DP Yadav Story: डीपी यादव जो अभी हाल ही में अपने सियासी गुरु महेन्द्र सिंह भाटी के कत्ल के आरोपों में बरी हुआ है. हालांकि बरी होने के साथ ही उस पर रंगदारी, अपहरण और फिरौती का नया केस भी दर्ज हो गया है. ये और बात है कि पुलिस, अदालत, जेल और सियासत से तगड़ा नाता रखने वाले डीपी यादव के लिए ये कोई नई बात नहीं है. 


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अपहरण के मामले में दर्ज हुई FIR 
डीपी यादव वर्चस्व की सियासत का वो सिकंदर जो किसी जमाने में सरकार बनाने और गिराने तक का माद्दा रखता था. एक बार फिर मुश्किलों में है क्योंकि उसके अपराधों की फेहरिस्त में एक और नया मामला जुड़ गया है.  मामला अपहरण रंगदारी और धोखाधड़ी से जुड़ा है जिसमें मुरादाबाद में उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है वो भी तब जब वो महज हफ्ते भर पहले अपने सियासी गुरु महेन्द्र सिंह भाटी की हत्या के मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट की ओर से सबूतों के अभाव में बेदाग साबित किया गया.


ताजा मामला मुरादाबाद के कारोबारी अनिल तोमर की ओर से दर्ज कराया गया है जिसके मुताबिक डीपी यादव और उसके पांच साथियों ने उनका अपहरण किया और 10 करोड़ की रंगदारी मांगी. आरोपियों में शामिल हरिओम शर्मा तोमर की कंपनी में अकाउंटेंट था. जिसने 2014 में कंपनी की चेक बुक चोरी कर फर्जी हस्ताक्षर से विभिन्न नामों से उनके खाते से लाखों रुपया विभिन्न बैंक खातों में आरटीजीएस करा लिया था. तोमर का आरोप है कि इस काम में पीएनबी के अधिकारियों ने भी साथ दिया. हरिओम शर्मा के खिलाफ जब पुलिस में शिकायत की गई तो उसने अलग अलग नंबरों से धमकियां देनी शुरु की. शिकायत के मुताबिक 17 अक्टूबर 2021 की शाम करीब साढ़े चार बजे वह सिविल लाइंस इलाके से गुजरने के दौरान हथियारबंद लोगों ने उन्हें अगवा कर लिया. जिस कार में उन्हें अगवा किया गया उसमें पूर्व विधायक विजय यादव भी थे जिन्होंने वीडियो कॉल के माध्यम से डीपी यादव से बात कराई.


इस ताजा मामले के बाद डीपी यादव की मुश्किलें बढ़नी तय हैं क्योंकि आरोप बेहद संगीन हैं और एक बार फिर इन आरोपों के जरिए डीपी यादव सुर्खियों में है. हालांकि इससे कुछ ही दिन पहले डीपी यादव को चर्चित महेन्द्र सिंह भाटी केस में राहत मिली थी. लेकिन कहते हैं कि अपराध और अपराधी की सूरत बदल सकती है मगर सीरत नहीं. सो डीपी यादव एक दफे फिर नये कांड के साथ जरायम के बाजार में मजबूत दस्तक दे चुका है.


डीपी यादव की जिंदगी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है
दर्जनों मुकदमों में पुलिस के रडार पर चल रहे डीपी यादव का ये नया कांड तो कुछ भी नहीं. डीपी यादव की पूरी जिन्दगी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं.  एक दूधवाले से अपराध और सियासत के शिखर तक पहुंचने वाले डीपी यादव और उसका परिवार एक जमाने में अखबारों और टीवी चैनलों की सुर्खियों में रह चुका है. ऐसे में दूध बेचते बेचते डीपी यादव कैसे बना लिकर किंग और फिर कैसे चढ़ता गया सियासत में सफलता की सीढ़ियां.


पश्चिमी यूपी से लेकर हरियाणा तक डीपी यादव के खिलाफ मुकदमों की फेहरिस्त बेहद लम्बी है. बावजूद इसके अभी कुछ दिन पहले वो एक हत्या के आरोप से बरी हुआ है. वो भी उस शख्स की हत्या के आरोप से जिन्हें उसका सियासी गुरु माना जाता है. नाम महेन्द्र सिंह भाटी जिनकी हत्या साल 1992 में एकदम फिल्मी अंदाज में कर दी गई थी. जाहिर है इस हत्याकांड में बरी होने के बाद डीपी यादव की सक्रियता एक बार फिर बढ़ने वाली हैं.


डीपी यादव ने राजनीतिक रसूख के लिहाज से अपनी पैठ ऐसी बना ली थी कि उसके चाहने वाले हर पार्टी में मौजूद रहे, फिर चाहे कांग्रेस हो, बीजेपी हो, सपा हो या फिर बसपा. सभी पार्टियों ने उसके अतीत को नजरअंदाज किया और जब भी मौका मिला उसे सियासी छत मुहैया कराई.


