नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश में बुलडोजर एक्शन पर रोक की मांग वाली अर्जी पर सुनवाई टल गई है. अगली सुनवाई अब 29 जून को होगी. याचिकाकर्ता ने शुक्रवार को यूपी सरकार के जवाब पर अपना जवाब देने के लिए सुप्रीम कोर्ट से समय मांगा. साथ ही सुनवाई टालने का आग्रह किया, जिसकी मंजूरी कोर्ट ने दे दी. दरअसल, जमीयत उलेमा हिंद अर्जी दायर की है. 


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पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने से इनकार करते हुए यूपी सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा था. जिसके बाद यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए कहा था कि प्रयागराज में जो अवैध निर्माण हटाये गए, वो लोकल डेवेलपमेंट ऑथिरिटी ने हटाये. ये अपने आप में स्वायत्त संस्था है, सरकार के अधीन नहीं है. शहर से अवैध, गैरकानूनी निर्माण को हटाने की कवायद में कानून सम्मत तरीके से कार्रवाई हुई है. जिन पर कार्रवाई हुई उन्हें तोड़ने का आदेश कई महीने पहले जारी हुआ था. 


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दंगे का कार्रवाई से संबंध नहीं 
यूपी सरकार ने अपने जवाब में जेएनयू की छात्र नेता आफरीन के पिता जावेद मोहम्मद के प्रयागराज में मौजूद घर का भी हवाला दिया था. सरकार ने कहा था कि ये घर प्रयागराज डेवेलपमेंट ऑथोरिटी रूल के मुताबिक अवैध निर्माण था. घर को दंगों के बाद जरूर ढहाया गया, लेकिन इसको लेकर कार्रवाई दंगों से बहुत पहले ही शुरू हो गई थी. दंगे का इससे संबंध नहीं है और उसका मुकदमा अलग है. 


जमीयत ने लगाए एक समुदाय विशेष को टारगेट करने के आरोप  
यूपी सरकार ने जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की ओर से दायर याचिका के जवाब में दिया था. जमीयत का कहना था कि पैगम्बर मोहम्मद को लेकर नूपुर शर्मा के विवादित बयान के बाद यूपी के विभिन्न शहरों में प्रदर्शन हुए. इसको लेकर दोनों समुदाय में झड़प हुई, लेकिन यूपी सरकार ने सिर्फ एक समुदाय विशेष को टारगेट कर कार्रवाई की. उन्हें दंगाई, गुंडा करार देकर उनके घरों को बुलडोजर से ढहाया गया. सिर्फ दंगों के कथित आरोपियों को ही नहीं, बल्कि उनके घरवालों के घरों को भी ढहा दिया गया. 


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वहीं, यूपी सरकार का कहना है कि जमीयत ने अवैध निर्माण हटाने की कानून सम्मत कार्रवाई को गलत रंग देने की कोशिश की है. इस मामले में जिन लोगों के घरों को गिराया गया, उनमें से किसी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख नहीं किया है. जमीयत ने सुनी सुनाई बातों के आधार पर याचिका दाखिल की है, ये याचिका खारिज होनी चाहिए. 


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