Muharram 2022: कहा जाता है कि हजरत इमाम हुसैन की याद में बने ताजियों और इमामबड़ों पर जो मन्नते मांगी जाती हैं, उनमें से फकीरी की मन्नत सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण है. प्रयागराज में यह परंपरा देखने को मिलती है, जहां बड़े-बड़े अफसर, डॉक्‍टर-इंजीनियर और कारोबारी फकीर बन जाते हैं. यहां लोग आकर मन्नतें मांगते हैं. जब वह मुरादें पूरी हो जाएं, तो फिर मन्नत निभाने के लिए यहां वापस आते हैं. यह सिलसिला कई सालों तक चलता है. कभी-कभी तो ताउम्र और खानदानी भी. 


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10-20 साल या ताउम्र भी चलती है परंपरा
जानकारी के मुताबिक, करबला की शहादत वाले मुहर्रम में भी कुछ ऐसा ही होता है. औलाद पाने के लिए मन्नतें मांगने वाले मन्नत पूरी होने पर फकीर बनते हैं. वहीं, बच्चों को भी यहां एक से तीन दिन का फकीर बनाया जाता है. इतना ही नहीं, इमाम हुसैन के नाम पर फकीर बनने की मन्नत को 10-20 साल या पूरी उम्र निभाया जाता है.


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बच्चों को भी बनाया जाता है फकीर
ऐसे में मन्नतों से जो बच्चे पैदा होते हैं, वह बड़े होकर अफसर भी बन जाएं, तो भी मुहर्रम पर उन्हें फकीर बनना जरूरी होता है. इसी के साथ लोग फकीरी वाले हरा-काले लिबास पहनकर इमाम हुसैन के नाम पर भीख मांगते हैं और अपनी मन्नत निभाते हैं. यही वजह है कि चौक, नखासकोहना इलाकों में वाले लिबास खूब बिकते हैं और बाजार इनसे सजा रहता है. 


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विदेश से लौटकर लोग बनते हैं फकीर
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हजारों मुस्लिम युवा 15-20 साल से सऊदी अरब, कुवैत, दुबई, कतर जैसे देशों में नौकरी कर रहे हैं. इनमें से कई लोग मन्नतें मांगते हैं. इसलिए हर साल मुहर्रम पर छुट्टी लेकर वह वापस आते हैं और फकीर बनकर मन्नत उतारते हैं. किसी कारण से न भी आ पाएं तो विदेश में ही एक दिन के लिए फकीर बन जाते हैं.


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