लखनऊः उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ अपनी तहजीब के लिए जानी जाती है. यह शहर विरासत में मिली अपनी संस्कृति को मॉडर्न लाइफ स्टाइल के साथ आज भी संजोए हुए है. आज के इस बदलते दौर में भी यहां की संस्कृति, खानपान, भाषा और कला पूरे विश्व में मशहूर है. आज हम लखनऊ की ढेरों विशेषताओं के बीच इस शहर की खूबसूरत कला, चिकनकारी के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे. 


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दरअसल, जब भी कभी लखनऊ का जिक्र होता है, तो एक बात हमेशा सबकी जुबान पर होती ही है कि 'लखनऊ में चिकन खाया भी जाता है और पहना भी जाता है'. यहां की चिकनकारी को लेकर ही यह बात कही जाती है. यहां के चिकन का लाजवाब स्वाद और चिकन के कपड़ों की बात ही अलग है. यही वजह है कि लखनऊ शहर अपनी चिकनकारी के लिए दुनियाभर में मशहूर है. 


लखनऊ की चिकनकारी है मशहूर
आम हो या खास, लखनऊ आने वाले टूरिस्ट लौटते समय यहां से चिकन के कपड़े ले जाना नहीं भूलते. लखनऊ में सैकड़ों सालों से चिकनकारी अपनी लोकप्रियता को बरकरार रखे हुए है. महीन कपड़ों पर सुई धागे से की गई कढ़ाई लखनऊ चिकनकारी के नाम से विख्यात है. यह कला ईरान से भारत पहुंची है. मुगल बादशाह जहांगीर की बेगम इसकी जनक है. 


फारसी शब्द के 'चाकिन' से बना है चिकन
लखनवी चि‍कनकारी में इस्तेमाल किया जाने वाला च‍िकन शब्‍द अपभ्रंश है. यह मूलत: फारसी शब्‍द है, ज‍िसे फारसी में 'चाक‍िन' कहा जाता है. जिसका मतलब है क‍िसी कपड़े पर बेलबूटे की कशीदाकारी और कढ़ाई करना, लेक‍िन भारत में यह 'चाक‍िन' शब्‍द जुबान पर चढ़ते- चढ़ते च‍िकन बन गया. 


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नूरजहां ने भारत में शुरू की थी चिकनकारी
भारत में च‍िकनकारी का काम शुरू होने को लेकर दो बेहद क‍िस्‍से प्रचल‍ित हैं, दोनों ही क‍िस्‍से नूरजहां से जुड़े हुए हैं. कहा जाता है कि मुगल सम्राट जहांगीर की बेगम नूरजहां इस कला को ईरान से सीख कर आई थीं. वहीं, यह भी कहा जाता है कि नूरजहां की एक दासी बिस्मिल्लाह जब दिल्ली से लखनऊ आई तो उसने अपनी इस कला का प्रदर्शन क‍िया. ज‍िससे नूरजहां ने भी यह कला सीखी और इस अनूठी कला को आगे बढ़ाया.


ऐसे तैयार किया जाता है चिकन का कपड़ा
चिकनकारी के लिए सबसे पहले धुले  हुए कपड़ों को 40 डिग्री तापमान पर सुखाया जाता है, फिर कटाई, सिलाई, रंगाई-कढ़ाई का काम होता है. इन कपड़ों पर सुई द्वारा हाथ से कढ़ाई होती है. सुई धागे के अलावा जालियों का एक बड़ा जटिल काम होता है. वहीं 40 प्रकार के टांके और जालिया चिकनकारी के काम में प्रयोग में लाए जाती हैं. जिनमें मुर्री, फंदा, कांटा, तेपची, पंखड़ी, लौंग जंजीरा, राहत, बांग्ला जाली, मुद्रा जाजी, सिद्धौर जाली, बुलबुल चश्म जाली, बखिया आदि शामिल हैं.


चिकन के कपड़ों को तैयार करने में रंगरेज का काम भी बहुत अहम माना जाता है, क्योंकि पक्के रंग चढ़ाना उसी की जिम्मेदारी होती है. हाथ से कारीगरी के कारण कपड़ा मैला भी दिखने लगता है. चिकन के तैयार कपड़ों की गोमती नदी में धुलाई की जाती है.


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चिकन कपड़ों के लिए फेमस बाजार
लखनवी चिकन के कुरते बहुत नर्म और कई प्रकार के गुल-बूटों और डिजाइनों में होते हैं. शहंशाह, राजा-महाराजा और नवाब, सभी ने अपने-अपने समय में लखनवी चिकन के कपड़ों का इस्तेमाल किया हैं. एक समय ऐसा भी था कि लखनवी चिकन के कुरते पहनना सभी के बस की बात नहीं थी, क्योंकि पुराने समय में यह पूरी तरह से हाथ की सिलाई से बनाए जाते थे और देश की सबसे अच्छी कॉटन से तैयार होते थे. अब यह सबकी पहुंच में हैं.


इस समय अनारकली सबसे पसंदीदा है. वहीं, जार्जेट, रेशम और चंदेरी सिल्क का काम सबसे ज्यादा पसंद किया जा रहा है. वैसे तो लखनऊ में चिकनकारी के कपड़ों की बाजार अमीनाबाद और चौक इलाके में सबसे ज्यादा है. यहां पर अलग-अलग तरीकों के चिकनकारी मिलती है. हजरतगंज के जनपथ मार्केट कुछ मशहूर दुकाने हैं.


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