UP की इस मीनार में जाने वाले भाई-बहन बन जाते हैं पति-पत्नी! जानें क्या है ये सालों पुरानी मान्यता
Jalaun Ravan Minar: उत्तर प्रदेश के जालौन में `लंका मीनार` रावण को समर्पित है. कहा जाता है कि दिल्ली के कुतुबमीनार के बाद यही सबसे ऊंची मीनार है. इसका निर्माण कराने वाला शख्स रामलीला में रावण की भूमिका निभाता था. उसे रावण से इतना लगाव था कि उसने लंका नाम से ही मीनार का निर्माण कराया.
जितेन्द्र सोनी/जालौन: भारत कई संस्कृतियों और परंपराओं का देश है. यहां का समाज सदियों से चले आ रहे रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करता है. हालांकि, इनमें से कुछ परंपराएं अच्छी तो कुछ बेहद अजीबोगरीब होती हैं, जिनके बारे में जानकर हर कोई हैरान हो जाता है. ऐसी ही एक मान्यता हम आपको बताने जा रहे हैं, जो एक मीनार से जुड़ी हई है. ऐसा कहा जाता है कि इस मीनार पर भाई-बहन एक साथ चढ़कर ऊपर नहीं जा सकते. जो भाई-बहन इस मीनार पर एक साथ चढ़ते हैं वे पति-पत्नी बन जाते हैं.
रावण को समर्पित है मीनार
यह मीनार जालौन जिले में बुंदेलखंड के प्रवेश द्वार कालपी में स्थित है. ये वही कालपी है, जहां के वेद व्यास ने रामायण ग्रन्थ लिखा है. इस मीनार के अंदर रावण के पूरे परिवार के चित्र बनाए गए हैं. वैसे मीनार ज्यादा बड़ी नहीं है. लेकिन अपनी अजीब मान्यता की वजह से ये जगह एक टूरिस्ट स्पॉट में बदल चुकी है. इस स्थान का अनुभव लेने के लिए लोग यहां दूर-दूर से आते हैं. लंका मीनार के निर्माण की कहानी बड़ी दिलचस्प है. यह मीनार रावण को समर्पित है.
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मथुरा प्रसाद ने 1875 में बनवाई थी मीनार
जानकारी के अनुसार, यह मीनार 1875 में मथुरा प्रसाद नामक एक व्यक्ति द्वारा बनवाई गई थी. मथुरा प्रसाद एक कलाकर के रूप में ज्यादातर रावण का किरदार करते थे. ऐसा कहा जाता है कि रावण की भूमिका ने उनपर इतनी बड़ी छाप छोड़ी कि उन्होंने रावण की याद में एक मीनार बनवा डाली. इसलिए इसका नाम ‘लंका मीनार’ रखा गया. इतिहासकार के मुताबिक, लंका मीनार को बनाने में 20 साल का समय लगा था. इस टावर की ऊंचाई करीब 210 फीट है. इस मीनार को बनाने में उस समय लगभग 2 लाख रुपये का खर्चा आया था. इसके निर्माण में सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया.
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मीनार में एक साथ नहीं जाते हैं भाई-बहन
लंका मीनार को लेकर एक ऐसी मान्यता भी है, जो हैरान करने वाली है. कहा जाता है कि यहां भाई-बहन एक साथ ऊपर नहीं जा सकते हैं. दरअसल, इस मीनार की चोटी तक पहुंचने में 172 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जिसमें सात चक्कर लगते हैं. मीनार तक पहुंचने में 7 परिक्रमा लगानी पड़ती है, जिसे भाई-बहन द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता. यही कारण कि मीनार के ऊपर एक-साथ भाई बहनों का जाना मना है. इस मान्यता को आप कुछ भी कहें, लेकिन स्थानीय लोगों द्वारा इसका पालन सालों से किया जा रहा है.
स्थानीय निवासी राकेश पुरवार ने बताया कि हिंदू धर्म में मान्यता है कि जिसके साथ आप सात फेरे लेते हैं उससे आपकी शादी सम्पन्न मानी जाती है. ऐसे में सात फेरे की वजह को देखते हुए यहां कोई भाई-बहन एक साथ नहीं जाते हैं.
परिसर में है मंदिर
इस मीनार में कुंभकरण और मेघनाद की बड़ी मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं. कुंभकरण की मूर्ति 100 फीट ऊंची है, तो वहीं मेघनाथ की मूर्ती 65 फीट की है. यहां भगवान शिव के साथ-साथ चित्रगुप्त की मूर्ति भी लगी है. इसके अलावा यहां 180 फीट लंबी नाग देवता की भी मूर्ती स्थापित की गई है. इतिहासकार अशोक कुमार ने इन मूर्तियों के स्थापना को लेकर बताया कि रावण भगवान शिव का भक्त था, ऐसे में उसके आराध्य भगवान का यहां मंदिर होने ही यह भी एक वजह हो सकती है.
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