नवरात्रि के सातवें दिन होती है माता विंध्यवासिनी की कालरात्रि रूप में पूजा, जानिए क्यों लेना पड़ा था वीभत्स रूप
Navratri 2022: दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है. इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी मां का दरवाज़ा खुल जाता है और भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु पूजा स्थल पर जुटने लगते हैं.
राजेश मिश्र/मीरजापुर: नवरात्र में मां शक्ति के नौ रूपों की आराधना की जाती है. विंध्य पर्वत पर त्रिकोण पथ पर स्थित मां काली आकाश की ओर अपने खुले मुख से असुरों का रक्तपान करते हुए भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं. यह रूप उन्होंने दुष्टों के विनाश के लिए बनाया हुआ है. मधु कैटभ नामक महापराक्रमी असुर से जीवन की रक्षा के लिए भगवान विष्णु को निंद्रा से जगाने के लिए ब्रह्मा जी ने 'कालरात्रिमर्हारात्रिर्मोहरात्रिर्श्च दारूणा। त्वं श्रीस्त्वमीश्र्र्वरी त्वं ह्रीस्त्वं बुद्धिर्बोधलक्षणा' मंत्र से मां की स्तुति की थी.
यह देवी कालरात्रि ही महामाया हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा हैं. इन्होंने ही सृष्टि को एक दूसरे से जोड़ रखा है. देवी काल-रात्रि का वर्ण काजल के समान काले रंग का है जो अमावस की रात्रि से भी अधिक काला है. मां कालरात्रि के तीन बड़े बड़े उभरे हुए नेत्र हैं, जिनसे मां अपने भक्तों पर अनुकम्पा की दृष्टि रखती हैं. देवी की चार भुजाएं हैं दायीं ओर की ऊपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं. बायीं भुजा में क्रमश: तलवार और खड्ग धारण किया है.
देवी कालरात्रि के बाल खुले हुए हैं और हवाओं में लहरा रहे हैं. देवी काल रात्रि गर्दभ पर सवार हैं, मां का वर्ण काला होने पर भी कांतिमय और अद्भुत दिखाई देता है. देवी कालरात्रि का यह विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है. इसलिए देवी को शुभंकरी भी कहा गया है. कालरात्रि भगवती का स्वरूप बहुत ही विकराल है. मां को इस रूप में नाना प्रकार के व्यंजनों का भोग लगते हैं. विशेष रूप से मधु व महुआ के रस के साथ गुड़ का भोग होता है. माता के दरबार में पहुंचे भक्त मां के भव्य रूप का दर्शन कर परम शांति का अनुभव करते हैं.
देवी का यह रूप ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करने वाला है. दुर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है. सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक मध्य रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं. इस दिन मां की आंखें खुलती हैं. षष्ठी पूजा के दिन जिस विल्व को आमंत्रित किया जाता है, उसे आज तोड़कर लाया जाता है और उससे मां की आंखें बनती हैं.
दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है. इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी मां का दरवाज़ा खुल जाता है और भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु पूजा स्थल पर जुटने लगते हैं. शास्त्रों में जैसा वर्णित हैं उसके अनुसार पहले कलश की पूजा करनी चाहिए. फिर नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए. फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए. देवी की पूजा से पहले उनका ध्यान करना चाहिए.