वाराणसी.  कल घोषित हुए पद्म पुरस्कारों (Padma Awards announced) में पद्मश्री पाने वालोंं में एक नाम काशी के शिवानंद बाबा (Shivanand Baba) का भी है. उनकी ज्यादातर चर्चा तो उनकी उम्र को लेकर होती है. जिसके बारे में दावा किया जाता है कि वह इस समय 125 साल के है और इस उम्र में भी पूरी तरह स्वस्थ्य है. पर उम्र के अलावा बाबा शिवानंद की जीवनयात्रा के बारे में भी बात होनी चाहिए, जो किसी चमत्कार जैसी ही है. योग साधक बाबा शिवानंद चूंंकि लाइमलाइट से दूर रहने को ही प्राथमिकता देते हैं, इसलिए उन्हेांने कभी किसी से अपने पिछले जीवन के बारे में कुछ चर्चा की नहीं है, पर अब इस बारे में उनके कुछ पूर्व साक्षात्कारों से जानकारी सामने आने लगी है. साल 1896 में पैदा हुए शिवानंद को योग और धर्म में बहुत गहरी जानकारी हासिल है. वह बंगाल से काशी पहुंचे और यहीं गुरु ओंकारानंद से शिक्षा ली. 1925 में अपने  गुरु के आदेश पर  29 साल की उम्र में वह दुनिया के भ्रमण पर चले गए थे.  34 साल तक देशविदेश को उन्होंने नाप डाला और जिंदगी के गूढ़ रहस्य जुटाए.  इसके बाद योग और स्वस्थ दिनचर्या  के लिए लोगो को प्रेरित करने लगे. 


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बाबा की फिटनेस व इस उम्र में कठिन योगाभ्यास करने का हुनर तब ज्यादा चर्चा में आया जब अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने ट्विटर पर उनका वीडियो शेयर कर उनकी सेहत के बारे में सबको बताया. इन्हीं से  प्रेरणा पाकर शिल्पा ने योगासन शुरू किए और खानपान में बदलाव किया.  वह अपने फेसबुक और ट्विटर एकाउंट पर बाबा के बारे में लिखती हैं- ‘123 वर्ष की आयु में कितने प्रसन्न और पॉजिटिव हैं शिवानंद बाबा. अपनी बेहतर जिंदगी के लिए वह हमारे लिए आदर्श हैं.’
बाबा की इस बेहद ज्यादा उम्र का प्रमाण भी उनके पास है. उनके आधार कार्ड व पासपोर्ट पर उनकी जन्मतिथि 8 अगस्त 1896 दर्ज है. इस दावे को माना जाए तो वह गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जापान के चित्तेसु वतनबे के नाम दर्ज सबसे अधिक आयु वाले व्यक्ति के  रिकॉर्ड (122 साल) से काफी आगे हैं. बाबा शिवानंद हर दिन सुबह 3 बजे उठ जाते हैं. रोज एक घंटा योग करते हैं. गीता और मां चंडी के श्लोकों का पाठ करते हैं. खान में केवल उबला भोजन करते हैं. 


अपनी उम्र की पुष्टि करते हुए एक इंटरव्यू में बाबा शिवानंद ने बताया था कि उनका जन्म बंगाल के श्रीहट्टी जिले में 8 अगस्त 1896 में हुआ था. भूख के कारण उनके माता-पिता चल बसे थे. तब से लेकर बाबा ने केवल आधा पेट भोजन करने का संकल्प लिया, जिसे वे अब तक निभा रहे हैं. गरीबों के प्रति उनकी आत्मीय भावना है, चूंकि गरीब लोगों को फल और दूध नसीब नहीं होते तो बाबा भी इन्हें ग्रहण नहीं करते. साल 1979 से वह शिव की नगरी काशी में ही रह रहे हैं. काशी के बारे में उनका कहना है कि  यह पवित्र भूमि के साथ-साथ तपोभूमि  भी है. यहां पर स्वयं भगवान शंकर विराजते हैंं,इसलिए उन्हें यहीं अच्छा लगता है .  


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