गौरव श्रीवास्तव/औरैया:यूपी के औरेया में एक ऐसा प्राचीन नाग मंदिर है जहां मंदिर की छत नहीं है खास बात यह है कि जिसने भी इस मंदिर की छत डलवाने की सोची उसके साथ अप्रिय घटना हुई है. कहा जाता है कि कन्नौज के राजा जयचंद्र भी इस मंदिर में दर्शन करने के लिए एक गुप्त सुरंग के जरिए आते थे, जो आज भी मंदिर में वह सुरंग बनी हुई है. मंदिर में नाग नगीन के जोड़े भी रहते हैं जो कभी कभी भक्तों को दर्शन भी देते हैं. इस मंदिर में आने वाले भक्तों की सभी मनोकामना  पूरी होती है और लोग दूर दूर से इस मंदिर में दर्शन को आते हैं.


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 नाग पंचमी के दिन यहां हजारो की तादात में लोग जल और दूध चढ़ाते है लेकिन मन्दिर का कायाकल्प सुधारने की सोचने से भी घबराता है गांव के लोग इस मंदिर की कहानी बताने में भी खौफ खाते हुए बताते है कि इस मंदिर में एक बड़े व्यापरी ने जब इस मन्दिर कि छत डलवाने को सोचा ही था कि उसके दोनों बेटों की मौत नाग पंचमी से चंद दिनों पहले ही हो गई थी।जहा इस मंदिर के पुजारी का कहना है कि मंदिर में देवी देवता खुली छत और वर्षो से ऐसे ही मन्दिर में रहना पसंद करते है।


क्या है नाग मंदिर की कहानी? 
औरैया जिले के दिबियापुर थाना क्षेत्र के सेहुदा गांव में भी एक ऐसा प्राचीन नाग नागिन का मंदिर बना हुआ है. जिसकी कहानी सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे.
सेहुदा गांव के लोगों का मानना है कि इस मंदिर को देवताओं ने बनवाया था, जो रातों रात बन कर तैयार हुआ था और तब से ही इस मंदिर की छत नहीं थी. आज भी इस मंदिर का नवनिर्माण नहीं हो पाया है, क्योंकि जिसने भी इस नाग मंदिर की छत डलवाने की सोची उसके साथ बुरा ही हुआ या यह कहे की उस घर का वंश ही नहीं बचा. 


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नाग पंचमी के दिन दूर-दूर से आते हैं लोग 
नाग मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि वीं सदी में मोहम्मद गजनवी के आक्रमण के समय इस मंदिर में भी के तोड़-फोड़ किया गया था. इसके अंदर आज भी खंडित मूर्तियां रखी हुई हैं जिनकी गांव के लोग ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश से भी भक्त आकर पूजा करते हैं और मन्नत मांगते है.मंदिर के पुजारी का कहना है कि जो व्यक्ति इस मंदिर में छत का निर्माण कराता है या सोचता भी है उसकी मौत हो जाती है. 


राजा जयचंद्र आते थे नाग देवता का दर्शन करने 
इस मंदिर का निर्माण किसने और कब कराया ये आज भी रहस्य बना हुआ है. कहा जाता है कि कन्नौज के राजा जयचंद्र की इस मंदिर के प्रति विशेष आस्था थी. यहां नाग पूजन करने के लिए वह खुद आया करते थे. उस समय राजा जयचंद्र ने मंदिर पहुंचने के लिए एक गुप्त सुरंग का निर्माण भी कराया था जो आज भी मन्दिर में गुप्त सुरंग बनी हुई है.


सुनने में यह भी आया है कि इस मंदिर की कोई चीज नहीं ले जा सकता हैं भले ही मंदिर खुला है, लेकिन यहां की ईंट, मूर्ति या कोई भी चीज अपने साथ घर पर नहीं ले जा सकता. जिसने भी ऐसा किया, उसके सामने ऐसे हालात पैदा हो गए कि उसे वापस वो चीज रखने के लिए आना पड़ा.सन 1957 में जब इटावा जिले के एक उच्चाधिकारी थे तब इस मंदिर से एक मूर्ति ले गए थे, लेकिन कुछ समय बाद उनको वो मूर्ति वापस रखने के लिए आना पड़ा था.


नागपंचमी के दिन दंगल का होता है आयोजन 
नागपंचमी पर इस मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की जाती है. मन्दिर और गांव में मेला लगता है. दूर-दूर से लोग मंदिर में जल और दूध लेकर दर्शन करने आते हैं और अपनी मन्नत मांगते हैं. उनकी मन्नत भी जरूर पूरी होती है. नागपंचमी के दिन गांव में मेला लगता है और मेले में दंगल का भी आयोजन होता है. जिसमें दूसरे जिले से भी पहलवान आते हैं. 


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