Azadi Ka Amrit Mahotsav: बेगम हजरत महल ने अवध में जगाई थी इंकलाब की अलख, 1857 क्रांति में अंग्रेजों के छुड़ाए थे छक्के
Azadi Ka Amrit Mahotsav: `आजादी का अमृत महोत्सव` आजादी के 75 साल और इसके लोगों, संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास को मनाने के लिए एक पहल है. जानिए बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) के बारे में जिन्होंने अंग्रेजों को आजादी पहली लड़ाई में अवध से खदेड़ दिया था.
विशाल रघुवंशी/लखनऊ: 15 अगस्त 2022 को देश 76वां स्वतंत्रता दिवस (76th Independence Day) मनाने जा रहा है. आजादी के 75 बरस पूरे होने पर देश आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. 'आजादी का अमृत महोत्सव' आजादी के 75 साल और इसके लोगों, संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास को मनाने के लिए एक पहल है. इसी क्रम मे जानिए बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) के बारे में जिन्होंने अंग्रेजों को आजादी पहली लड़ाई में अवध से खदेड़ दिया था.
प्रथम स्वतंत्रता दिवस में किया नेतृत्व
अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी बेगम हजरत महल पहली महिला हैं. जिन्होंने प्रथम स्वंतत्रता संग्राम में सेना का नेतृत्व किया था. हजरत महल की सेना में महिला सैनिक दल भी शामिल था. 1857 ई. में युद्ध शुरू हुआ तो बेगम हजरत महल ने अपने महिला सैनिकों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया. इनके कुशल नेतृत्व में सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए और लखनऊ पर दोबारा कब्जा कर लिया.
भारत की लड़ाई में वीरांगनाओं का रहा है इतिहास
भारत की आजादी का एक लंबा इतिहास और ये इतिहास तब-तक अधूरा है जब-तक आजादी की लड़ाई में अपनी जान की बाजी लगा देने वाली वीरांगनाओं का जिक्र न किया जाए. अंग्रेजों ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह को उनकी गद्दी से बेदखल कर डाला, लेकिन उनकी बेगम हज़रत महल ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नाक में दम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने 1857 के संग्राम में अंग्रेजों के साथ सबसे लंबे वक्त जंग की.
बेगम हजरत महल के विश्वासपात्र साथियों सरफ़द्दौलाह, महाराज बालकृष्ण, राजा जयलाल और मम्मू ख़ान ने अंग्रेजों के खिलाफ उनका पूरा साथ दिया. इसके अलावा हिंदू राजाओं बैसवारा के राणा बेनी माधव बख़्श, महोना के राजा दृग बिजय सिंह, फ़ैज़ाबाद के मौलवी अहमदुल्लाह शाह, राजा मानसिंह और राजा जयलाल सिंह भी बेगम हजरत महल की लड़ाई में उनके साथ रहे.
1857 ने क्रांति को दिया जन्म
भारत में आजादी को लेकर लड़ाई तो लंबे समय से हो रही थी लेकिन 1857 में इस क्रांति ने आजादी के संघर्ष को एक नया महत्व दिया. मुहम्मदी खानुम के तौर पर 1820 में जन्मी बेगम को राजा ताजदाए-ए-अवध ने अपनी उपपत्नी के रूप में स्वीकार किया. अवध पर अंग्रेजों का कब्जा होने पर उनके पति अवध के शासक को लखनऊ भेज दिया गया लेकिन बेगम अपने बेटे के साथ अवध में ही रहीं और अंग्रेजों के खिलाफ डटी रहीं.