Navratri 2022: इकलौता मंदिर, जहां दिन में तीन बार रूप बदलती हैं देवी मां, आल्हा-ऊदल और पृथ्वीराज के युद्ध से जुड़ी है कहानी
Jalaun Shaktipeeth Mandir: शारदा देवी का मंदिर जालौन के गांव बैरागढ़ में बना हुआ है. इसका नाम आल्हा के बैराग लेने की कहानी से पड़ा. जानें मान्यता...
Jalaun Maata Mandir: नवरात्रि के त्योहार पर नौ दिन मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है. आइए हम आपको उस ऐतिहासिक मंदिर की ओर ले चलते हैं, जो आखिरी हिन्दू राजा पृथ्वीराज और बुन्देलखंड के वीर योद्धा आल्हा-ऊदल के युद्ध का आज के समय में भी गवाह बना हुआ. यह मंदिर उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के बैरागढ़ गांव में स्थित है और शक्ति पीठ शारदा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है. यहां जालौन से ही नहीं, बल्कि दूर-दराज के क्षत्रों से भी लोग दर्शन करने के लिए आते हैं. यहां पर नवरात्रि ही नहीं, बल्कि पूरे 12 महीने भक्तों का तांता लगा रहता है. नवरात्रि पर यहां पर भव्य आयोजन होते हैं.
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लाल पत्थर से बनी है मूर्ति
बता दें कि यह शारदा देवी का मंदिर जालौन के मुख्यालय उरई से लगभग 30 किलो मीटर दूरी पर स्थित ग्राम बैरागढ़ में बना हुआ है. यहां पर ज्ञान की देवी सरस्वती मां शारदा के रूप में विराजमान हैं और उनकी अष्टभुजी मूर्ति लाल पत्थर से निर्मित है.
तीन पहर में दिखते हैं मां के तीन अलग रूप
शक्ति पीठ बैरागढ़ मंदिर की स्थापना चन्देलकालीन राजा टोडलमल ने ग्यारहवीं सदी में की थी. किंवदंतियों के अनुसार, यह मंदिर आदिकाल में निर्मित कराया गया था और मंदिर के पीछे बने एक कुंड से मां शारदा की मूर्ति निकली थी. प्राचीन किंवदंतियों के अनुसार, कुंड से मां शारदा प्रकट हुई थीं. इसलिए इस स्थान को शारदा देवी सिद्धि पीठ कहा जाता है. भक्तों के मुताबिक, मूर्ति तीन रूपों में दिखाई देती है. सुबह के समय मूर्ति कन्या के रूप में नजर आती है, तो दोपहर के समय युवती के रूप में और शाम के समय मां के रूप में मूर्ति दिखाई देती है. इनके दर्शन के लिये पूरे भारत से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं.
पृथ्वीराज को दी थी शिकस्त
मां शारदा शक्ति का यह शक्तिपीठ पृथ्वीराज और आल्हा-ऊदल के युद्ध का साक्षी है. पृथ्वीराज ने बुन्देलखंड को जीतने के उद्देश्य से ग्यारहवीं सदी के तत्कालीन चन्देल राजा परमर्दिदेव (राजा परमाल) पर चढ़ाई की थी. उस समय चन्देलों की राजधानी महोबा थी. आल्हा-ऊदल राजा परमाल के मंत्री के साथ वीर योद्धा भी थे. बैरागढ़ के युद्ध में आल्हा-ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में बुरी तरह परास्त कर दिया था.
आल्हा को था मां शारदा का वरदान
बताया जाता है कि आल्हा और ऊदल मां शारदा के उपासक थे. आल्हा को मां शारदा का वरदान था कि उन्हें युद्ध में कोई नहीं हरा पायेगा. ऊदल की मौत के बाद आल्हा ने प्रतिशोध लेते हुये अकेले पृथ्वीराज से युद्ध किया और विजय प्राप्त की थी. उसके बाद आल्हा ने विजय स्वरूप मां शारदा के चरणों के बगल में सांग गाढ़ दी. पृथ्वीराज चौहान सांग को न ही उखाड़ सके और न ही सांग की नोंक को सीधा कर पाए. इसके बाद आल्हा ने युद्ध से बैराग ले लिया. वह सांग आज भी मन्दिर के मठ के ऊपर गड़ी है.
इस वजह से पड़ा बैरागढ़ नाम
यह सांग 30 फिट से भी ऊंची है और जमीन में इतनी ही अधिक गढ़ी है. मन्दिर में आल्हा द्वारा गाड़ी गई सांग इसकी प्राचीनता दर्शाता है. जब आल्हा ने युद्ध से बैराग लिया, तभी से यहां का नाम बैरागढ़ पड़ गया. देश में यह मन्दिर दो ही स्थान पर है, जिसमें एक जालौन के बैरागढ़ में और दूसरा मध्य प्रदेश के सतना जनपद के मैहर में है. मन्दिर की प्रचीनता और सिद्ध पीठ होने के कारण मां शारदा के दर्शन करने के लिए दूर दराज से श्रद्धालु आते हैं.
ऊदल की मौत के बाद आल्हा का प्रतिशोध
मंदिर के पुजारी श्याम जी महाराज का कहना है कि मां शारदा के दर्शन करने प्राचीन समय में आल्हा ऊदल आते थे. उन्होंने बताया कि लोग अपनी मनोकामनाओं के लिए चैत्र और शारदीय नवरात्रि पर दर्शन करने आते हैं. यहां विशाल मेला लगता है, जो पूरे एक महीने चलता है. मंदिर के पुजारी के मुताबिक, यहां कुंड है में नहाने से सभी प्रकार के चर्म रोग खत्म हो जाते हैं. श्याम महाराज के अनुसार, यहां पर आल्हा-ऊदल औऱ पृथ्वीराज चौहान के बीच युद्ध हुआ था. इसमें ऊदल की मौत के बाद आल्हा ने प्रतिशोध लेते हुए अकेले पृथ्वीराज से युद्ध किया और विजय प्राप्त की थी. इसके बाद आल्हा ने विजय स्वरूप मां शारदा के चरणों में सांग गाढ़ दी और युद्ध से बैराग ले लिया.
हर मनोकामना होती है पूरी
आल्हा के युद्ध से बैराग लेने के बाद इस स्थान का नाम बैरागढ़ पड़ गया. तभी से यहां पर मां शारदा देवी की पूजा होती चली आ रही है. श्रद्धालु ने बताया कि उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. वो पिछले 15 साल से यहां आ रहे हैं, जब तक माता रानी बुलाती रहेंगी, वो यहां आते रहेंगे.
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