कानपुर: लालफीताशाही के चक्कर में दवा उद्योग पर बड़ा संकट, व्यापारियों ने लगाए ये गंभीर आरोप
Kanpur News: महामंत्री अतुल सेठ ने कहा कि जो दवाइयां ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा जारी लिस्ट में नहीं है. वह दवाइयां हमारे यहां बनाने की अनुमति नहीं दी जा रही हैं, जबकि वही दवाइयां दूसरे राज्यों से बनकर हमारे प्रदेश में बिक रही हैं.
श्यमा तिवारी/कानपुर: उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के सपनों को प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी पलीता लगा रहे हैं. सीएम का प्रयास है कि हर मरीज को सस्ती से सस्ती और निशुल्क दवाइयां उपलब्ध कराई जाएं. इसके बाद भी उत्तर प्रदेश में तमाम दवाइयां बनाने की अनुमति नहीं दी जा रही हैं. वहीं, दवाइयां दूसरे राज्यों से बनकर हमारे प्रदेश में मनमानी कीमत पर बिक रही हैं. जिससे स्थानीय दवा उद्योग दन तोड़ता नजर आ रहा है. एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने दवा उद्योग पर मंडरा रहे संकट और आम जनता के हितों को लेकर पिछले दिनों मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी.
क्या है पूरा मामला?
पदाधिकारियों का का कहना है कि सीएम ने कहा था कि उद्योग को बढ़ावा देने में जो भी अधिकारी रोड़ा बनेंगे उन्हें बर्खास्त किया जाएगा, जिसके बाद लघु दवा उद्योगों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रमुख सचिव खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन अनीता सिंह ने मुख्यालय में बैठक बुलाई.मंगलवार को हुई इस बैठक में ड्रग कंट्रोलर ने एसोसिएशन के अध्यक्ष सीएस भार्गव और महामंत्री अतुल सेठ के अतिरिक्त किसी अन्य पदाधिकारी को बैठक में आने की अनुमति नहीं दी थी, जबकि दूसरे संगठन के कुछ अन्य उद्यमियों को अपना बचाव करने के लिए बुला लिया था.बैठक बेनतीजा रही और लघु एवं सूक्ष्म दवा उद्योग के पदाधिकारियों की मांगों को नजर अंदाज कर दिया गया.
लगाए ये गंभीर आरोप
महामंत्री अतुल सेठ ने कहा कि जो दवाइयां ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा जारी लिस्ट में नहीं है. वह दवाइयां हमारे यहां बनाने की अनुमति नहीं दी जा रही हैं, जबकि वही दवाइयां दूसरे राज्यों से बनकर हमारे प्रदेश में बिक रही हैं. इससे यह साफतौर पर जाहिर है कि हमारे अधिकारी दूसरे राज्यों के उद्योगों और राजस्व व रोजगार को बढ़ावा दे रहे हैं और अपने प्रदेश के उद्योग को साजिश के तहत गर्त में ले जा रहे हैं.
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मल्टीनेशनल कम्पनियों के दबाव में डब्ल्यूएचओ द्वारा 2005 में लाए गए जीएमपी के नियमों को थोपने से सूक्ष्म दवा उद्योग समाप्त हुआ वैसे ही स्टेबिलिटी डेटा थोपे जाने से खासतौर पर यूपी में कोई नई लघु दवा की इकाई नहीं आ पाएगी, जबकि दूसरे राज्यों ने स्टेबिलिटी डेटा की बाध्यता की साजिश को समझा और अपने हिसाब से सरलीकरण किया, जबकि अपने राज्य के अधिकारी बड़ी कम्पनियों के हाथ की कठपुतली बने बैठे हैं. इसीलिए कोई समाधान नहीं निकालना चाहते हैं. ऐसा ही चलता रहा तो लघु दवा उद्योग यूपी से बंद हो जाएगा.
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