लखनऊ: सीएम योगी आदित्यनाथ इस बार भी दिवाली वनटांगिया समुदाय के बीच मनाएंगे. 24 अक्टूबर को मुख्यमंत्री वनवासियों के साथ दीपावली मनाने के साथ जिले की विभिन्न ग्राम पंचायतों को करीब 80 करोड़ रुपये के विकास कार्यों की सौगात देंगे. सीएम योगी इस मौके पर करीब 37 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं का शिलान्यास एवं करीब 43 करोड़ रुपये की लागत वाली विकास परियोजनाओं का लोकार्पण करेंगे.


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दिवाली पर सीएम योगी के आगमन को लेकर वनटांगिया गांव जंगल तिकोनिया नम्बर तीन में खुशी का माहौल है. प्रशासन अपनी तैयारियों में जुटा है तो गांव के लोग सीएम के स्वागत में अपने-अपने घर-द्वार की साफ सुथरा बनाने, सजाने-संवारने में.महिलाओं की टोलियां गंवई स्वागत गीत के तराने छेड़ रही हैं. तैयारी ऐसी मानों घर का मुखिया त्योहार पर अपने घर लौट रहा हो, सब कुछ स्वतः स्फूर्त. ऐसा होना स्वाभाविक भी है.


इन वनटांगिया समुदाय के लिए योगी आदित्यनाथ तारणहार का नाम और पहचान है. इनकी सौ साल की गुमनामी और बदहाली को सशक्त पहचान और अधिकार दिलाने के साथ विकास संग कदमताल कराने का श्रेय सीएम योगी के ही नाम है. योगी और वनटांगिए एक-दूजे अटूट नाता जोड़ चुके हैं. वनटांगिया गांव जंगल तिकोनिया नम्बर तीन में हर साल दीपावली मनाने वाले मुख्यमंत्री के प्रयासों से इस गांव समेत गोरखपुर-महराजगंज के 23 गांवों और प्रदेश की सभी वनवासी बस्तियों में विकास और हक-हुकूक का अखंड दीप जल रहा है.


वास्तव में कुसम्ही जंगल स्थित वनटांगिया गांव जंगल तिकोनिया नम्बर तीन एक ऐसा गांव है. जहां दीपोत्सव पर हर दीप "योगी बाबा" के नाम से ही जलता है. साल दर साल यह परंपरा ऐसी मजबूत हो गई है कि साठ साल के बुर्जुर्ग भी बच्चों सी जिद वाली बोली बोलते हैं, बाबा नहीं आएंगे तो दीया नहीं जलाएंगे.


कौन हैं सौ साल तक उपेक्षित रहे वनटांगिया
अंग्रेजी शासनकाल में जब रेल पटरियां बिछाई जा रही थीं तो बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ों की कटान हुई. इसकी भरपाई के लिए अंग्रेज सरकार ने साखू के पौधों के रोपण और उनकी देखरेख के लिए गरीब भूमिहीनों, मजदूरों को जंगल मे बसाया. साखू के जंगल बसाने के लिए वर्मा देश की टांगिया विधि का इस्तेमाल किया गया, इसलिए वन में रहकर यह कार्य करने वाले वनटांगिया कहलाए. 


कुसम्ही जंगल के पांच इलाकों जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी व चिलबिलवा में इनकी पांच बस्तियां वर्ष 1918 में बसीं. 1947 में देश भले आजाद हुआ लेकिन वनटांगियों का जीवन गुलामी काल जैसा ही बना रहा. जंगल बसाने वाले इस समुदाय के पास न तो खेती के लिए जमीन थी और न ही झोपड़ी के अलावा कोई निर्माण करने की इजाजत.


पेड़ के पत्तों को तोड़कर बेचने और मजदूरी के अलावा जीवनयापन का कोई अन्य साधन भी नहीं और तो और इनके पास ऐसा कोई प्रमाण भी नहीं था जिसके आधार पर वह सबसे बड़े लोकतंत्र में अपने नागरिक होने का दावा कर पाते. समय समय पर वन विभाग की तरफ से वनों से बेदखली की कार्रवाई का भय सताता रहता था.