फतेहपुर. छह साल पहले कक्षा चार की छात्रा की हत्या के मामले में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत ने सुनवाई करते हुये आरोपी पति-पत्नी और बहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इन पति पत्नी ने बहुत निर्दयता से पहले तो बच्ची का अपहरण किया फिर उसकी जान ले ली थी. उन्होंने शव को ठिकाने लगाने से पहले उसे दो दिन तक घर के अंदर फ्रिज में रखा था. मृत बच्ची के परिवार को न्याय पाने के लिए छह साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी. इसमें 14 लोगों ने गवाही दी तब जाकर अदालत ने तीनों को अपहरण व हत्या का दोषी पाया. पढ़िए उस बच्ची के साथ हुई निर्दयता की दास्तान- 


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बहन भी जुर्म में शामिल: 
अपर जिला शासकीय अधिवक्ता रघुराज सिंह ने बताया कि शहर कोतवाली क्षेत्र के जयराम नगर मोहल्ला निवासी राजबहादुर सिंह की पौत्री इशिका उर्फ पलक कक्षा चार की छात्रा थी. 4 मार्च 2015 की शाम करीब 6 बजे जब वह घर से आईस्क्रीम लेने जा रही थी तो, पड़ोसी संदीप ने उसका अपहरण कर लिया और अपने घर ले जाकर पत्नी पिंकी व बहन आशा कुमारी के साथ मिलकर हत्या कर दी थी. इसके शव को दो दिन तक घर के अंदर फ्रिज में रखा तथा तीसरे दिन घर के पीछे स्थित टावर के समीप बोरी में भर कर फेंक दिया था. जब वह बच्ची दो दिन तक नहीं मिली तो शहर भर में हंगामा मच गया. पुलिस इसकी पतासाजी में दिन रात एक किए हुए थी.


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बोरी पर लिखे नम्बर से धरे गए अपराधी:


घटना का खुलासा उस बोरी पर लिखे एक नम्बर से हुआ था, जिसमें बच्ची का शव मिला था. बच्ची के शव को बाहर निकालने के बाद पुलिस ने उस बोरी को ध्यान से देखा. उसमें आटा लगा हुआ था. इस पर पुलिस को एक नंबर भी मिला. पुलिस ने आसपास पता किया तो जानकारी मिली कि गेहूं का आटा पीसने वाले अक्सर अपने यहां आने वाली बोरियों पर पहचान के लिए ऐसे नंबर लिख देते हैं. पुलिस पूछताछ करते हुए एक चक्की पर पहुंची, जहां के मालिक ने अपने लिखे इस नंबर को पहचान लिया. उसने बताया कि यह बोरी तो उसके यहां जयराम नगर निवासी संदीप ने आटा पिसाने के लिए भेजी थी. पुलिस ने जब संदीप के घर जाकर देखा तो उसे हत्या के सबूत मिलना शुरू हो गए. कड़ाई से पूछताछ की तो संदीप, उसकी पत्नी पिंकी व बहन आशा कुमारी टूट गए और अपना जुर्म कबूल कर लिया. अदालत के समक्ष संदीप ने अपने काले कारनामे को यह कहकर ढांकने की कोशिश की कि मृत छात्रा का पिता उसकी पत्नी को छेड़ता था, इसलिए उसकी बेेटी की जान ले ली.   


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मामले का मुकदमा मृतका के बाबा राजबहादुर ने दर्ज कराया था. तीनों आरोपियों को दोषी करार देते हुये आजीवन करावास की सजा के साथ ही 14 हजार रुपये अर्थ दण्ड की सजा भी सुनाई गइ है.


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