विजय रावत/लखनऊ: चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बेशक कांग्रेस की 2024 में चुनावी नैय्या पार कराने के कांग्रेस के ऑफर को ठुकरा दिया हो, लेकिन क्या वाकई इसकी वजह वही है जो प्रशांत किशोर ने बताई है या फिर कुछ और?


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पीके ने ट्विटर पर किया था पोस्ट
पीके ने ट्विट के जरिये ये जानकारी दी कि कांग्रेस संगठन उनके बदलाव के सुझाव को अमल में लाने को तैयार नहीं था. वो चाहते थे कि उन्हें सिर्फ चुनावी रणनीति तक सीमित ना रखा जाए. पीके ने ये भी सुझाव दिया था कि पार्टी को निर्णय लेने की शक्ति को बढ़ाने की जरूरत है और साथ ही सुधारों पर अमल करने के लिए उन्हें खुली छूट मिले, जो कांग्रेस के लीडरों को मंजूर नहीं था.


लेकिन, असलियत यह है कि प्रशांत किशोर खुद ही कांग्रेस में शामिल नहीं होना चाहते थे, क्योंकि एक चुनावी रणनीतिकार होने के कारण वह अच्छी तरह जानते थे कि 2024 में प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को जीत की तिकड़ी बनाने से कोई रोक नहीं सकता और उसकी वजह है वे तीन स्तंभ जिन्हें गिराना आज के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में किसी राजनीतिक दल के बस की बात नहीं है.


ये तिकड़ी है प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी. सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी की बात करते हैं. प्रशांत किशोर ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ बहुत करीब से काम किया है. यही नहीं, साल 2014 में वो प्रधानमंत्री मोदी के चुनावी रणनीतिकार भी रहे हैं. वो भली भांति जानते हैं कि इस समय भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री मोदी जैसा कोई भी नेता मौजूद नहीं है. यही नहीं, अपनी भाषण कला से वो जनता का मन जीत लेते हैं. साथ ही, पीएम मोदी की तेज निर्णय लेने की शक्ति के भी लोग कायल हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने भारत को जो पहचान दिलाई है उससे भी पीके भली भांति परिचित हैं.


दूसरे नंबर पर आते हैं भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह, जिन्होंने भाजपा के संगठन को इतना मजबूत बना दिया है कि उससे टक्कर ले पाना किसी के बस की बात नहीं है. पीके अच्छे से जानते हैं कि चुनाव में संगठन को कैसे एकजुट करना है. कैसे चुनाव में विपरीत परिस्थिति होने पर भी उसे अपने अनुरूप ढाला जाए, इसको लेकर अमित शाह का कोई तोड़ नहीं है.


तीसरे नंबर पर आते हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जिन्होंने लगातार दूसरी बार राज्य में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाकर अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवाया है.


पीके का कांग्रेस में शामिल ना होने का सबसे बड़ा कारण उत्तर प्रदेश में भाजपा की प्रचंड जीत है. ये जीत इसलिए भी बड़ी हो जाती है क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनाव ऐसे समय में हुए, जब किसान आंदोलन अपने चरम पर पहुंचकर खत्म हुआ, लेकिन चुनाव में खास असर नहीं डाल पाया. यही नहीं, इस बार एक तरफा अल्पसंख्यक वोट और आरएलडी से गठबंधन के बावजूद भी सपा की साइकिल योगी आदित्यनाथ के बुलडोजर के नीचे आ ही गई.


2024 में भाजपा के जीत के रथ को रोकने के लिए कांग्रेस खुद चाहती थी कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल हों और पीके को ये ऑफर खुद सामने से कांग्रेस ने दिया था. पीके भी कांग्रेस में शामिल होना चाहते थे, लेकिन उनको जब आभास हो गया कि अब 2024 में भाजपा को जीत की हैट्रिक बनाने से कोई नहीं रोक सकता, तो पीके ने जानबूझकर कांग्रेस के सामने प्रेजेंटेंशन के दौरान दो ऐसे पेंच फंसा दिए, जिसपर कांग्रेस के सीनियर लीडर के साथ सोनिया गांधी भी कभी राजी नहीं होतीं.


पेंच नंबर – 01
कांग्रेस अध्यक्ष प्रियंका गांधी वाड्रा को बनाया जाए, जबकि पार्टी राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाना चाहती थी. ये पेंच पीके ने इसलिए फंसाया कि कांग्रेस में पहले से ही एक गुट राहुल के अलावा किसी और को कांग्रेस अध्यक्ष बनाना चाहता है. 


पेंच नंबर – 02
कांग्रेस महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और बिहार में अपने पुराने सहयोगियों से अलग हो जाए, जिसका मतलब यह होता कि महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार गिर जाती और पहले से ही सहयोगियों के लिए तरस रही कांग्रेस का बिहार, जम्मू-कश्मीर के परंपरागत गठबंधन के सहयोगियों से भी साथ छूट जाता.


उत्तर प्रदेश में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी भाजपा की जीत से प्रशांत किशोर को अंदाजा हो चुका था कि 2024 में भी भाजपा की जीत का रास्ता यूपी से होकर ही निकलने वाला है. ऐसे में वो नहीं चाहते थे कि कांग्रेस की डूबती नैया में सवार होकर अपना भी करियर खत्म कर लें और दूसरा प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और आदित्यनाथ योगी की तिकड़ी के सामने टिकने का दम 2024 तक किसी में नजर नहीं आता है.


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