नसबंदी कराने के बदले मिली जमीन पर सरकारी अमला कर रहा दखल, आखिर 43 साल बाद क्यों उठाना पड़ रहा कदम
Saharanpur News : 1980 में नसबंदी योजना के तहत देवबंद कोतवाली क्षेत्र के गांव दिवाहलेडी के कुछ गरीब दलित समाज के लोगों को नसबंदी कराने पर उन्हें गांव की ग्राम समाज की भूमि का पट्टा आवंटित किया गया था. इसके बाद 2002 में उन्हें उस भूमि का पूरा मालिकाना हक दे दिया गया था.
नीना जैन/सहारनपुर : सहारनपुर के देवबंद कोतवाली क्षेत्र के गांव दिवाहलेडी में कुछ किसानों ने प्रशासन पर उनकी भूमि जबरन कब्जाने का आरोप लगाया है. किसानों ने देवबंद कोतवाली प्रभारी को शिकायती पत्र देकर एसडीएम, तहसीलदार राजस्व विभाग के अधिकारी सहित रेलवे अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की.
नसबंदी की योजना में दी गई थी जमीन
दरअसल, यह पूरा मामला शुरू होता है 1980 के समय में. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा नसबंदी की योजना चलाई गई थी. इस योजना के तहत देवबंद कोतवाली क्षेत्र के गांव दिवाहलेडी के कुछ गरीब दलित समाज के लोगों को भी नसबंदी कराने पर उन्हें गांव की ग्राम समाज की भूमि का पट्टा आवंटित किया गया था. इसके बाद 2002 में उन्हें उस भूमि का पूरा मालिकाना हक दे दिया गया था.
देवबंद रुडकी रेल मार्ग के लिए जमीन चिन्हित
इसके बाद साल 2017 में इन्हीं किसानों की यह भूमि देवबंद रुड़की रेल मार्ग के लिए चिन्हित की गई. सरकार द्वारा मुआवजा भी तय हुआ, लेकिन प्रशासन ने इस पूरे मामले में अड़ंगा डाल दिया. प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि यह भूमि सरकारी है और इसका मुआवजा नहीं दिया जा सकता. इसके बाद गरीब दलित किसान कोर्ट की शरण में गए और कोर्ट में किसानों के हक में स्टे देते हुए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया, लेकिन कोर्ट का स्टे होने के बावजूद कल रेलवे विभाग के अधिकारी व स्थानीय प्रशासन उस भूमि पर कब्जा करने पहुंच गया. इसका किसानों ने विरोध किया.
प्रशासन कर रहा मनमानी
वहीं, किसानों का कहना है कि जब मामला कोर्ट में चल रहा है. कोर्ट ने इस पर स्टे भी दिया हुआ है तो फिर प्रशासन अपनी मनमानी क्यों कर रहा है. बड़ा सवाल यह है कि जब किसी योजना के अंतर्गत सरकार द्वारा गरीब लोगों को यह भूमि दी गई थी उस भूमि का पूरा मालिकाना हक उन्हें दिया गया था तो फिर अब प्रशासन इस भूमि का मुआवजा किसानों को क्यों नहीं दे रहा.
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