नितिन श्रीवास्तव/बाराबंकी: आपने बिहार के दशरथ मांझी के बारे में तो सुना ही होगा, जिन्होंने संकल्प लिया कि वह अकेले अपने दम पर पहाड़ के बीचो-बीच से रास्ता निकालेंगे. उन्होंने केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर अकेले ही 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काटकर 360 फुट लंबी और 30 फुट चौड़ी एक सड़क बना डाली. ऐसा ही कुछ कमाल उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में भी एक शख्स ने किया है. इस शख्स ने भी कई गांव के लोगों की समस्या को देखते हुए नदी पर एक पुल बनाने की ठानी. पुल बनाकर गांव के लोगों का 20 किलोमीटर का रास्ता कम कर दिया. अब इस पुल से कई गांव के लोग आते-जाते हैं. 


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गांव वालों का कहना है कि पुल की वजह से उनका काफी समय बच रहा है. हालांकि यह पुल एक मायने में सरकारी विकास के मखमल पर टाट का पैबंद भी कहा जाएगा. क्योंकि पक्का और मजबूत पुल बनाने का जो काम सरकार को करना चाहिये था, उसे गांव के एक शख्स ने अपनी क्षमता के अनुसार किया. 


बारिश के दिनों में हटा दिया जाता है पुल
बाराबंकी जिले की तहसील रामसनेही घाट के शाहपुर गांव से गुजरी कल्याणी नदी के ऊपर ग्रामीण दशकों से पुल की मांग करते-करते जब थक गए, तो उनमें से एक शख्स के सब्र का बांध टूट गया. राम मगन नाम के एक शख्स ने पुल बनाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई और नदी के उपर एक लकड़ी का पुल बना डाला. वहीं, अब राम मगन की मौत के बाद उसका बेटा लवकेश बिहार के दशरथ मांझी की तरह मिसाल बनकर पुल बनाने की जिम्मेदारी उठाये हुए हैं. यह पुल अब लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है. हालांकि, खतरे को देखते हुए यह पुल बारिश के दिनों में हटा दिया जाता है. 


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50 से 60 गांवों को जिला मुख्‍यालय से जोड़ता है पुल 
लकड़ी का बना यह पुल बाराबंकी की दरियाबाद विधानसभा को अयोध्या जनपद की रुदौली विधानसभा से भी जोड़ता है. साथ ही 50 से 60 गांवों को जिला मुख्‍यालय से जोड़ता है. जिसके चलते रोज करीब हजारों लोग उसपर से गुजरते हैं. आलम यह है कि इन गांवों के लोगों को जिला मुख्यालय जाने के लिये करीब 20 किलोमीटर घूमकर आना पड़ता है. वहीं, लोगों की परेशानी को देखते हुए गांव के लवकेश ने अपने खर्चे और मेहनत से नदी पर एक लकड़ी के पुल का निर्माण किया. जिस लवकेश ने यह पुल बनाया है, अब उसकी रोजी-रोटी भी इसी से चल रही है. 


पुल से ही चलती है लवकेश की रोजी-रोटी
पुल बनाने वाले लवकेश ने बताया कि इस पुल से मोटरसाइकिल लेकर गुजरने वालों से 10 रुपये, साइकिल वालों से 5 रुपये और पैदल वालों से 3 रुपये लेते हैं. इसके अलावा जो लोग रोज इस पुल से आते-जाते हैं, उनसे 6 महीने में अनाज मिलता है. इस तरह से उसके परिवार का भी खर्च चलता है. 



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समय और पैसे बचाने के लिए ग्रामीण डालते हैं जोखिम में जान
हालांकि यह पुल लोगों के लिये खतरनाक भी है, क्योंकि यह लकड़ी का बना है. नीचे नदी बह रही है. ऐसे में कोई हादसा भी हो सकता है, लेकिन लोग ज्यादा दूरी तय करने से बेहतर विकल्प इस पुल से जाने को मानते हैं. ग्रामीणों के मुताबिक, उन्होंने नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों से लगातार पुल की मांग की, लेकिन कहीं उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई. ग्रामीणों ने बताया कि प्राथमिक विद्यालय के छात्र, किसान और अन्‍य ग्रामीण मजबूरी में अपनी जान जोखिम में जालकर इस पुल से गुजरते हैं. अगर वह घूमकर दूसरी तरफ से तहसील मुख्यालय की तरफ जाएंगे, तो उन्हें करीब किलोमीटर घूमकर जाना पड़ेगा. जिसमें समय और पैसे दोनों ज्यादा खर्च होंगे. इस पुल ने यह दूरी काफी कम कर दी है. 


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