बाराबंकी: मिशन पहचान से बदल रही बाराबंकी के माध्यमिक स्कूलों की तस्वीर, बच्चे बन रहे सुपर स्मार्ट
आमतौर पर सरकारी स्कूलों का नाम सुनते ही बदहाल व्यवस्था, शिक्षकों की कमी, अनुशासन न होना, बच्चों की कमी जैसे ख्याल मन में आने लगते हैं. हालांकि कुछ हद तक यह बातें सही भी होती है.
नितिन श्रीवास्तव/बाराबंकी: आमतौर पर सरकारी स्कूलों का नाम सुनते ही बदहाल व्यवस्था, शिक्षकों की कमी, अनुशासन न होना, बच्चों की कमी जैसे ख्याल मन में आने लगते हैं. हालांकि कुछ हद तक यह बातें सही भी होती है. अधिकांश सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता की कमी के साथ बदइंतजामी देखने को मिल ही जाती है, लेकिन बाराबंकी के राजकीय और अशासकीय सहायता प्राप्त स्कूल इन दिनों अपनी अलग छवि बनाते हुए जिले के दूसरे प्राइवेट स्कूलों को टक्कर दे रहे हैं. यह सब संभव हुआ है बाराबंकी के जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) ओपी त्रिपाठी की नई पहल मिशन पहचान से. मिशन पहचान की थीम बच्चों का ज्ञान, गुरुजी की पहचान है. डीआईओएस ओपी त्रिपाठी के इस नवाचार के माध्यम से जिले में माध्यमिक स्कूलों के बच्चे सुपर स्मार्ट बन रहे हैं. साथ ही यहां बच्चों की संख्या भी बढ़ती जा रही है.
नवाचार से काफी खुश हैं बच्चे
दरअसल बाराबंकी जिले के माध्यमिक स्कूलों में बच्चों के बौद्धिक विकास, सामान्य ज्ञान और आत्मबल बढ़ाने के लिए डीआईओएस ओपी त्रिपाठी नवाचार से बदलाव ला रहे हैं. जिले के राजकीय और अशासकीय सहायता प्राप्त स्कूल में बच्चों की प्रतिभा निखारने को लेकर डीआईओएस ने किताबी और रटने वाले ज्ञान से इतर अपने राष्ट्रीय पुरस्कार वाले मिशन पहचान को लागू किया है. इसी क्रम में अब बाराबंकी जिले के जीआईसी और जीजीआईसी समेत सभी राजकीय और अशासकीय सहायता प्राप्त स्कूलों में इस नवाचार के तहत बच्चों का ज्ञान, गुरुजी की पहचान का सपना साकार हो रहा है. वहीं, इन स्कूलों के बच्चे इस नवाचार से काफी खुश भी हैं. उनका कहना है कि इससे उनका सामान्य ज्ञान और आत्मविश्वास काफी बढ़ रहा है.
खराब वस्तुओं से उपयोगी सामान बनाते हैं बच्चे
मिशन पहचान के तहत इन स्कूलों में बच्चे प्रार्थना सभा में देश-दुनिया से जुड़ी प्रमुख और ऐतिहासिक खबरों का प्रस्तुतीकरण एक परफेक्ट न्यूज रीडर के रूप में करते हैं. इसे बाल न्यूज सेंटर का नाम दिया गया है. इसके अलावा हर रोज पांच और दस महीने में लगभग एक हजार सामान्य ज्ञान के प्रश्नों की जानकारी छात्रों को देने का उद्देश्य है. वहीं, बच्चों का आत्मबल बढ़ाने के लिए नोटिस बोर्ड पर प्रतिदिन स्कूल का एक बच्चा अपना विचार भी अंकित करता है. यही नहीं महीने के आखिर में सबसे अच्छा विचार लिखने वाले बच्चे को सम्मानित भी किया जाता है. इस मूल्यांकन समिति में बच्चे भी शामिल किये गये हैं.हर शनिवार को स्कूल में फन-डे मनाया जा रहा है. फन-डे में जहां क्विज, निबंध, भाषण, चित्रकला और खेलकूद की प्रतियोगिताएं होती हैं तो वहीं बच्चे वेस्ट टू बेस्ट के तहत खराब वस्तुओं से उपयोगी सामान बनाते हैं.
वहीं, मिशन पहचान के तहत राजकीय और अशासकीय सहायता प्राप्त स्कूलों में कराई गई इस शुरुआत को लेकर बाराबंकी के डीआईओएस ओपी त्रिपाठी ने बताया कि सरकारी और एडेड स्कूलों के बच्चे सब कुछ जानते हैं, साथ ही और ज्यादा जानने की इच्छा भी रखते हैं, लेकिन उनको अक्सर वह प्लेटफार्म नहीं मिल पाता, जिसके वह हकदार होते हैं. ऐसे में मिशन पहचान के तहत इन स्कूलों के बच्चों में आत्मविश्वास के साथ-साथ जानकारी में बढ़ोत्तरी हो रही है. उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों के बच्चों पर अक्सर यह आरोप लगता है कि वह बोल ही नहीं पाते हैं, मिशन पहचान के तहत बच्चे अब लोगों के इस भ्रम को तोड़ रहे हैं.
इसके साथ ही जीआईसी के प्राधानाचार्य राधेश्याम धीमान ने भी माना कि इस नई पहल से बच्चों के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है, वहीं जीजीआईसी की प्रधानाचार्य डॉ. पूनम सिंह के मुताबिक मिशन पहचान से बच्चे अपने अंदर की छिपी प्रतिभा को निकालकर उसे संवार रहे हैं. इससे उनकी दशा और दिशा दोनों बदल रही है. इससे उनका भविष्य और ज्यादा उज्जवल हो सकेगा.
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