोडों पर दोपहर से शाम तक के बीच में चीरा लगाया जाता है, फिर डोडे से एक तरल निकलने लगता है, जिसे पूरी रात निकलने के लिए छोड़ दिया जाता है. इसके अगले दिन तक तरल डोडे पर जम जाता है, जिसे धूप निकलने से पहले ही इकट्ठा किया जाता है. इस प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है, जब तक डोडे से तरल निकलना बंद ना हो जाए.


फसल खराब होने पर करना होता है यह काम 
किसानों के मुताबिक ध्यान रहे कि चीरा लगाने से लगभग हफ्ते भर पहले सिंचाई करनी चाहिए, ताकि अच्छा उत्पादन मिल सके. जब फसल से तरल निकलना बंद हो जाए, तब फसल को सूखा दिया जाता है. इसके बाद  डोडे तोड़कर बीज निकाला जाता है, जिसे पोस्ता कहते हैं. पोस्ता भी बाजार में काफी ज्यादा दाम पर बिक जाता है. किसानों ने बताया कि अगर आप अफीम की खेती कर रहे हैं और ओलावृष्टि, बारिश या दूसरी किसी वजह से फसल खराब हो जाए, तो आपको तुरंत नार्कोटिक्स विभाग को सूचित करना होता है. इसके साथ ही बेकार हो चुकी फसल को पूरी तरह नष्ट करना होता है, ताकि आप लाइसेंस निरस्त होनी की प्रक्रिया से बच सकें. 


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