नितिन श्रीवास्तव/बाराबंकी: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में जब एक पक्का पुल टूट गया और लोंगो को आने जाने में दिक्कतें होने लगीं तो गांव वालों ने 6 वर्ष पूर्व आपसी चंदा लगाकर लकड़ी का पुल बना लिया. उसी लकड़ी के पुल से आज गांव के सैकड़ों लोग जान जोखिम में डालकर आने-जाने को मजबूर हैं. कई बार यह लकड़ी का पुल टूटा और हादसा होते होते बचा. ऐसे में लोग चंदा लगाकर पुल की मरम्मत करवाते हैं, लेकिन अभी तक यहां कोई पक्का पुल नहीं बन सका है. ऐसे में यहां कभी भी कोई बड़ा हादसा भी हो सकता है.


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6 साल पहले बाढ़ में बह गया था पुल
यह पुल रामसनेहीघाट और विधानसभा दरियाबाद क्षेत्र के अन्तर्गत घाघरा नदी में तराई क्षेत्र के सेमरी गांव के पास पड़ता है. यहां लोगों ने जुगाड़ से एक लकड़ी का पुल बनाया है. यहां पक्का पुल न होने से जुगाड़ वाले लकड़ी के पुल से लोगों को जान जोखिम में डालकर हर दिन सफर करना पड़ता है, लेकिन कोई भी बड़ा जिम्मेदार नेता और अधिकारी इस ओर ध्यान नहीं देता. गांव वालों की मानें तो 6 वर्ष पूर्व टूटे इस लकड़ी के पुल से कभी भी गंभीर खतरा हो सकता है.उन्होंने बताया कि 6 साल पहले जब बाराबंकी में जबरदस्त बाढ़ आई थी, तो पक्का पुल टूट कर बह गया था. जिसके बाद लोगों ने आपसी सहयोग से यह लकड़ी का पुल बना दिया. 


गांव में नहीं आ सकते हैं चार पहुया वाहन 
इस पुल से गांव के लोग पैदल तो आते-जाते हैं ही साथ ही मोटरसाइकिल से भी निकलते हैं. यहां पर हर वक्त खतरा बना रहता है. यहां के लोगों की मांग है कि इस लकड़ी के पुल से लोगों को काफी दिक्कत होती हैं. इसलिए यहां पक्का पुल बनवाया जाए.  लोगों का कहना है कि सबसे बड़ी दिक्कत छोटे बच्चों के साथ बुजुर्गों के लिए है. बीमार होने पर उनके गांव तक एम्बुलेंस और चार पहिया वाहन नहीं पहुंच पाता है. अचानक अगर किसी की तबीयत खराब हो जाती है, तो मोटरसाइकिल से बैठाकर लोगों को ले जाना पड़ता है. 


गांव वालों ने बताया कि लकड़ी का पुल बीच-बीच में टूट भी जाता है. तब गांव वाले चंदा लगाकर पुल की मरम्मत करवाते हैं. ग्रामीणों के मुताबिक तीन से चार महीने तक जब घाघरा नदी उफान पर रहती है तो उनके सामने बहुत बड़ी दिक्कत आती है क्योंकि उस समय वह साइकिल से और पैदल भी नहीं निकल पाते हैं.