लखनऊ. 24 जून 1991 को एक शख्स यूपी का मुख्यमंत्री बनता है. पदभार संभालते ही पूरे मंत्रिमंडल के साथ अयोध्या पहुंचता है और शपथ लेकर उद्घोष करता है - 'सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर यहीं बनाएंगे'. अयोध्या में कदम रखने से पहले वह खुद को सीएम के तौर पर मिली हेलिकॉप्टर की सुविधा छोड़कर कहता है, यह भगवान राम की पावन धरती है, जहां पर उड़नखटोले में नहीं, बल्कि मार्ग से ही आना मैं सौभाग्य समझूंगा. उसके इस शपथ लेने के डेढ़ साल में रामजन्मभूमि की जमीन समतल नजर आ रही थी. यूपी के इस मुख्यमंत्री का नाम है कल्याण सिंह (Kalyan singh), जिन्हें गणतंत्र दिवस के अवसर पर पद्म विभूषण से सम्मानित करने की घोषणा की गई है. 
  
उनके जीवन की चर्चा हो और 6 दिसंबर के दिन की बात न हो ऐसा हो ही नहीं सकता.  उस दिन वे क्या कर रहे थे, इस बारे में तरह तरह की बातें कही जाती हैं. कल्याण सिंह के साथ सात साल पीएसओ रहे रिटायर्ड सीओ संजीव देशवाल ने एक बार मीडिया में उनके उस दिन का हाल बयां किया था.  बकौल संजीव जिस दिन ढांचा गिराया जा रहा था, उस दिन केंद्र, गृह मंत्रालय व अन्य कई एजेंसियों के फैक्स आ रहे थे, फोन बज रहे थे, पर कल्याण सिंह इस सब से दूर रहकर अपने ऑफिस की छत पर बैठे चाय के साथ पकौड़ी खाते रहे. सुबह के 10:30 बजे जब कार सेवक विवादित ढांचे पर चढ़ गए थे, तब केंद्र के गृह सचिव ने सीएम को फोन लगाया. संजीव के अनुसार कल्याण सिंह ने उस फोन सुनने से ही साफ मना कर दिया और आराम से चाय पकौड़े खाते रहे. बड़ी एजेंसियों के लगातार गिर रहे फैक्स की बात सुन उन्होंने कहा कि ये चाहे कितना दबाव डालें मैं किसी भी हालत में फोर्स को गोली चलाने का ऑर्डर नहीं दूंगा.  
शाम तक अयोध्या में जब कारसेवकों ने बाबरी ढांचा गिरा दिया और दिल्ली में दिन भर रहस्यमयी तरीके से गायब रहे पीएम नरसिंहराव की सिफारिश पर जब राष्ट्रपति ने UP सरकार बर्खास्त कर दी तो कल्याण से हंसते हंसते अपनी कुर्सी कुर्बान कर दी. वह इस निर्णय में अपनी जिम्मेदारी लेने में कितने पुख्ता थे, यह कल्याण सिंह के साथ उनकी कैबिनेट में मंत्री रहे बालेश्वर त्यागी ने अपनी पुस्तक में बयां किया है. उन्होंने लिखा कि- जब ढांचा गिरने के बाद कल्याण सिंह राज भवन अपना इस्तीफा देने जा रहे थे, तो मैं साथ ही था. वे बाबरी मस्जिद ध्वंस में यूपी के सरकारी अफसरों के फंसने को लेकर चिंतिंत थे. इसे देख उन्होंने उस वक्त के मुख्यसचिव से कहा था कि मेरी सरकार तो गई, अब तुम लोगों से एजेंसी इस बाबत सवाल करेंगी. तुम ऐसा करो एक फाइल पर मेरे लिखित आदेश ले लो कि ढांचा बचाने के लिए बल प्रयोग से मैंने ही मना किया था. 


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सोशल इंजीनियरिंग को आगे बढ़ाने वाले नेता 
अगर कल्याण सिंह को राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण में उनकी महती भूमिका के लिए याद किया जाता है तो उन्हें बीजेपी में सोशल इंजीनियरिंग को आगे बढ़ाने वाले नेता के तौर पर भी पहचाना जाता है. जब वे यूपी की राजनीति में उभरे तो तब बीजेपी पर सवर्णों की पार्टी का ठप्पा लगा था. यूपी बीजेपी में उन्हें पिछड़ों और दलितों के पहले नेता का दर्जा दें तो कोई गलत नहीं होगा. यहां तक कि अपने अंतिम समय से पहले उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में भी बीजेपी की चुनावी रणनीति बनवाने में मदद की थी और पिछड़ों और दलितों को पार्टी के साथ लाने में काफी मदद की थी. आज अपने निधन के बाद भी यूपी की पॉलिटिक्स में कल्याण सिंह बीजेपी के लिए बहुत जरूरी हैं. पिछड़ों के वोट से  कल्याण सिंह का काफी अहम नाता है, इसलिए उनकी स्मृति को स्थायी बनाने उनकी जीवनी स्कूली पाठ्यक्रम में लाने, अयोध्या में राममन्दिर जाने वाले मार्ग का नाम कल्याण सिंह मार्ग रखने, दो राजकीय मेडिकल कॉलेज के नाम उनके नाम पर करने, उनकी स्मृति यात्रा शुरू करने जैसे प्रयोग हो रहे हैं. और अब उनके महत्व को समझते हुए उन्हें पद्म पुरस्कार से भी नवाजा गया है. 


 (राेचक तथ्य:  8 बार विधायक का चुनाव जीतने वाले कल्याण सिंह असल में अपना पहला चुनाव हार गए थे.  पर इसके बाद उनकी राजनीति ऐसी परवान पर चढ़ी कि तीन बार UP के मुख्यमंत्री, एक बार लोकसभा के सांसद और फिर राजस्थान के गवर्नर के पद तक भी पहुंचे. ) 


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