OBC Politics in Uttar Pradesh : उत्तर प्रदेश में पिछले आठ सालों से दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव में बुरी तरह मात खा चुकी समाजवादी पार्टी ने मिशन 2024 की रणनीति साफ कर दी है. पार्टी ने यूपी में 55 फीसदी के करीब आबादी वाले पिछड़ा वर्ग पर पूरी तरह दांव खेलने का सियासी रुख जाहिर कर दिया है. रामचरित मानस की चौपाई को लेकर सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के लगातार आक्रामक बयानों का अखिलेश यादव द्वारा परोक्ष समर्थन भी इसी ओर इशारा करता है. यही वजह है कि रामचरित मानस विवाद में पहले बचाव की मुद्रा में आई सपा ने अब आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है. 


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अखिलेश ने खुद इन चौपाइयों को विधानसभा में दोहराने की चुनौती मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देने की बात कही है. उन्होंने कई बार मैं शूद्र हूं - की बात भी दोहराई.
ऐसे में साफ है कि पार्टी इस मुद्दे को शांत नहीं होने देना चाहती. 2024 लोकसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी की ओबीसी पॉलिटिक्स का इशारा सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के गठन में भी देखने को मिला है. सपा की ओर से घोषित 14 राष्ट्रीय महासचिवों में एक भी ब्राह्मण क्षत्रिय नहीं है. सभी बड़े पद पिछड़े और दलित नेताओं को दिए गए हैं. 


पिछड़ा वर्ग के कई बड़े नेताओं को तरजीह
इंद्रजीत सरोज, रविप्रकाश वर्मा, बलराम यादव, रामजीलाल सुमन, लालजी वर्मा, रामअचल राजभर जैसे पिछड़े औऱ दलित नेताओं को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है. इनमें से कई नेता लंबे समय तक बसपा या दूसरे दलों में सियासी पारी खेल चुके हैं. 


रामचरित मानस विवाद
वहीं साधु संतों के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल चुके स्वामी प्रसाद मौर्य ने कथित तौर पर रामचरित मानस की प्रतियां जलाने के आरोपियों का बचाव किया है. सपा ने बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में भी जातिगत जनगणना करने की मांग को भी हवा दे दी है. बिहार में जेडीयू-राजद गठबंधन बीजेपी के मुकाबले जाति जनगणना पर ताल ठोंक रहा है. 


नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आयोग
हाल में उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन को लेकर भी इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का जो फैसला आया था, उसमें भी सपा ने बीजेपी पर हमलावर होने की कोशिश की थी. हालांकि सरकार ने ओबीसी आरक्षण के लिए 24 घंटे में आयोग गठित कर इस दांव को कुंद करने का प्रयास किया.


बीजेपी प्रवक्ता आलोक वर्मा का इस पर कहना है कि आलोक वर्मा यूपी बदल गया है, प्राथमिकताएं बदल गई हैं. अलग-अलग जातियों को पाले में लाने की छटपटाहट सपा में साफ देखी जा रही है. इन जातियों को एक नेता के पीछे खड़ा करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है. अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी माई समीकरण को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रही है. साथ ही पिछड़ी जातियों को साधने की कवायद हो रही है, लेकिन अखिलेश बताएं कि सपा को यूपी की जनता ने चार बार सत्ता सौंपी, उन्होंने इन पिछड़ी जातियों के लिए क्या किया. भारतीय जनता पार्टी ने तमाम पिछड़ी जातियों को प्रतिनिधित्व दिया है. 


गौरतलब है कि निषाद पार्टी, अपना दल जैसी राजनीतिक पार्टियां बीजेपी के साथ हैं. ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी बीजेपी की ओर जाती दिख रही है. वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने किसी भी दल से गठबंधन नहीं करने का संकेत दिया है. 


सपा प्रवक्ता कीर्तिनिधि पांडेय ने कहा कि बीजेपी को गिरेबां झांकना चाहिए. ये लोग दलितों और पिछड़ों के आरक्षण को खत्म करने की साजिश है. बीजेपी पिछड़े समाज के साथ साजिश कर रही है. सपा इन सभी शोषित वंचित वर्ग को लेकर आगे बढ़ेगी. समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ब्राह्मण क्षत्रिय समेत सभी वर्गों को नुमाइंदगी दी गई है. जिलेवार समितियों में भी ये दिखेगा.


पिछड़ी जातियों का समीकरण....
यादव - 10 फीसदी
कुर्मी सैथवार -8 फीसदी
मल्लाह 5 फीसदी
लोध 3 फीसदी
जाट 3 फीसदी
विश्वकर्मा 2 फीसदी
अन्य पिछड़ी जातियां - 7 फीसदी
(कुल पिछड़ा वर्ग का वोट 44 फीसदी)
अनुसूचित जाति -22 फीसदी
मुस्लिम - 18 फीसदी
सवर्ण - 18 फीसदी