World Poetry Day: दुष्यंत कुमार की कलम ही थी उनकी पहचान, विपक्षी उनके शेरों को बनाते थे अपने हथियार
World Poetry Day: 1 सितंबर 1933 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के राजपुर नवादा गांव में दुष्यंत कुमार का जन्म हुआ था. सिर्फ 18 साल की उम्र में `परदेसी` के नाम से वो कविताएं लिखने लगे थे. उनकी पहली कहानी आघात के नाम से प्रकाशित हुई थी.
राजवीर चौधरी / बिजनौर: आज विश्व कविता दिवस है. ऐसे में ज़ी यूपी-यूके ने प्रसिद्ध कवि और गजलकार दुष्यंत कुमार के घर और गांव में जाकर रिपोर्टिंग की है. दुष्यंत कुमार जन्म स्थली बिजनौर रही है. दुष्यंत कुमार नजीबाबाद तहसील के गांव राजपुर नवादा के रहने वाले हैं. आज उनका घर पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुका है.
कलम से ही थी उनकी पहचान
व्यवस्था के विरुद्ध सीधा कटाक्ष और सत्ता के आगे कभी ना झुकने वाली दुष्यंत कुमार की कलम ही उनकी पहचान रही है. उन्होंने जीवनभर व्यवस्था के खिलाफ ही लिखा है. हमेशा विपक्षी उनके शेरों को हथियार बनाते रहे हैं, और सत्ता में आने पर उनके वही शेर हाशिए पर जाते रहे हैं. दुष्यंत कुमार के अंदर हमेशा से एक विद्रोही कवि रहा है.
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आघात के नाम से प्रकाशित हुई थी पहली कहानी
1 सितंबर 1933 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के राजपुर नवादा गांव में दुष्यंत कुमार का जन्म हुआ था. सिर्फ 18 साल की उम्र में 'परदेसी' के नाम से वो कविताएं लिखने लगे थे. उनकी पहली कहानी आघात के नाम से प्रकाशित हुई थी. बता दें, दुष्यंत कुमार की शिक्षा कई जगहों पर हुईं जैसे प्राथमिक शिक्षा गांव में, इसके बाद मुजफ्फरनग , नहटौर,चंदौसी, इलाहाबाद और मुरादाबाद में भी उन्होंने शिक्षा प्राप्त की. बाद में वह भोपाल में बस गए.
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सुमित्रानंदन पंत को मानते थे अपना गुरु
उनकी लेखनी में मुजफ्फरनगर और बिजनौर की एकदम खड़ी बोली रहती है. जहां एक तरफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रचलित शब्दों को उन्होंने अपनी कलम से उकेरा, तो वहीं भोपाल की रूमानियत भी उनकी गजलों में साफ दिखाई दी है. दुष्यंत कुमार सुमित्रानंदन पंत को अपना गुरु मानते थे. वहीं हरिवंशराय बच्चन उनके सबसे ज्यादा सहयोगी रहे. आकाशवाणी दिल्ली में स्क्रिप्ट राइटर की नौकरी मिलने में बच्चन साहब का काफी ज्यादा योगदान रहा.
इंदिरा गांधी सरकार पर साधा था निशाना
बता दें, दुष्यंत कुमार ने आकाशवाणी दिल्ली में काम किया और बाद में मध्य प्रदेश भाषा विभाग में काम करने लगे. छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में राजा प्रवीर चंद्र की हत्या के मामले में उन्होंने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार पर निशाना साधते हुए ''ईश्वर को सूली'' नाम की एक कविता लिखी थी. इस कविता के प्रकाशित होने के बाद मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद ने दुष्यंत कुमार को मुख्यमंत्री कार्यालय मे तलब किया था, लेकिन दुष्यंत कुमार बिना डरे कार्यालय में गए. मुख्यमंत्री द्वारा प्रश्न किया गया कि क्या सरकारी नौकरी में रहते हुए सरकार के विरुद्ध लिखना सही है ? तब दुष्यंत कुमार ने उत्तर दिया था कि वह पहले एक कवि है ,बाद में एक सरकारी मुलाजिम. इसके बाद मुख्यमंत्री ने उन्हें चाय पिला कर विदा कर दिया था.
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दुष्यंत कुमार ने आम बोलचाल की भाषा में कविता लिखते थे
दुष्यंत कुमार की कविताओं में एक विद्रोह का भाव तत्कालीन व्यवस्था देख कर उभरा. उनकी फेमस कविता, "मेरे सीने में ना सही तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए". दुष्यंत कुमार ने आम बोलचाल की भाषा में हमेशा अपनी कविता और गजल कही है. उन्हें हिंदी गजल को पहचान दिलाने वाला पहला गजलकार कहा जाता है.
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उनकी भाषा में इंकलाब का भाव था. वह सत्ता सदनों के विरुद्ध लिखने से भी नहीं कतराते थें. इमरजेंसी के दौरान दुष्यंत की कविताएं ने धूम मचा दी थी. सत्ता के विरुद्ध उनकी कविताएं हथियार के तौर पर प्रयोग की गई. उन्होंने कहा था कि सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं /मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए. दुष्यंत कुमार ने साए में धूप, जलते हुए वन का बसंत, सूर्य का स्वागत जैसे कई काव्य संग्रह लिखे. इसके साथ उन्होंने एक काव्य नाटिका लिखी है. जिसका नाम एक कंठ विषपाई है. यह काव्य नाटिका हिंदी साहित्य में एक खास स्थान रखती है.
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30 दिसम्बर 1975 को भोपाल में दिल का दौरा पड़ने के कारण दुष्यंत कुमार की मृत्यु हो गई थी. इसके बाद दुष्यंत कुमार के नाम पर भोपाल में दुष्यंत संग्रहालय की स्थापना की गई. उनके पैतृक गांव राजपुर नवादा में उनका घर बदहाल हालत में है. 2 साल पहले बिजनौर के साहित्यकार अमन कुमार त्यागी के प्रयास से उनके गांव में एक स्मृति द्वार का निर्माण सरकार द्वारा कराया गया था, लेकिन वह बनते ही गिर गया था.
हालांकि दुष्यंत कुमार के शेर आज भी सामाजिक मंचों से लेकर सत्ता सदन तक गूंजते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ,कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सहित अनेक राजनेता दुष्यंत कुमार के शेर अपने बातचीत में प्रयोग करते हैं, लेकिन व्यवस्था के विरुद्ध जो पीड़ा दुष्यंत कुमार के मन में थी, वह पीड़ा दुष्यंत कुमार के शेरों के माध्यम से आज भी जनता की आवाज बनकर गूंजती रहती है. जो हमेशा गूंजती रहेगी.
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