रामपुर: यूपी के रामपुर में आजादी से पहले नवाबों का अलग ही रुतबा होता था. नवाब अपने शाही विरासत के लिए पहचाने जाते थे. यहां नवाबों का 1774 से लेकर 1949 तक राज रहा. लगभग 175 साल की हुकूमत के दौरान नवाबों के अपने कानून होते थे और जनता को उसी हिसाब से चलना पड़ता था. शाही अंदाज ऐसा कि उनका अपना रेलवे स्टेशन होता था. जीहां, अपना व्यक्तिगत रेलवे स्टेशन. वैसे ये सुनकर आप चौंक जरूर जाएंगे, कि कैसे उसको मैनेज किया जाता होगा. आइए इस रिपोर्ट में जानते हैं इस स्टेशन के बारे में....


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रामपुर का व्यक्तिगत नवाब स्टेशन
रामपुर में सन् 1774 से 1949 तक नवाबों का राज हुआ करता था. नवाबी दौर भले ही खत्म हो चुका है लेकिन, उस दौर में बनी ऐतिहासिक इमारतें आज भी अपनी बुलंदी की कहानी कहती है. ऐसी ही एक इमारत रेलवे स्टेशन के पास है. इसे नवाब स्टेशन के नाम से जाना जाता है.


इतिहास के पन्ने उलटने से इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि रामपुर के तत्कालीन नवाब हामिद अली खां ने अपना रेलवे स्टेशन बनवाया था.  साल 1930 में नवाब हामिद का इंतकाल हो गया, इसके बाद नवाब रजा अली खां ने रियासत की बागडोर संभाली.  साल 1949 में रेलवे भारत के जिम्मे हो गई. साल 1954 में नवाब ने रामपुर रेलवे स्टेशन और दो सैलून रेलवे को उपहार के तौर पर दे दिए. लेकिन ये बदकिस्मती है कि ये विरासत नहीं संभली.


हर समय खड़ी रहती थी दो बोगियां
रजा अली खां रामपुर के आखिरी नवाब थे. रामपुर के नौवें नवाब हामिद अली खां के दौर में जब जिले से रेलवे लाइन गुजरी तो उन्होंने रेलवे स्टेशन के करीब ही अपने लिए अलग स्टेशन बनवाया. दिल्ली या लखनऊ जाते समय नवाब परिवार अपने महल से सीधे नवाब स्टेशन जाते और यहां से अपनी बोगियों में बैठ जाते थे.  नवाबों के अपने रेलवे स्टेशन पर हर समय दो बोगियां खड़ी रहती थीं. अगर नवाब साहब या उनके परिवार के किसी सदस्य को कहीं जाना होता था तो तुरंत ही यात्रा के हिसाब से बोगिंयां लगा दी जाती थीं. सभी रेलवे स्टेशन पहुंच जाते थे. लेकिन आज इस स्टेशन की हालत देख रोना आ जाएगा. यहां पर ऑटो स्टैंड वालों का कब्जा. इस विरासत को सहोजन में कोताही बरती गई है.  संपत्ति विवाद के कारण अब नवाब स्टेशन अपनी बर्बादी पर आंसू बहा रहा है.


ऐसे बना था नवाब का सैलून
इस ट्रेन में नवाब ने कुल चार सैलून बनवाए थे. नवाब अक्सर रियासत के काम के लिए अक्सर सफर करते थे. इसमें दो आदमी की सीटिंग होती थी. ऐसा कहा जाता है कि उस समय भी पूरा कोच वातानुकूलित था. इसमें दो बेड रूम और बाथरूम भी थें. सैलून कमरे की तरह था, जिसमें पेंटिंग लगी हुई थीं.


पांच बेड सैलून
यह कूपा नौकरों के लिए होता था. नवाबों के साथ चलने वाले नौकर चाकर इसमें सफर करते थे इसमें भी बाथरूम अलग से था.


होता था डाइनिंग हॉल
पूरा कोच कमरे की तरह दिखता था. इस कोच में खाने की मेज और कुर्सी लगी थीं. एक साथ इस सैलून में 20 से 24 लोग  खाना खा सकते थे.  


कोच में होती थी पेंट्री कार 
इस कोच में खाना बनाने का भी पूरा प्रबंध होता था. इस कूपे में  दो किचन होते थे. एक में भारतीय किचन के हिसाब से सर्विस थी, जिसमें शाकाहारी भोजन बनता था, जबकि इंग्लिश किचन में मांसाहारी भोजन बनता था.


बोगियों में लग चुकी है जंग, दरवाजों पर जड़े गए ताले
आजादी के बाद भी नवाब अपनी बोगियों में सफर करते रहे लेकिन, बाद में सरकारी नियमों के चलते इस पर रोक लगा दी गई. फिर इसके बाद परिवार में संपत्ति को लेकर झगड़े पैदा हो गए. देखरेख न होने से इसकी चमक फीकी हो गई. हालत यह है कि कभी शाही अंदाज में सजी रहने वाली इन बोगियों में आज जंग लग चुका है.  बोगियों के सभी दरवाजे और खिड़कियां बंद कर दिए हैं.  बोगी के दरवाजों पर ताले जड़े हुए हैं.


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