Santali Saree: द्रौपदी मुर्मू ने क्यों पहनी हरे-लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी,जानें क्या है इस संथाली साड़ी का इतिहास!
Draupadi Murmu Santali Saree: ये संथाली साड़ी हैंडलूम यानी हाथ से बनी होती है... बुनकर रंगीन धागों से साड़ी बनाते हैं..यह पहनावा ना सिर्फ उन्हें अपने ट्रेडिशन से जड़ से जुड़े रहने का अहसास दिलाता है, बल्कि अब ये आधुनिक फैशन के रूप में भी बनकर उभरा है.
Draupadi Murmu Santali Saree: द्रौपदी मुर्मू ने देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले ली हैं. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने उन्हें शपथ दिलाई. बता दें कि मुर्मू देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं, सर्वोच्च संवैधानिक पद संभालने वाली पहली आदिवासी महिला और स्वतंत्र भारत में पैदा होने वाली पहली राष्ट्रपति हैं.
भारत की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ ग्रहण के दौरान जो साड़ी पहनी,वो साड़ी संथाली साड़ी कही जाती है. शपथ ग्रहण के दौरान द्रौपदी मुर्मू ने जो साड़ी पहनी वो हरे-लाल बॉर्डर वाली सफेद रंग की थी, इसे संथाली साड़ी कहा जाता है.
ये संथाली साड़ी हैंडलूम यानी हाथ से बनी होती है यानी कि इसे मशीन से तैयार नहीं किया जाता है. बुनकर रंगीन धागों से साड़ी बनाते है. यह पहनावा ना सिर्फ उन्हें अपने ट्रेडिशन से जड़ से जुड़े रहने का अहसास दिलाता है, बल्कि अब ये आधुनिक फैशन के रूप में भी बनकर उभरा है. हालांकि संथाली आदिवासी समाज में अब शादी-विवाह में इन साड़ियों की जगह पीली और लाल साड़ी भी पहनी जाती है.
संथाली साड़ी में अब ट्रेडिशनल और मॉडर्न फैशन का फ्यूजन
पहले जब संथाली साड़ियां बनाईं जाती थीं तब उस समय इन साड़ियों पर तीन-धनुष के डिजाइन बने होते थे. इस प्रतीक का मतलब, महिलाओं की आजादी की चाहत था, लेकिन नये युग में परिवर्त्तन के साथ ही अब संथाली साड़ियों पर मोर, फूल और बतख के डिजाइन भी बनाये जाने लगे हैं. पारंपरिक साड़ी का अब रूप बदलता जा रहा है. संथाली साड़ी में अब ट्रेडिशनल और मॉडर्न फैशन का फ्यूजन नजर आने लगा है. अब बाजार में इन साड़ियों की डिमांड बढ़ने लगी है. पहले ये साड़ी झारखंड के संताल परगना इलाके तक ही सीमित थी, लेकिन अब ये अन्य राज्यों में भी बहुत पंसद किए जाने लगा है.
जानें कैसी होती है संथाली साड़ी
ये साड़ी सुकरी टुडू पूर्वी भारत में संथाल समुदाय की है. संथाली साड़ियों के एक छोर पर कुछ धारी का काम होता है और कुछ खास मौकों पर संथाल महिलाओं द्वारा इसे पहना जाता है. संथाली साड़ियों में लम्बाकार में एक समान धारियां होती हैं और दोनों छोरों पर एक जैसी डिजाइन होती है.
झारखंड के अलावा अन्य राज्यों में भी लोकप्रिय
संथाली साड़ी सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्य ओडिशा , पश्चिम बंगाल और असम समेत अन्य राज्यों में भी काफी प्रचलित है. ये साड़ी हाथों की बनी होती है और बेहद ही खूबसूरत और आंखों को पसंद देने वाली होती है.
साड़ी होती है महंगी
संथाली साड़ी को बुनकर अपने हाथों से सफेद कॉटर के कपड़े पर कई रंगीन धागों के चेक्स से बनाते हैं. हाथों से बनाए जाने के कारण यह साड़ी थोड़ी महंगी होती है. संथाली साड़ी की कीमत सामान्य तौर पर एक हजार रुपये पांच हजार रुपये के बीच की होती हैं. हालांकि अब इस साड़ी को बनाने के लिए मशीनें भी इस्तेमाल होने लगी हैं.
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