मोहम्मद तारिक/पीलीभीत: भारत-पाक विभाजन के बाद धार्मिक आधार पर उत्पीड़ित होकर भारत आए बंगाली समुदाय के लोगों को उम्मीद थी कि नागरिकता संशोधन कानून बनने के बाद उन्हें नागरिकता मिल जाएगी. साथ ही उन्हें उनका मालिकाना हक भी मिल जाएगा. वहीं, 2 साल बाद भी सीएए अमल में नहीं आ सका है. इसलिए आज भी पीलीभीत में रह रहे लाखों बांग्ला भाषी लोग समस्याओं से जूझ रहे हैं.


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तब एक दर्जन गांव में किया गया था विस्थापित
आपको बता दें कि कई दशक पहले तत्कालीन केंद्र सरकार ने पीलीभीत में लगभग एक दर्जन गांवों में विस्थापित होकर आए बंगाली समुदाय के लोगों को बसाया गया था. दो साल पहले सीएए कानून बनने के बाद पीलीभीत में प्राथमिक सर्वे में 37 हजार लोगों को जिला प्रशासन ने पहली सूची में चिन्हित किया था. ये सूची शासन को भेजी गई थी. लोगों को उम्मीद थी कि इन लोगों को नागरिकता मिल जाएगी. वहीं, कोरोना के चलते सीएए कानून अधर में लटक गया, जो आज तक लागू नहीं हो पाया है.


पीलीभीत में रह रहे हजारों बंगला भाषी लोग
आपको बता दें कि यह है पीलीभीत में रह रहे हजारों बांग्ला भाषी लोगों का उजड़ना-बसना, मानो इनकी किस्मत में ही लिख गया है. दरअसल, भारत-पाक विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान से उत्पीड़ित होकर आए इन बांग्ला भाषी लोगों को भारत सरकार ने तब केम्पों में रखा था. बाद में इन्हें 1964 और 1971 में हिन्दुस्तान के कई हिस्सों में पुनर्वास योजना के तहत बसाया गया. तत्कालीन सरकार ने इन परिवारों को हिमालय की तलहटी में बसे जनपद पीलीभीत के एक दर्जन से ज्यादा गांवों में बसाया था. इन्हें जंगलों और नदियों किनारे बसाकर सरकार ने ग्रांट एक्ट के तहत जमीन के पट्टे भी दिए थे. तब से हजारों लोग पीलीभीत में रह रहे हैं, लेकिन आज तक  इन्हें नागरिकता नहीं मिली.


जमीन का नहीं मिल रहा मालिकाना हक
आपको बता दें कि इसके चलते ना तो इन्हें जमीन का मालिकाना हक मिल पा रहा है, न इनके आय, जाति और निवास प्रमाण पत्र बन पाते हैं. वहीं, स्कूल, कॉलेज पढ़ने वाले बच्चों को भी काफी दिक्कत होती है. अच्छी पढ़ाई-लिखाई के बावजूद इन लोगों को नौकरी के लिए भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.


मामले में स्थानीय लोगों ने दी जानकारी
इस मामले में न्यूरिया कॉलोनी निवासी निर्मल मंडल ने बताया कि विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी नेताओं ने बंगाली समुदाय के लोगों से वादा किया था. उन्होंने कहा था कि सरकार बनने पर नागरिकता कानून को लागू करवाया जाएगा. इन लोगों कि समस्याओं को दूर किया जाएगा, लेकिन समस्याएं आज भी जस की तस बनी हुई हैं.


कानून प्रभावी न होने से हो रही समस्या
आपको बता दें कि नागरिकता अधर में लटकने से रिया मंडल को स्कॉलरशिप नहीं मिल पा रही. वहीं, गौरव मंडल को नौकरी में लगाने के लिए प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे हैं. चुनाव के समय नेता जी ने वादा तो किया, लेकिन अब लोगों को लगने लगा है कि सारे वायदे चुनाव के साथ ही खत्म हो गए. जानकारी के मुताबिक 2 साल पहले तत्कालीन डीएम पीलीभीत ने सर्वे कराने की बात भी कही थी. अब ये देखना है कि सरकार इन लाखों लोगों को कब नागरिकता देती है.


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