लखनऊ : ब्रज में होली की शुरुआत बसंत पंचमी से ही हो जाती है. यह लगभग 40 दिन तक चलती है. ब्रज की होली का रंग ही अलग होता है. दरअसल दुनिया भर में एकमात्र ब्रज ही ऐसी जगह है जहां फूल, रंग, गुलाल, लड्डू, लठ्ठ आदि सभी चीजों से होली खेली जाती है. इसे देखने के लिए दुनिया भर से पर्यटक आते हैं. मंदिरों में राधा-कृष्‍ण तो होली खेलते ही हैं, उन्हें देखकर भक्त भी होली के रंग में रंग जाते हैं. खासतौर पर बरसाना, वृंदावन, मथुरा, नंदगांव और दाऊजी के मंदिरों में अलग-अलग दिनों में होली धूमधाम से मनाई जाती है, हालांकि फुलैरा दौज से फूलों की होली का आयोजन ब्रज के सभी प्रमुख मंदिरों में हो जाता है.


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लड्डू होली की भी धूम


धर्मनगरी वृंदावन में इन दिनों ब्रज की प्रसिद्ध होली की धूम दिखाई दे रही है. नगर के सप्त देवालयों में प्रमुख प्राचीन ठाकुर राधारमण मंदिर में भक्तों ने अपने आराध्य के संग होली का जमकर आनंद लिया. पूरा मंदिर परिसर होली के रसिया की धुन में सराबोर नजर आ रहा था. भक्त ठाकुर जी के प्रसादी गुलाल के रंग में सराबोर होकर भाव विभोर हो रहे थे. इस बार बरसाना की मशहूर लड्डू होली 27 फरवरी को होगी तो अगले दिन 28 फरवरी को बरसाना की लट्ठमार होली खेली जाएगी.


ब्रज भूमि में बसंत पंचमी से शुरू हुई होली का खुमार बढ़ने लगा है. नगर के सप्त देवालयों में से एक ठाकुर राधारमण मंदिर में ठाकुर जी की ओर से उड़ाए जा रहे प्रसादी गुलाल में सराबोर होकर भक्त बिरज में होरी रे रसिया की धुन पर नृत्य कर रहे थे. मंदिर में सेवायत गोस्वामियों द्वारा राजभोग आरती उपरांत ठाकुरजी के चरणों में अर्पित गुलाल को श्रद्धालु भक्तों के ऊपर बरसाया गया तो भक्त ठाकुरजी की इस प्रसादी में अपने आपको रंगने को लालायित होने लगे. वहीं मंदिर परिसर में चहुंओर गुलाल का गुबार और सतरंगी छटा सभी को आनन्दित कर रही थी.


सेवायत वरुण गोस्वामी ने बताया कि मंदिर में चल रही होली महोत्सव की धूम नित नए रूप में बढ़ती ही जा रही है. भक्त ठाकुर जी के रंग सराबोर होकर कीर्तन करते हुए नृत्य कर रहे हैं. 26 फरवरी शाम को फूलों की होली होगी. 
अंग्रेजी राज से जुड़ा इतिहास
पिछले कुछ समय में श्रीजी के आंगन लट्ठ मार की होली ने भी कई रंग बदले हैं. 146 साल पहले मैदान भक्तों से खचाखच भरा रहता था. भीड़ में अभी भी कोई कमी नहीं आई है. हालांकि जानकार बताते हैं कि इस खास होली में लट्ठ मारने का तरीका और बचाव वाली ढाल बदल गई है. ऐसा बताया जाता है कि 22 फरवरी 1877 को ब्रिटिश कलेक्टर एफएस ग्राउस भी होली देखने के लिए राधारानी के धाम पहुंचे थे. 


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क्या कहता है इतिहास का पन्ना
ए डिस्ट्रिक्ट मेमोएयर किताब में ग्राउस ने होली का उल्लेख भी किया है. मथुरा में उस समय रंगीली गली, सुदामा चौक, मुख्य बाजार, होली टीला, बाग मुहल्ला, फूल गली, कुंज गली और भूमिया गली लट्ठमार होली का आयोजन किया जाता था. सौ साल पहले भी लट्ठमार होली का मुख्य आयोजन एक छोटे से मैदान में हुआ करता था. यह रंगीली के नाम से प्रसिद्ध है. आज भी होली इसी गली में होती है. 


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