प्रेमेंद्र कुमार/फिरोजाबाद: 30 दिसंबर 1981 की वो सर्द शाम याद आते ही साढ़ूपुर के नरसंहार के पीड़ित सिहर उठते हैं. कड़ाके की ठंड पड़ रही थी, एससी बस्ती के लोग अपने घरों में थे. कोई खाना बना रहा था तो कोई अलाव किनारे बैठ कर बातें कर रहा था. 42 साल बाद फिर एक बार उस दलित नरसंहार की कहानी ताजा हुई है क्योंकि इसमें कोर्ट का फैसला आया है, उसमें 90 वर्षीय एक बुजुर्ग आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है.


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उस समय की वाक्या याद करते हुए 70 वर्षीय प्रेमवती ने बताया कि वह खाना बना रही थीं, इस बीच बंदूक लेकर उनके घर में घुसे हमलावर ने जुग्गू नाम के युवक के बारे में पूछा, उन्होंने जैसे ही बताया कि इस नाम का कोई भी उनके परिवार में नहीं है, हमलावर ने उन्हें गोली मार दी, जो उनके पैर में लगी थी. ऑपरेशन कराना पड़ा था. उस समय हजारों रुपये इलाज में लगे थे.


वहीं 80 वर्षीय महेंद्र ने बताया कि हमलावरों ने उनके घर मे घुसकर तीन लोगों की गोली मारकर हत्या की थी. नरसंहार करने वाले लोगों की संख्या 10 के आसपास थी. हमलावरों से उनकी कोई रंजिश नहीं थी, न वे किसी को जानते थे. हमलावर दूसरे गांवों से आए थे. फिर भी उन्होंने हत्याएं क्यों की ये अब तक पता नहीं चला है.


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बुधवार को आए कोर्ट के निर्णय की पीड़ित परिवारों को जानकारी नहीं थी. देर शाम को गांव वालों को पता चला तो एक-एक कर सभी पीड़ित इकट्ठा हो गए. उन्होंने एक दोषी को आजीवन कारावास की सजा मिलने पर संतुष्टि जताई. उनका कहना था कि उसे फांसी की सजा होनी चाहिए थी, लेकिन कोई बात नहीं, आजीवन कारवास ही सही. 


सरकार ने पूरा नहीं किया वादा..
पीड़ितों को गांव में देशभर से आए नेताओं ने फ्री बिजली दिलाने और मुआवजे का आश्वासन दिया गया था. मुआवजे के नाम पर मक्खनपुर में एक-एक दुकानें घटना के कुछ माह बाद बनवा कर प्रशासन ने दी थीं. जिन्हें उन्होंने किराए पर उठा दिया था. समय गुजरने पर किराएदारों ने दुकानों पर कब्जा कर लिया जबकि फ्री बिजली अब तक नहीं मिली है. 


वरना होतीं और ज्यादा हत्याएं
महेंद्र और प्रेमवती ने बताया कि गांव में राशन की दुकान के लिए घटना वाले दिन ही शाम को समाज के लोगों की गांव के बाहर खेत में बैठक हुई थी. उसमें समाज के लोगों के लिए अलग से राशन की दुकान खुलवाने और सभी परिवारों का राशन कार्ड बनवाने का निर्णय लिया गया था. बैठक के बाद सभी लोग अपने घर लौटे थे, इस बीच ये वारदात हो गई. यदि लोग बैठक में न गए होते तो मरने वालों की संख्या और अधिक होती.


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कोठरी में छुपकर बचाई थी जान
गांव के ही लोगों ने बताया कि जब हमलावर गोलियां चला रहे थे तब वह और उनके भाई लायक सिंह ने कोठरी छिपकर जान बचाई थी. वहीं, नारायणी देवी के सिर पर राइफल की बट मारकर उन्हें घायल कर दिया था. 


पैदल साढ़ूपुर पहुंचे थे अटल बिहारी वाजपेयी
नरसंहार से वर्तमान वीपी सरकार कटघरे में थी. जहां देहुली में 2 दर्जन दलितों की हत्या और उसके कुछ ही दिनों बाद साडूपुर में 10 दलितों की हत्या के बाद विपक्ष वीपी सिंह सरकार से इस्तीफा मांग रहा था. उसी के चलते विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी देहुली से पैदल चलकर साढ़ूपुर पहुंचे थे. जनता दल के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, बाबा भीमराव आंबेडकर की पत्नी सविता अंबेडकर, पूर्व प्रधानमंत्री जगजीवन राम, गृह राज्य मंत्री स्वरूपरानी बख्सी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता भी गांव आए थे. कई दिनों तक पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी गांव में डेरा जमाए रहे.


90 साल के गंगाराम को हुई आजीवन कारावास की सजा
नरसंहार के वक्त होली और साडूपुर दोनों ही गांव मैनपुरी जिले में आते थे लेकिन अब यह दोनों गांव फिरोजाबाद जिले का हिस्सा हैं. इसी के चलते 2021 में यह पूरा मामला मैनपुरी जिला कोर्ट से स्थानांतरित होकर फिरोजाबाद न्यायालय में आ गया था. जहां उसकी पैरवी सरकारी वकील ने की और कल 90 वर्ष के गंगाराम को आजीवन कारावास की सजा जिला न्यायालय हरवीर सिंह ने सुनाई है. 


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