अब्दुल सत्तार/झांसी: 29 अगस्त की तारीख भारत के लिए बेहद खास है. आज हमारा देश राष्ट्रीय खेल दिवस मना रहा है. इस दिवस को देश के महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) की जयंती के रूप में मनाया जाता है. ध्यानचंद की उपलब्धियों ने अंग्रेजों की हुकूमत के दौरान भी भारतीय खेल के इतिहास को नए शिखर पर पहुंचाया.


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ध्यानचंद ने हासिल लिए अटूट कीर्तिमान


हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की महानता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वह हॉकी खेलते थे तो मानो ऐसा लगता था कि गेंद उनकी स्टिक से चिपक जाती थी. दद्दा अपने शुरुआती दिनों में शौकिया हॉकी खेला करते थे. 1922 में सेना की नौकरी में आने के बाद 1926 से 1948 तक अन्तर्राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया. उन्होंने 400 से ज्यादा गोल दागकर अटूट कीर्तिमान हासिल किए. राष्ट्रीय खेल के इस खिलाडी ने कई दशक पहले जो रिकॉर्ड बनाए, वे अब भी मील का पत्थर हैं.



 
खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन
मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन पूरे देश में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है.  29 अगस्त 1905 में इलाहाबाद की धरती पर जन्मे ध्यानचंद बाद में झांसी आकर बस गए. 1922 में उन्हें पंजाब रेजीमेंट में सिपाही की नौकरी हासिल की. इसके बाद पूरा ध्यान हॉकी पर देने लगे. 


पहले ही ओलंपिक में जीता गोल्ड
ध्यानचंद ने अपने पहले ही ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया. 1932 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक में मेजर ध्यानचंद ने फाइनल मैच में भारत ने अमेरिका को 24-1 के विशाल अंतर से हरा दूसरी बार ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता. गोल्ड मेडल जीतने के साथ-साथ ऐसा विश्व रिर्कोड स्थापित किया जिसे आज तक तोड़ा नहीं जा सका. जर्मनी जैसी टीम को 8-1 के अंतर से हराकर लगातार तीसरी बार ओलंपिक का स्वर्ण पदक भारत को दिलाया.


हिटलर ने ध्यानचंद को दिया था ऑफर
1936 के बर्लिन ओलंपिक में फाइनल मैच का आनन्द ले रहे जर्मनी के चांसलर एडोल्फ हिटलर ध्यानचंद का खेल देखकर इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने प्रलोभन देकर ध्यानचंद को अपनी सेना में भर्ती करना चाहा. किन्तु इस सच्चे देश भक्त सिपाही को हिटलर का लालच भी डिगा न सका. उसी समय से ध्यानचंद हॉकी के जादूगर के रूप में प्रसिद्ध हो गए. हॉकी में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.


मेजर ध्यानचंद से जुडी स्मृतियां संरक्षित 
झांसी में मेजर ध्यानचंद के घर के बाहरी हिस्से के एक कमरे को परिवार के लोगों ने संग्रहालय का रूप दे दिया है.  इसमें मेजर ध्यानचंद से जुडी स्मृतियां भी संरक्षित हैं. इसे देखने लोग आते हैं. जी न्यूज ने मेजर ध्यानचंद के बेटे और पूर्व ओलम्पियन अशोक ध्यानचंद से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि उनका घर हॉकी का मंदिर है. दद्दा की स्मृतियों को यहां सहेज कर रखा गया है. उनकी जयंती को राष्ट्रीय खेल दिवस का नाम दिया गया है.


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