MP MLA : अपील-दलील बाद में, अब 2 साल की सजा होते ही सांसद-विधायक की सदस्यता खत्म
MP MLA Disqualification : सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि अब जन प्रतिनिधि यानी सांसद या विधायक को किसी भी मामले में दो साल की सजा होते ही सदस्यता खत्म मानी जाएगी. अपील पर फैसला बाद में होता रहेगा.
MP MLA Disqualification : सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति से अपराधियों को दूर रखने के लिए बुधवार को ऐतिहासिक फैसला दिया. इसके तहत अब सांसद-विधायक निचली अदालत में दोषी करार दिए जाने की तिथि से ही अयोग्य हो जाएंगे. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने अपने आदेश में उस प्रावधान को रद्द कर दिया, जो आपराधिक मुकदमों में दोषी करार सांसद, विधायक को ऊपरी अदालत में अपील लंबित रहने तक अयोग्य करार दिए जाने से बचाती है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अब तक जो सांसद या विधायक अपनी सजा को ऊपरी अदालत में चुनौती दे चुके हैं, उन पर यह आदेश लागू नहीं होगा.
आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों से मुक्ति
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से जहां संसद और विधानसभा को आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों से मुक्ति मिलेगी. आदेश उन राजनीतिक दलों के लिए भी सीख है, जो अपराधियों को सियासत की कुर्सी पर बिठाकर जन प्रतिनिधि बना देते हैं. जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को असंवैधानिक करार दिया है.
कोर्ट ने कहा कि दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही अयोग्यता प्रभावी होती है. इसी धारा के तहत आपराधिक रिकॉर्ड वाले जनप्रतिनिधियों को अयोग्यता से संरक्षण हासिल है. हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि यह फैसला भावी मामलों में ही लागू होगा. अदालत ने यह फैसला अधिवक्ता लिली थॉमस और गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी के सचिव एसएन शुक्ला की जनहित याचिका पर सुनाया.
इन याचिकाओं में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को निरस्त करने की मांग करते हुए कहा गया था कि इससे संविधान का उल्लंघन होता है.याचिका में कहा गया था कि संविधान में एक अपराधी के मतदाता के रूप में पंजीकृत होने या फिर उसके सांसद या विधायक बनने पर प्रतिबंध है. मगर जन प्रतिनिधित्व कानून दोषी सांसद, विधायक को अदालत के निर्णय के खिलाफ अपील लंबित होने के दौरान पद पर बने रहने की छूट देता है.
याचिकाकर्ता के मुताबिक यह प्रावधान पक्षपाती है. इससे समानता के अधिकार अनुच्छेद-14 का उल्लंघन होता है और इससे राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा मिलता है।जेल से चुनाव लड़ना अब मुमकिन नहीं.
जेल से चुनावी मैदान में कूदने के लिए नामांकन भरने वाले अपराधियों की कारगुजारी पर भी सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अंकुश लगा दिया है। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि जब जेल से मतदान करने का अधिकार नहीं है तो फिर जेल से चुनाव लड़ने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है.
अदालत ने जेल से चुनाव लड़ने को गलत प्रक्रिया करार देते हुए दोषी या गैर-दोषी व्यक्तियों की ओर से कैद में रहते हुए पर्चा भरे जाने के अधिकार को भी रद्द कर दिया है. जस्टिस एके पटनायक की अध्यक्षता वाली बेंच ने जन चौकीदार के आवेदन पर यह फैसला दिया.
तोड़ निकालने में जुटी सरकार
राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद सरकार अब इस आदेश का तोड़ निकालने में जुट गई है. माना जा रहा है कि दोषी ठहराने की तिथि से ही अयोग्य करार दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार अपील कर सकती है.
पुनर्विचार याचिका दाखिल होगी
सरकार को आशंका है कि सजा होते ही अपील का मौका दिए बिना संसद या विधानसभा की सदस्यता खत्म करने के फैसले का राजनीतिक विरोधी दुरुपयोग कर सकते हैं.सरकार के सूत्रों ने साफ संकेत दिए हैं कि फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने पर गंभीरता से गौर किया जाएगा.
यह ऐतिहासिक फैसला -कुरैशी
याचिकाकर्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता लिली थॉमस ने कहा, इस फैसले ने राजनीतिक दलों और सरकार से सारे बहाने छीन लिए हैं। चुनाव सुधारों की दिशा में यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा, फैसला ऐतिहासिक है। चुनाव आयोग ने चुनाव सुधार के लिए तमाम कोशिशें कीं, मगर राजनीतिक दल इन प्रयासों का समर्थन करने के बजाय इसके खिलाफ एकजुट हो गए.अब इस फैसले के बाद राजनीतिक व्यवस्था में साफ सफाई की शुरुआत होगी.
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