फर्रुखाबाद: "औरत हूं, मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूं. इक जिंदगी के तहफ़्फ़ुज़ के लिए सबसे लड़ी हूं." 37 की उम्र में जिंदगी को चित करने की 'साधना'. स्टेडियम के बगल में बना ऑफिसर्स क्लब आजकल टाइक्वांडो की हा-हू से गूंज रहा है. 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' योजना के तहत विभाग की ओर से संचालित इस टाइक्वांडो कैंप में हर उम्र की बच्चियां सफेद यूनिफॉर्म में अभ्यास करती दिख जाएंगी. इसी भीड़ में एक 37 वर्षीय साधना भी है, जो उसी जोश और उत्साह के साथ किशोरियों के संग पंच और लेग पंच लगाती दिखती हैं.


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साधना बनीं उन हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणा
आंसुओं को अपनी ताकत बना कर साधना ने जिंदगी में लड़ने की सोची. पति का प्यार खोया, फिर गोद भी सूनी हो गई. इसके बाद भी साधना ने जिस मजबूती से अपने आप को खड़ा किया, वह उन महिलाओं के लिए एक मिसाल है जो अपने जीवन को आंसुओं में डुबोकर मौत की कामना करने लगती हैं.


पहले पति खोया, फिर बच्चा... ससुराल वालों ने छोड़ा साथ
साधना के पति का साल 2020 में अचानक हार्ट अटैक से देहांत हो गया था. भाग्य की क्रूरता देखिए कि एक हफ्ते के अंदर ही 10 साल के इकलौते बेटे ने भी दम तोड़ दिया, जबकि उसे खेल-खेल में मामूली सी ही चोट लगी थी. इसके बाद मानो साधना की दुनिया ही उजड़ गई. ससुराल के लोगों का भी रुख बदलने लगा तो थक-हार कर वह मायके में चली गई. अकेलेपन और दुखों के पहाड़ के बोझ तले साधना अवसाद की स्थिति में पहुंच गई. 


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कोच ने टाइक्वांडो के लिए किया प्रेरित
इसके बाद साधना बड़ी बहन की बेटी और बेटे को टाइक्वांडो कैंप तक छोड़ने जाने लगी, जहां कोच अजय सिंह ने उन्हें भी कैंप में शामिल होने का मौका दिया. कोच ने प्रेरित किया तो साधना ने भी प्रैक्टिस शुरू कर दी. धीरे-धीरे डिप्रेशन के बादल छटे और नियमित अभ्यास ने उन्हें एक बार फिर जिंदगी से दो-दो हाथ करने का हौसला दिया. आज साधना टाइक्वांडो कैंप में ग्रीन बेल्ट होल्डर हैं और कड़े अभ्यास से ब्लैक बेल्ट हासिल करने का जज्बा रखती हैं. साधना अपनी उम्र के लोगों के लिए मिसाल बन गई हैं.


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