आखिर क्यों डीपी यादव बन गया सबकी पसंद?
शराब के कारोबार में अकूल दौलत जुटाने के बाद डीपी यादव की कोशिश सियासत के रास्ते सफेदपोशी का चोला ओढ़ने की थी. सो उसने जाल बिछाना शुरू किया. इस कोशिश में उसके काम सबसे पहले आई देश की सबसे पुरानी सियासी पार्टी कांग्रेस जिसके पदाधिकारियों से नजदीकी का फायदा डीपी यादव ने बखूबी उठाया और अपने कारोबार के साथ सियासत में भी मजबूत दस्तक दे दी.


बिसरख से चुना गया ब्लॉक प्रमुख
अस्सी के दशक में कांग्रेस के बलराम सिंह यादव ने डीपी यादव को कांग्रेस पिछड़ा वर्ग का गाजियाबाद का जिलाध्यक्ष बना दिया जिसके बाद उसका राजनीतिक सफर चल पड़ा. डीपी यादव ने गाजियाबाद के नवयुग मार्केट में कार्यालय खोला और उसी वक्त महेन्द्र सिंह भाटी के सम्पर्क में आया. राजनीतिक करियर में पहली बार वो बिसरख से ब्लॉक प्रमुख चुना गया.


मुलायम सिंह के मंत्रिमंडल का बना हिस्सा 
मुलायम सिंह ने जब समाजवादी पार्टी का गठन किया उस वक्त उन्हें पैसे वाले लोगों की जरूरत थी और डीपी यादव को बड़ा मंच चाहिए था. सो दोनों का मिलन आसानी से हो गया. डीपी ने कांग्रेस छोड़ समाजवादी पार्टी का दामन थामा और बुलंदशहर से समाजवादी पार्टी का टिकट हासिल कर लिया, धनबल के दम पर वो चुनाव जीता साथ ही मुलायम सिंह के मंत्रिमंडल का हिस्सा भी बन गया.हालांकि बाद में मुलायम सिंह से डीपी यादव के रिश्तों में खटास पैदा हो गई. डीपी यादव ने मुलायम सिंह के खिलाफ चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गया. इतना ही नहीं रामगोपाल यादव के खिलाफ भी इसने चुनावी खम ठोंका लेकिन हार गया.


डीपी यादव का राजनीतिक सफर
डीपी यादव के सियासी सफरनामें का अगर इतिहास देखा जाए तो हर पार्टी ने उसे पहले अपनाया और फिर ठुकरा दिया. जिसके बाद उसने अपनी खुद की पार्टी तक बना ली. ये और बात है कि खुद की पार्टी ने उसे उतनी कामयाबी नहीं दी जितना उसने दूसरी पार्टियों में रहकर पाई थी. डीपी के राजनीतिक सफर की बात करें तो 1993 में बुलंदशहर से सपा का विधायक बना इतना ही नहीं इस बीच वो सपा का महासचिव भी रहा और मंत्री भी. 1996 में बीएसपी प्रत्याशी के रुप में 1996 में संभल से लोकसभा चुनाव जीता.1998 में निर्दल प्रत्याशी के रुप में राज्यसभा का सफर तय किया.


 2004 में बीजेपी का साथ मिला, राज्यसभा सांसद भी बना लेकिन बाद में बीजेपी ने पार्टी से निकाल दिया. 2007 में खुद की पार्टी राष्ट्रीय परिवर्तन दल बनाया, दो सदस्यों ने विधानसभा चुनाव भी जीता जिसमें एक वो खुद और दूसरा उसकी पत्नी थी. हांलाकि 2011 में चुनाव खर्च का ब्यौरा ना देने पर चुनाव आयोग ने उसकी पत्नी की सदस्यता रद्द कर दी. 2009 में बीएसपी के टिकट पर बदायूं से चुनाव लड़ा मगर हार गया. 2012 में समाजवादी पार्टी में शामिल होने के लिए हाथ पैर मारे मगर अखिलेश यादव की जिद के चलते सपा की सदस्यता नहीं मिली.


साल 2014  के चुनाव में भी डीपी यादव ने संभल से किस्मत आजमाई मगर हार गया.हालांकि वो तब ज्यादा सुर्खियों में आया जब उसने अक्टूबर 2014 में अमित शाह के साथ मंच शेयर किया. जिस पर हंगामा मच गया.ये और बात है कि उसके बाद बीजेपी ने उससे कन्नी काट ली.डीपी यादव की कहानियां अनगिनत हैं, राजनीतिक रसूख और वर्चस्व के किस्से भी कम नहीं. दर्जनों मुकदमों का आरोपी होने के बावजूद डीपी यादव की आज भी तूती बोलती है. 


आज भी उससे जुड़े किस्से कहानियां राजनीतिक विश्लेषक वर्ग को चिंता में डालती हैं क्योंकि एक दागी इतिहास होने के बावजूद डीपी यादव ने सियासत में जो हासिल किया है वो कईयों के लिए सपने सरीखा है. ये और बात है कि अदालत की दहलीज पर सबका हिसाब होता है. डीपी यादव का भी हुआ है. ये ठीक है कि अपने सियासी गुरु की हत्या के आरोपों से सबूतों के अभाव में वो बरी हो गया है. लेकिन, सच पूरा हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को पता है. जाहिर है बरी होने के बाद डीपी यादव नये जोश के साथ सियासी मैदान में उतरेगा. मगर अब तय जनता को करना है कि आखिर ऐसे व्यक्तित्व के साथ उसका फैसला कैसा होगा.


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